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केरल: गर्भवती आदिवासी महिला को कपड़े से बांधकर 3 किलोमीटर तक पैदल चले परिजन

केरल के पलक्कड़ ज़िले के कडुक्कुमन्ना गांव में प्रसव पीड़ा से तड़प रही कुरुम्बा जनजाति की एक गर्भवती महिला को लेने के लिए कई घंटों तक कोई एंबुलेंस नहीं आई. ऐसे में आदिवासी महिला को उसके रिश्तेदार अस्थायी स्ट्रेचर यानि डोली पर अस्पताल लेकर गए.

जानकारी के मुताबिक, सुमति मुरूकन नाम की महिला को शनिवार देर रात 12.45 बजे प्रसव पीड़ा हुई. लेकिन उसे अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कोई एंबुलेंस या अन्य वाहन उपलब्ध नहीं था.

दरअसल, सुमति कोट्टाथारा ट्राइबल स्पेशियलिटी अस्पताल में डॉक्टरों से सलाह ले रही थी और उसकी डिलीवरी अगले हफ्ते होनी थी. लेकिन शनिवार देर रात सुमति को प्रसव पीड़ा हुई. जिसके बाद उसके परिजनों ने एंबुलेंस के लिए फोन किया लेकिन सड़क खराब होने के कारण काफी देर बाद भी वह गांव नहीं पहुंच सकी. एंबुलेंस गांव से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित मुख्य सड़क पर ही पहुंच पाई.

ऐसे में सुमति के परिवार वालों को उसे अस्थायी स्ट्रेचर पर ले जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. सुमति के परिजनों ने समय बर्बाद न करते हुए उसे लेकर जंगल से होकर मुख्य सड़क तक साढ़े तीन किलोमीटर पैदल चले और वहां से फिर उसे एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया.

आख़िरकार गर्भवती सुमति मुरूकन को अनवयल से अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल पहुंचने के बाद सुमति ने एक लड़के को जन्म दिया. मां और बच्चे दोनों की हालत स्थिर बताई जा रही है.

इस तरह की ये पहली घटना नहीं है जब आदिवासी इलाकों में गर्भवती महिला को डोली में लटकाकर अस्पताल में पहुंचाया गया हो. अमूमन सड़कों से संपर्क न होने के चलते परिजनों को बीमार मरीजों और गर्भवती महिलाओं को लेकर कई किलोमीटर तक पैदल ले जाने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि वे निकटतम स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंच सकें.

आदिवासी इलाकों में अक्सर लोग लकड़ी के खंभे और कपड़े से बने ‘डोली’ नामक अस्थायी स्ट्रेचर में मरीजों और गर्भवती महिलाओं को ले जाने के लिए मजबूर हैं. क्योंकि कई किलोमीटर दूर तक कोई अस्पताल नहीं होने और उचित सड़क संपर्क न होने के कारण, एम्बुलेंस अक्सर जनजातीय क्षेत्र के आंतरिक हिस्सों तक पहुचने में असमर्थ होती हैं.

(Photo Credit: ANI)

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