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मानगढ़ हिल पर मारे गए आदिवासियों को श्रद्धांजलि या उनके नाम पर वोट बटोरने का प्लान

आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पहुंच मजबूत करने के लिए राजनीतिक दल तरह-तरह के दांव खेल रहे हैं. जहां एक तरफ राजस्थान के डूंगरपुर में राज्य बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया ने रोड शो किया, वहीं दूसरी तरफ अब सत्तारूढ़ कांग्रेस 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर डूंगरपुर के मानगढ़ हिल में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित कर रही है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 1913 में अंग्रेजों द्वारा मानगढ़ हिल में मारे गए 1,500 से ज़्यादा भील आदिवासियों के प्रति सम्मान व्यक्त करेंगे. पार्टी पदाधिकारियों ने डूंगरपुर में एक बैठक की और पार्टी कार्यकर्ताओं को कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आक्रामक तरीके से काम करने का निर्देश दिया है.

पार्टी के एक सूत्र ने कहा, “पार्टी ने उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रताप नगर से लोगों को लाने-ले जाने के लिए 1,000 से अधिक चौपहिया वाहनों की व्यवस्था की है. गुजरात और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में मानगढ़ हिल पर लोगों को बुलाने के लिए अपने नेटवर्क को सक्रिय किया है.”

उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस पार्टी की ताकत का प्रदर्शन होने जा रहा है.

वहीं स्थानीय राजनीतिक दल भारतीय ट्राइबल पार्टी ने विश्व आदिवासी दिवस मनाने के लिए हर तहसील में रैलियों की योजना बनाई है. बीटीपी के प्रदेश अध्यक्ष वेला राम घोगरा ने कहा कि कांग्रेस इस अवसर को एक राजनीतिक स्टंट के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जिससे आदिवासियों की भावनाएं आहत हुई हैं.

उन्होंने कहा, “पिछले 20 सालों से मैं, अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए मारे गए उन आदिवासियों को सम्मान देने के लिए इस दिन मानगढ़ हिल का दौरा कर रहा हूं. यह पहला साल होने जा रहा है जहां कार्यक्रम के राजनीतिकरण के कारण मैं उस जगह का दौरा नहीं करूंगा.”

कार्यक्रम के विरोध में आदिवासी दल डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर की सभी तहसीलों में विश्व आदिवासी दिवस मनाएगा. घोगरा ने कहा, “हमारी पार्टी के नेता आदिवासियों को बताएंगे कि कैसे कांग्रेस और बीजेपी ने हमेशा उन्हें जयपुर और दिल्ली में सत्ता पर काबिज होने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है.”

मानगढ़ हिल आदिवासी नरसंहार

राजस्थान-गुजरात की सीमा पर अरावली पर्वत श्रृंखला में करीब एक सदी पहले अंग्रेजों द्वारा 17 नवंबर, 1913 को एक बर्बर आदिवासी नरसंहार को अंजाम दिया गया था. भील आदिवासियों के मौखिक इतिहास के मुताबिक मानगढ़ टेकरी पर अंग्रेजी फौज ने आदिवासी नेता और सुधारक गोविंद गुरु के 1,500 समर्थकों को गोलियों से भून दिया था.

लेकिन भील आदिवासियों के कत्लेआम का जिक्र ना ही इतिहास की किताबों में मिलता है और ना ही नेताओं के भाषणों में.

दरअसल जब ब्रिटेन की पीएम टेरेसा मे ने जलियांवाला बाग नरसंहार को ब्रिटिश भारत के इतिहास पर एक शर्मनाक धब्‍बा बताया था, तभी राजस्‍थान के एक आदिवासी समुदाय ने मांग की थी कि ब्रिटेन उनके पूर्वजों के हत्‍याकांड पर माफी मांगे. इन लोगों का दावा है कि अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड से करीब साढ़े पांच साल पहले हुए इस हत्‍याकांड में जलियांवाला बाग से ज्‍यादा आदिवासी अंग्रेज सैनिकों के हाथों शहीद हुए थे, लेकिन इसे इतिहास ने भुला दिया.

बीटीपी के राजस्‍थान यूनिट के अध्‍यक्ष वेला राम घोगरा का कहना है, “आदिवासियों ने स्‍थानीय जमींदारों को कर देने से मना कर दिया था. वे कोलोनियल ताकतों के हाथों अपनी संस्‍कृति बर्बाद किए जाने की कोशिशों का भी विरोध कर रहे थे. इन्‍हें दिनदहाड़े ब्रिटिश सेना ने मार डाला, क्योंकि अंग्रजों को स्‍थानीय जमींदारों का समर्थन था, इसलिए इस घटना को जलियांवाला बाग जैसी प्रसिद्धि नहीं मिली.”

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