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एक भी बड़े उद्योगपति आदिवासी क्यों नहीं है – राहुल गांधी

रविवार को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रही अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा (Bharat Jodo Nyay Yatra) के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Congress leader Rahul Gandhi) ने कई बड़े दावे किए है.

उन्होंने आदिवासी और दलित युवाओं के भविष्य के प्रति अपनी चिंता भी वयक्त की.

उन्होंने अपने भाषण में दावा किया की देश की 73 प्रतिशत जनसंख्या में से ना ही कोई बड़े उद्‌योगपति है और ना ही वे आईएएस जैसे किसी बड़े पद पर नियुक्त है.

इस 73 प्रतिशत आकड़े में पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को शामिल हैं. जिसमें 50 प्रतिशत पिछड़े वर्ग, 15 प्रतिशत दलित और 8 प्रतिशत आदिवासी है.

उन्होंने जातीय जनगणना पर ज़ोर देते हुए कहा, “जातीय जनगणना इस देश की एक्स-रे रिपोर्ट है. जो अगर होती है तो देश के 73 प्रतिशत जनसंख्या का सच सबके सामने आ जाएगा.”

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पास मौजूद स्वराज भवन में भाषण देते हुए राहुल गांधी ने उपस्थित युवाओं को कहा जातीय जनगणना सभी पिछड़े वर्ग, दलित और आदिवासियों का अधिकार है. उन्हेंपता होना चाहिए की देश में उनकी जनसंख्या कितनी है.

उन्होंने आगे कहा, “आप सभी को यह भी जांचने की जरूरत है की देश के जीडीपी में आप कितना योगदान कर रहे हैं.”

लेकिन इन समुदाय के युवा में से कोई भी देश के 200 बड़ी दिग्गज कंपनियों का मालिक नहीं है और ना ही वे आईएएस जैसे बड़े पद पर नियुक्त है.

उन्होंने ये भी दावा किया की 22 जनवरी को हुई आयोध्या राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में आदिवासी या पिछड़े वर्ग का कोई भी वयक्ति वहां मौजूद नहीं था.

वहीं उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा की देश की सरकार बड़े दिग्गज उ‌द्योगपतियों के उधार तो माफ कर देती है. लेकिन वे कभी भी आदिवासी किसानों या अन्य समाज के किसानों का ऋण रद्दीकरण नहीं करते है.

राहुल गांधी ने दावा किया की 10 से 15 उद्‌द्योगपतियों के करीब 14 लाख करोड़ ऋण को सरकार द्वारा माफ कर दिया गया है.

उन्होंने कहा, “उद्‌द्योगपतियों को आसानी से बैंकों से कर्ज मिल जाता है. लेकिन वहीं अगर आदिवासी किसान या अन्य समुदाय का कोई व्यक्ति उधार लेना चाहे तो उन्हें सरकारी व्यवस्थाओं में उलझा दिया जाता है.”

राहुल गांधी जब जातिगत जनगणना की बात करते हैं तो उनका ज़ोर ओबीसी वर्ग की गिनती पर ज़्यादा रहता है.

लेकिन आदिवासी भी जनगणना में अलग से अपनी पहचान को दर्ज करने की मांग कर रहे हैं.

आदिवासियों से जुड़े आंकड़े आदिवासी पहचान और विकास के लिए शायद अन्य वंचित वर्गों से ज़्यादा ज़रूरी हैं.

क्योंकि आदिवासी समुदायों में कई ऐसे समुदाय हैं जिनके विलुप्त होने तक का ख़तरा बताया जाता है.

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