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गणतंत्र दिवस पर आदिवासियों का प्रतिनिधि बनाया, अब आजीविका छीन ली

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के हासन दौरे से पहले कुछ ऐसा हुआ जिससे आदिवासी काफ़ी नाराज़ हैं.

राज्यपाल के हासन पहुंचने से पहले बेलूर पुलिस ने गुरुवार को अंगदिहल्ली में हक्की पिक्की आदिवासियों द्वारा सड़क किनारे लगाए गए अस्थायी स्टालों को हटा दिया.

आदिवासियों का आरोप है कि पुलिस ने उनके स्टॉलों के बैनर फाड़े, और फर्नीचर को नुकसान पहुंचाया. पुलिस ने उनकी दुकानों पर बिक रहा सामान जिसमें अलग-अलग तेलों की बोतलें भी थीं, उन्हें भी फेंक दिया. अलग-अलग तरह के ये तेल हक्की पिक्की आदिवासी समुदाय पर्यटकों को बेचने के लिए अपने स्टॉल पर रखते हैं.

गहलोत गुरुवार शाम को बेलूर तालुक के हलेबिदु और हागारे होते हुए शिवमोग्गा में कुवेम्पु यूनिवर्सिटी के कॉनवोकेशन समारोह में भाग लेने के बाद हसन पहुंचे.

राज्यपाल का काफिला NH-373 पर गुजरने से कुछ घंटे पहले, पुलिस ने हाइवे के दोनों ओर आदिवासी लोगों द्वारा लगाए गए सौ से ज़्यादा स्टॉलों को हटा दिया.

के.एम. बेलूर के सर्कल इंस्पेक्टर योगेश ने एक अखबार को बताया, “आदिवासियों ने फुटपाथ पर स्टॉल लगाए थे. उन्हें वहां स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं थी. चूंकि राज्यपाल का काफिला बेलूर और हासन को जोड़ने वाले हाइवे से गुजरने वाला था, इसलिए हमने उन्हें हटा दिया.”

हक्की पिक्की समुदाय, जो हाल के दशकों में ही जंगल से बाहर आया है, औषधीय महत्व वाले पौधों से निकाले गए अलग-अलग तरह के तेल तैयार करता है. COVID-19 महामारी से पहले, समुदाय के कई लोग अपने उत्पादों को बेचने के लिए अलग-अलग जगहों की यात्रा करते थे. उनमें से कई ने विदेशों का भी दौरा किया.

हाल के महीनों में इन आदिवासियों ने अपने गाँव के पास स्टॉल लगाने शुरू किए ताकि उस रास्ते से गुज़रने वाले पर्यटक उनके उत्पादों को खरीद सकें.

एक हक्की पिक्की आदिवासी महिला, चंदोसी, जिसने एक स्टॉल लगाया था, ने कहा कि आदिवासियों ने COVID-19 के दौरान आय के सभी स्रोत खो दिए थे. “हमें नहीं पता कि पुलिस ने हमारे स्टॉल क्यों हटाए. उन्होंने हमारे बैनर फाड़ दिए और बोतलें छीन लीं और जोर देकर कहा कि हमें उन्हें नहीं बेचना चाहिए,” उसने कहा.

गणतंत्र दिवस के मेहमान

चंदोसी और उनके पति हुराजा को जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा दिल्ली में 2020 में गणतंत्र दिवस कार्यक्रम देखने के लिए अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. उन्होंने राजधानी दिल्ली का दौरा किया और राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और दूसरे अहम लोगों के साथ बातचीत में हिस्सा लिया.

“हमें भारत सरकार द्वारा आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों के रूप में आमंत्रित किया गया था. लेकिन, प्रशासन हमें एक अच्छा जीवन जीने तक की अनुमति नहीं दे रहा है,” हुराजा ने कहा.

कौन हैं हक्की पिक्की आदिवासी?

हक्की पिक्की एक सेमी-नोमैडिक आदिवासी समुदाय है, जिनके चार वंश या कुल हैं. यह समुदाय ज़्यादातर कर्नाटक में पाया जाता है, लेकिन कुछ लोग तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ ज़िलों में भी पाए जाते हैं.

हक्की पिक्की समुदाय के लोग कई दक्षिण भारतीय भाषाएँ बोलते हैं जैसे कि कन्नड़, तमिल, तेलुगु और मलयालम. इसके अलावा वो वागरीबूली, जो गुजराती के समान है, भी बोलते हैं.

हक्की पिक्की का कन्नड़ में मतलब है “पक्षी पकड़ने वाला”.

हक्की पिक्की आदिवासी समुदाय का एक समृद्ध इतिहास है. कहा जाता है कि इनका राणाप्रताप सिंह के साथ पैतृक संबंध है. यह समुदाय एक क्षत्रिय या योद्धा आदिवासी समुदाय है, जिन्हें मुगल राजाओं के हाथ हार के बाद दक्षिण भारत में प्रवास करना पड़ा था.

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