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हेमंत सोरेन के खिलाफ आदिवासियों में बढ़ी नाराजगी, अधिकार रैली में उमड़े हज़ारों लोग

झारखंड में सरना धर्म कोड और कुड़मी महतो के अनूसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की मांग पर राज्य की हेमंत सोरेन सरकार की मुश्किलें बढ़ने वाली है. अब झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक चमरा लिंडा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और अपनी ही पार्टी झामुमो पर निशाना साधा है. इसके लिए आज रांची के प्रभात तारा मैदान में आदिवासी अधिकार महारैली का आयोजन किया गया.

जिसमें राज्य भर से हजारो आदिवासियों ने हिस्सा लिया. रैली में चमरा लिंडा के साथ झामुमो के एक और विधायक प्रोफेसर जिगा सुसारण होरो ने भी हिस्सा लिया.

रैली के दौरान आदिवासी मुद्दों से जुड़ी 16 सूत्री मांगे रखी गई. इनमें कुरमी महतो जाति को आदिवासी में शामिल करने पर रोक, जनगणना फॉर्म में सरना कोड की मांग, गैर आदिवासी पुरूष से विवाह के बाद बच्चों को नहीं मिले अनुसूचित जनजाति आरक्षण,  गैर आदिवासी से विवाहित महिला को मुखिया, प्रमुख, अध्यक्ष, जिला परिषद का पद नहीं दें, आदिवासी जमीन का हस्तांतरण की नियमावली बनाओ, बैकलॉग नौकरी में आदिवासी को भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू करने और प्राथमिक विद्यालय में आदिवासी भाषा की पढ़ाई जैसी मांगे शामिल है.

इसके अलावा सीएनटी एक्ट और पांचवी अनुसूची दोनों कानून को अलग करने, लोहरा, लोहार, कमार, करमाली को आदिवासी की सूची में शामिल करने के लिए ट्राइबल रिसर्च इंस्चटियूट में समीक्षा शुरू हो, पेसा एक्ट में ग्राम सभा को अधिकार देने, ट्राइबल सबप्लान के पैसों के खर्च की नियमावली बनाने,  शेड्यूल एरिया रेगुलेशन एक्ट के प्रावधान बनाने और आदिवासी मानव तस्करी रोकने के लिए कानून की मांग शामिल है.

हेमंत सोरेन की मुश्किलें कम होती नज़र नहीं आ रही है. क्योंकि झामुमो विधायकों का बगावती तेवर सामने आ रहा है. पहले से ही झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, अब इस लिस्ट में विधायक चमरा लिंडा भी शामिल हो गए हैं.

चमरा लिंडा ने प्रभात तारा मैदान में कहा कि झारखंड में कहने के लिए आदिवासियों की सरकार है लेकिन आज भी सबसे ज्यादा हाशिये पर राज्य के आदिवासी ही हैं. उन्होंने कहा कि तीन साल में आदिवासियों के हित में सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार है फिर भी आदिवासियों को अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

ये पहली बार नहीं है जब आदिवासी समुदाय हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ है. राज्य में लंबे वक्त से आदिवासी राज्य सरकार से नाराज है और आए दिन अपने अधिकारों के लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन और रैली कर रहे हैं.

एक तरफ आदिवासी लंबे समय से सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. लेकिन अभी तक ये लागू नहीं हुआ है. दरअसल, राज्य की सत्ता में आते ही हेमंत सोरेन सरकार ने विधानसभा में ‘सरना आदिवासी धर्म कोड बिल’ सर्वसम्मति से पास कर केंद्र सरकार को भेजा था. झारखंड सरकार ने कहा था कि इसके जरिए आदिवासियों की संस्कृति और धार्मिक आजादी की रक्षा की जा सकेगी. लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है.

वहीं दूसरी तरफ अदिवासी सेंगल अभियान की एक महीने लंबी यात्रा पारसनाथ पहाड़ी या ‘मारंग बुरु’ को मुक्त कराने के लिए देशभर में समर्थन जुटाने के लिए निकाली जा रही है. आदिवासी पारसनाथ पहाड़ी को अपने समुदाय का सबसे पवित्र स्थल ‘जेहेर्थान’ मानते हैं.

इतने संवेदनशील मसले पर अपनी पार्टी की निराश करने वाली भूमिका से तंग आकर झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेम्ब्रम ‘मरांग बुरु बचाओ अभियान’ के अग्रणी में शामिल हो गए और उन्होंने एक बयान में कहा था कि मरांग बुरु, पारसनाथ पहाड़ी ज़माने से यहां के आदिवासी-मूलवासियों का रहा है, आज इसका अधिकार हमें नहीं मिला तो अपनी सरकार को भी आईना दिखाया जाएगा. हेमंत सोरेन चाहें तो हमें पार्टी से हटा सकते हैं, माटी से नहीं हटा सकते.

आदिवासी वोट बैंक

2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में 32 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदायों से है. यहां प्रमुख आदिवासी समुदायों में मुंडा, संथाल, गोंड, ओरांव, कंवर, असुर, बिरहोर,बैगा, हो, कोरा, कोरवा, परहिया, भूमिज शामिल है. राज्य की कुल 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यानी  राज्य में सत्ता तक पहुंचने के लिए आदिवासी समुदाय का समर्थन बेहद ज़रूरी है.

झारखंड में अगले साल यानी 2024 में आम चुनावों के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी होने है. ऐसे में ये माना जा रहा है कि राज्य के कई संगठन और नेता आदिवासी-मूलवासी के मुद्दे को उठाकर इस वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रहे है.

2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन ने कुल 81 सीटों में से 47 सीटों पर कब्जा किया था. जबकि बीजेपी ने 27 सीटें जीती थी. वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने 25 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा के हाथ सिर्फ दो सीटें ही आई थीं.

यहां तक कि साल 2019 में सोरेन की चुनावी सफलता के पीछे रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ आदिवासियों की नाराजगी को ही एक बड़ी वजह माना गया था. लेकिन इस बार स्थिति अलग नज़र आ रही है और आदिवासी समुदाय हेमंत सरकार से कई मुद्दों पर नाराज दिख रही है.

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