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पालघर में आदिवासी महिला ने घने जंगल में बच्ची को जन्म दिया

एक आदिवासी महिला (Tribal Woman) ने जंगल में बच्चे को जन्म दिया. यह बताया गया है कि इस गर्भवति महिला को डोली यानि बांस में कपड़ा बांध कर अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की गई थी. लेकिन रास्ते में ही एक घने अंधरी जगह पर इस औरत ने बच्चे को जन्म दिया. 

यह ख़बर महाराष्ट्र के पालघर ज़िले (Palghar District) की जव्हार तहसील का बताया गया है. ज़िला प्रशासन ने इस घटना की पुष्टि की है. यहां के एक मेडिकल ऑफिसर ने बताया है कि जव्हार तहसील के आइना गांव की एक 21 साल की महिला को रात को प्रसव पीड़ा हुई. यह बात 10  और 11 सितंबर की रात की है. 

इस गांव तक पक्की सड़क संपर्क नहीं है. इसलिए उसके परिवार और गांव के लोग रात तीन बजे डोली में डाल कर अस्पताल ले जा रहे थे. 

इस महिला को ले जा रहे लोग करीब 5 किलोमीटर का रास्ता तय कर चुके थे. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही इस महिला ने जंगल में एक बच्ची को जन्म दे दिया.

इस घटना के कुछ वीडियो भी वायल हुए हैं. प्रशासन की तरफ से बताया गया है कि फिलहाल यह महिला जव्हार तहसील के अस्पताल में दाखिल है. अस्पताल के अधिकारियों ने जानाकारी देते हुए बताया है कि मां और बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हैं.

इस मसले पर जव्हार तहसील में सीपीएम के सचिव यशवंत घटाल ने कहा कि यह घटना इस इलाके में पहली नहीं है. उन्होनें बाताय कि यहां के गांवो में सड़क संपर्क ठीक नहीं है. इसके अलावा मोबाइल नेटवर्क भी आसानी से नहीं मिलता है.

इसलिए बीमार लोगों या गर्भवति महिलाओं को समय पर मदद नहीं मिल पाती है. MBB से बातचीत करते हुए उन्होने कहा, 

“ पिछले महीने भी इस तरह की घटना हुई थी. एक औरत को डोली में लिटा कर अस्पताल ले जा रहे थे. उस दौरान भारी बारिश भी हो रही थी. इस महिला को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका था. रास्ते में ही उसे जुड़वां बच्चे हुए और उनकी मौत हो गई.”

उन्होनें बताया कि पिछले महीने की यह घटना मोखाड़ा तालुका के एक गांव में हुई थी.

हाईकोर्ट में भी स्वास्थ्य सेवाओं का मामला उठ चुका है

इस आदिवासी औरत के जुड़वां बच्चों की मौत के बाद बोम्बे हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि आदिवासी इलाकों में गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और दूसरी सुविधाएं पहुंचाने के इंतज़ाम किये जाए. 

बोम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि पिछले दो दशक से इस अदालत ने आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के जो आदेश दिए हैं उनका पालन नहीं हुआ है. 

अदालत में सरकार ने यह दावा किया कि अदालत के आदेश के अनुसार आदिवासी इलाकों में अस्पताल, डॉक्टर्स और दवाइयों का इंतज़ाम किया गया है. 

लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरफ से अदालत को सूचित किया गया है कि अभी भी आदिवासी इलाकों में महिला डॉक्टर, बच्चों के डॉक्टर अस्पतालों में पहुंचते ही नहीं है. 

पिछले महीने ही अदालत ने आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत पर नाराज़गी प्रकट की थी. लेकिन लगता नहीं है कि ज़मीन पर अभी भी हालात बदले हैं.

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