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जम्मू में आदिवासियों के घरों को गिराए जाने के विरोध में प्रदर्शन

जम्मू में अधिकारियों ने मंगलवार को रूप नगर इलाके में लगभग एक दर्जन जनजातीय परिवारों के घरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया, जिसके बाद इलाके में इस कदम की व्यापक निंदा की गई और विरोध किया गया.

जम्मू विकास प्राधिकरण (JDA) के अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों ने जम्मू के बाहरी इलाके में उस जमीन पर बेदखली अभियान चलाया, जिस पर उनका दावा है कि वह जमीन सरकारी है और उस पर कई परिवारों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है.

परिवार गुर्जर-बकरवाल जनजाति के हैं, जो इस क्षेत्र के सबसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों में से एक हैं, जो ज्यादातर समय से खानाबदोश चरवाहों के रूप में रहा है. क्षेत्र के एक स्थानीय चौधरी नज़ीर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह अभियान मंगलवार की सुबह चलाया गया था और यह पहली बार था कि निवासियों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई की जा रही थी.

नजीर ने कहा, “​​ये लगभग एक दर्जन परिवार हैं, जो यहां 70 से 75 साल पहले से रह रहे हैं और हम पहली बार उनके खिलाफ बेदखली की कार्रवाई होते देख रहे हैं. अधिकारियों ने किसी भी परिवार को इसके बारे में समय से पहले सूचित नहीं किया और न ही उन्होंने कोई पूर्व नोटिस भेजा.”

वहीं एक जनजातीय कार्यकर्ता फैसल राजा ने कहा कि सर्दियों के मौसम में इन परिवारों के लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था किए बिना ही उन्हें दयनीय दशा में छोड़ दिया गया था. उन्होंने कहा, “इन परिवारों में कई बच्चे और कई बुजुर्ग हैं, जो अब सड़क पर बेसहारा हैं.”

बेदखली अभियान चलाए जाने के बाद, गुर्जर-बकरवाल समुदाय के सदस्यों ने बुधवार को जम्मू में इन परिवारों के खिलाफ कार्रवाई को “मनमाना” बताते हुए प्रदर्शन किया. दर्जनों प्रदर्शनकारियों ने विध्वंस अभियान की निंदा करते हुए अधिकारियों पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए नारेबाजी की.

गुर्जर बकरवाल युवा कल्याण सम्मेलन जम्मू-कश्मीर (JKGBYWC) के उपाध्यक्ष शौकत चौधरी ने जेडीए के अभियान को “चयनात्मक” करार दिया और इसके अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अपील की.

​शौकत चौधरी ने कहा, “​जनजातियों का चयनात्मक निष्कासन और उन्हें बेघर करना इस दलित समुदाय को उखाड़ फेंकने का एक नया तरीका है. मैं जेडीए की इस अमानवीय कार्रवाई की कड़ी निंदा करता हूं और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करता हूं.”

पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी इस विध्वंस अभियान को “चयनात्मक” और उन नीतियों का हिस्सा बताया, जिसके बारे में उनका आरोप था कि वे “सांप्रदायिक” थीं.

​महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्वीट में लिखा, “​जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा जम्मू में घरों को चुनिंदा तरीके से गिराना और जनजातीय समुदायों को बेघर करना अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर अपनी नफरत को बाहर निकालने का एक और तरीका है. ऐसा मालूम होता है कि ये सांप्रदायिक नीतिगत निर्णय शीर्ष पर स्वीकृत हैं. लोगों को इस तरह के अत्याचारों के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है.”

हालांकि, जेडीए के उपाध्यक्ष पंकज मगोत्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि विभाग के खिलाफ चयनात्मक होने के आरोप ‘सही नहीं’ हैं.

पंकज मगोत्रा ने कहा, “​हमने सिर्फ प्रक्रिया का पालन किया है और हम एक सरकारी निकाय हैं, इसलिए हम चयनात्मक नहीं हो सकते. यह मामला नहीं है और यह कभी भी मामला नहीं हो सकता है.”

अधिकारी ने कहा कि यह मामला अदालत में चला था, पर इसमें हार हो गई थी. उन्होंने कहा, “हमने उस कॉलोनी में पहले ही भूखंड आवंटित कर दिए हैं और हमने उन्हें इंतजार कर रहे लोगों को बेच दिया है और हम उनके लिए भी जवाबदेह हैं.”

जम्मू हाईकोर्ट के एक वकील, शाहिद चौधरी, जो पीड़ित समुदाय से भी ताल्लुक रखते हैं उन्होंने कहा कि अधिकारियों को परिवारों के साथ “मानवीय आधार” पर व्यवहार करना चाहिए था. उन्होंने प्रशासन पर वंचित समुदाय को निशाना बनाने का भी आरोप लगाया.

शाहिद चौधरी ने श्रीनगर में न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पूछा ​​”​अधिकारियों का कहना है कि ‘हम अपना काम कर रहे हैं’ लेकिन यह न्याय नहीं है. जब वे लोगों को उनके स्थानों से उखाड़ फेंकते हैं. क्षेत्र एक सड़क से जुड़ा हुआ है, पानी और बिजली की आपूर्ति भी है. इन परिवारों को इस क्षेत्र में कैसे बसने दिया गया और पहली बार में ये सुविधाएं कैसे प्रदान की गईं?”

(यह NewsClick की रिपोर्ट है)

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