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750 से अधिक आदिवासी नेता, कार्यकर्ता राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए विशाखापत्तनम में मिलेंगे

अलग-अलग राज्यों के आदिवासी समुदायों के 750 से अधिक नेता और कार्यकर्ता समुदाय के खिलाफ बढ़ते हमलों के मद्देनजर अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन में भाग लेने के लिए रविवार (21 मई) को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में इकट्ठा होंगे.

अखिल भारतीय आदिवासी अधिवेशन की आयोजन समिति (आंध्र प्रदेश) के संयोजक डी सुरेश ने कहा कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, यूपी, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा और मणिपुर के आदिवासी समुदायों के नेताओं के एक दिन के सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है.

सम्मेलन देश भर के समुदायों के नेताओं को उनके मुद्दों के बारे में जागरूकता विकसित करने के लिए एक छत के नीचे लाने के प्रस्ताव पर विचार करेगा.

आदिवासी लेखक और पत्रकार और झारखंड महिला आयोग की पूर्व सदस्य डॉ वासवी किरो उद्घाटन भाषण देंगी. जबकि उद्घाटन सत्र को अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा (एआईकेएमएस) के अध्यक्ष वेमुलापल्ली वेंकटरमैया और आदिवासी मुद्दों के लेखक पी त्रिनाधराव संबोधित करेंगे.

डी सुरेश ने कहा, “हमारी जमीनें छीनी जा रही हैं, हमारी आजीविका छीनी जा रही है और हमारी पहचान, हमारी संस्कृति और हमारी भाषाओं पर सुनियोजित हमले किए जा रहे हैं. हमें जबरन आत्मसात करने के प्रयास किए जा रहे हैं. हमारे उपनिवेश-विरोधी नायकों की उपेक्षा की जा रही है और हमारे बीच कलह और संघर्ष बोने का प्रयास किया जा रहा है.”

समिति ने कहा है कि केंद्र सरकार ने वन संरक्षण नियम, 2022 बनाया है, वन नीति में संशोधन किया है और वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने की मांग कर रही है ताकि “संसाधनों से भरपूर हमारी भूमि को विदेशी और घरेलू कॉर्पोरेट को सौंप दिया जा सके.”

समिति ने एक बयान में कहा, “इन परिवर्तनों का पूरा जोर… हमें दबाने और दमन करने के लिए फॉरेस्ट गार्ड सहित सरकारी तंत्र को और अधिक सशक्त बनाना है. दूसरी ओर वन अधिकार अधिनियम, 2006 का कार्यान्वयन बहुत धीमा हो रहा है. जबकि यह अधिनियम हमारे लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों के परिणामस्वरूप बनाया गया था और हमारे खिलाफ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने का दावा करता था. अब एक्ट के तहत अधिकार छीने जा रहे हैं. पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996 (पेसा) का क्रियान्वयन भी ठीक से नहीं हुआ है. वन्यजीव अभ्यारण्य के नाम पर हमारी जमीन पर और हमले तेज़ कर दिए गए हैं.”

समिति ने कहा कि अधिवेशन के नारे ‘हमारी भूमि, आजीविका और पहचान का संरक्षण’ और ‘बिना विस्थापन के विकास और वनों का संरक्षण’ हैं. यह सम्मलेन तब आयोजित किया जा रहा है जब आदिवासी समुदाय हमलों का विरोध करने और अधिकारों के लिए लड़ने के लिए देश के कई हिस्सों में दमन का सामना कर रहा है.

(File Image)

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