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मुख्यमंत्री ने आदिवासियों को बैठक में बनाया शोपीस, पुलिस ने दर्ज कर दी एफआईआर

मध्य प्रदेश के गुना जिले की खानाबदोश जनजाति के रहने वाले तुलसीराम कंजर और उम्मेद सिंह कंजर को विमुक्त जाति सम्मेलन 2021 में हिस्सा लेने के लिए 31 अगस्त को मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में बुलाया गया था. जब वे घर लौटे तो दोनों के खिलाफ जिले के सौकन्या गाँव में अवैध रूप से कई लीटर कच्ची शराब रखने के लिए मध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम 1915 की धारा 34 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

तुलसीराम उन 10 मेहमानों में से एक थे जिन्हें गुना जिले के मुख्यमंत्री आवास में सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. जबकि उम्मेद सिंह को गुना कलेक्टर ने सम्मेलन में बुलाया था.

पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक तुलसीराम के घर से 80 लीटर और उम्मेद सिंह के घर से 35 लीटर कच्ची शराब मिली. उन पर धारा 34 (2) (गैरकानूनी निर्माण, परिवहन, कब्जा, शराब की बिक्री) के तहत आरोप लगाया गया था. जिसमें एक साल तक की कैद और पांच हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है. 

हालांकि दोनों आरोपियों ने आरोप लगाया कि पुलिस उन्हें व्यक्तिगत प्रतिशोध के चलते झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश कर रही है. तुलसीराम ने कहा, “राघोगढ़ पुलिस स्टेशन के नगर निरीक्षक, गुना जिले के विनोद छवि हमारे खिलाफ एक व्यक्तिगत शिकायत रखते हैं. क्योंकि हमने उनके खिलाफ रिश्वत का मामला दर्ज किया है और कुछ महीने पहले सीएम की हेल्पलाइन को इसकी सूचना दी थी.”

तुलसीराम का भाई रोहित कंजर रिश्वत मामले में गवाह है जबकि उम्मेद शिकायतकर्ता है.

तुलसीराम ने कहा, “वो हमें शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर कर रहे थे और हमके धमकी मिली थी कि ऐसा नहीं किया तो हमें फंसाया जाएगा.”

वहीं गुना के एसपी राजीव कुमार मिश्रा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि राज्य में जहरीली शराब से मौत के मामले बढ़ने के बाद पुलिस सतर्क है और उन इलाकों में छापेमारी कर रही है जहाँ ऐसी शराब बनाई गई थी. 31 अगस्त को पुलिस ने उनके गाँव में छापा मारा. इस दौरान तुलसीराम और उम्मेद सहित सात लोगों पर अवैध शराब रखने के आरोप में मामला दर्ज किया.

दोनों आरोपियों ने इसे फर्जी मामला बताते हुए पुलिस कार्रवाई के खिलाफ गुना के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर निष्पक्ष जाँच की मांग की है.

भोपाल स्थित आपराधिक न्याय और पुलिस जवाबदेही (CPA) परियोजना के एक हालिया स्टडी के मुताबिक 1 जनवरी, 2018 से 31 दिसंबर, 2020 के बीच तीन जिलों – भोपाल, जबलपुर और बैतूल में आबकारी अधिनियम 1915 के तहत 64 फीसदी से अधिक मामले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और खानाबदोश और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लोगों के खिलाफ हैं दर्ज किए गए.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने पिछले हफ्ते 113 पेज की रिपोर्ट ‘ड्रंक ऑन पावर- ए स्टडी ऑफ एक्साइज पुलिसिंग इन मध्य प्रदेश’ जारी की थी.

उत्पाद शुल्क अधिनियम भारत में शराब के निर्माण, हस्तांतरण और कब्जे को विनियमित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनी साधन हैं.

मध्य प्रदेश में यह एमपी आबकारी अधिनियम, 1915 के ढांचे के भीतर होता है. कानून सार्वजनिक शराब पीने का अपराधीकरण की श्रेणा में नहीं आता है. लेकिन आबकारी अधिनियम के तहत सार्वजनिक रूप से शराब पीने के लिए बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां की जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप जेल और जुर्माना हो सकता है. 

अधिनियम में महुआ शराब को विनियमित करने के लिए विशेष प्रावधान भी हैं जो आमतौर पर आदिवासी आबादी द्वारा बनाई और खपत की जाती है.

रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि 540 एफआईआर में से 33 फीसदी महुआ शराब से संबंधित हैं. अधिनियम के तहत ज्यादातर आरोपी व्यक्ति बड़े शराब माफिया नहीं हैं. बल्कि हाशिए के समुदायों से देसी शराब के छोटे बैग ले जाने वाले व्यक्ति हैं. 

स्टडी से यह भी पता चलता है कि महुआ शराब के 25 फीसदी मामलों में आरोपी घरों या अन्य निजी स्थानों में पाए गए है. 

सीपीए प्रोजेक्ट की सह-संस्थापक और वकील निकिता सोनवणे ने कहा, “एफआईआर के अध्ययन से पता चलता है कि औपनिवेशिक आबकारी कानून – 1915 राज्य में स्थापित शराब माफियाओं को रोकने में विफल रहा है. लेकिन इसका इस्तेमाल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, खानाबदोश और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के सदस्यों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है जो अपनी पारंपरिक शराब (महुआ) कम मात्रा में बनाते हैं.” 

रिपोर्ट में कहा गया है, “देसी शराब से संबंधित सभी एफआईआर में से करीब 73 फीसदी (394 एफआईआर) में 1 से 10 लीटर की सीमा के भीतर शराब शामिल है. अगर विदेशी शराब से संबंधित एफआईआर की संख्या देखे तो सभी के करीब तीन-चौथाई (74 फीसदी) प्राथमिकी 1-10 लीटर शराब से संबंधित हैं. 4-5 लीटर (17.6 फीसदी).” 

1 से 10 लीटर के दायरे में देसी शराब रखने के संबंध में 394 प्राथमिकी में अपराधी व्यक्तियों के सामाजिक स्थानों के विश्लेषण से निम्नलिखित का पता चलता है: 67 प्राथमिकी में अभियुक्त अनुसूचित जाति समुदाय के थे, 76 प्राथमिकी में अभियुक्त अनुसूचित जनजाति समुदाय के थे, 51 प्राथमिकी विमुक्त समुदाय की थी और 73 प्राथमिकी ओबीसी समुदाय की थी. 

15 एफआईआर संभावित रूप से हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों को अपराधी बनाती हैं. 36 एफआईआर सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को अपराधी बनाती हैं और 76 एफआईआर उन व्यक्तियों को अपराधी बनाती हैं जो शायद सामान्य हैं. इसलिए 1 से 10 लीटर की रेंज में देसी शराब से जुड़े कम से कम 282 एफआईआर हाशिए के समुदाय के सदस्यों को अपराधी बनाते हैं. 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट से पता चलता है कि शराब से संबंधित विशिष्ट अपराधों के मामले में मध्य प्रदेश तमिलनाडु और गुजरात के ठीक बगल में है.

यह पुलिस एफआईआर के एक पैटर्न का भी खुलासा करता है – पुलिस हमेशा गुप्त सूचना पर इलाके में छापेमारी करती है और जब्ती के दौरान चश्मदीद गवाह हर दूसरे और तीसरे मामले में आम है.

कार्यकर्ता और पत्रकार दयामणि बारला ने कहा, “दलित और आदिवासी समुदाय के सदस्य महुआ का उत्पादन और उपभोग कम मात्रा में करते हैं. वे खेतों में काम करते समय हीट स्ट्रोक को रोकने के लिए दवा के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं. इसका इस्तेमाल वो त्योहारों में भी करते हैं. शराब का व्यावसायीकरण उनके द्वारा नहीं बल्कि शराब कारोबारी और माफियाओं द्वारा किया जाता है. वे इसे थोक में नशीले पदार्थ के रूप में बनाते हैं और सरकार उन्हें इसका लाइसेंस देती है. 

उन्होंने कहा, “वे जिन्हें हमारी जमीनों और जंगलों से खदेड़ दिया गया है गरीबी और उत्पीड़न के चलते सड़कों पर 3-4 लीटर शराब बेचते हैं. लेकिन आबकारी अधिनियम के तहत उन्हें सताया जाता है. क्या आबकारी कानून कभी इन बैरन पर लागू होता है? यह अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न है.”

CPA प्रोजेक्ट के एक विश्लेषण से पता चला है कि पहले कोविड-19 लॉकडाउन (22 मार्च- 31 मई, 2020) के दौरान आबकारी से संबंधित अपराधों ने मध्य प्रदेश में सभी गिरफ्तारियों में से छठे स्थान पर योगदान दिया.

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