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आधुनिक समाज से दूर, एक उपेक्षित आदिवासी बस्ती की कहानी

काट्टुनायकर और मुदुवान आदिवासी समुदायों के तीन परिवार कक्कडमपोयिल पहाड़ियों पर आधुनिक समाज से दूर लगभग पूरी तरह से उपेक्षित ज़िदगी जी रहे हैं. इन परिवारों के बच्चे यह तक नहीं जानते कि ऑनलाइन शिक्षा आखिर है क्या. यह परिवार दशकों से यहां रह रहे हैं.

चलियार ग्राम पंचायत के तोट्टपल्ली वन क्षेत्र में सुप्रीकाट आदिवासी बस्ती के यह दर्जन भर सदस्य तिरपाल के शेड में रहते हैं.

केरल सरकार द्वारा पूरे राज्य में बांटी जाने वाली राशन की किट इन्हें नहीं मिलती. तीन में से दो परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है, न ही इनके पास अपनी कोई ज़मीन है.

बस्ती तक पक्की सड़क के अभाव में, इस छोटे से गांव तक पहुंचने के लिए 7 किमी का ट्रेक करना पड़ता है. ऐसे में मदद यहां कम ही पहुंचती है.

सुप्रीकाट आदिवासी बस्ती में बिजली की आपूर्ति भी नहीं है. हालांकि केरल राज्य बिजली बोर्ड (केएसईबी) ने गांव तक बिजली की लाइनें लगाई हैं, लेकिन अब तक कनेक्शन नहीं दिया गया है.

इंटिग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (आईटीडीपी) की ओर से इस गांव की प्रभारी शीला वीनू ने एक अखबार से बातचीत में दावा किया है कि वो बस्ती के निवासियों से मिलती हैं, और नियमित रूप से उनकी देखभाल करती हैं. लेकिन आदिवासी उनके दावे को ग़लत बताते हैं.

बस्ती के बच्चों बाबूराज (कक्षा 5), विष्णु (कक्षा 3), सुजीश (कक्षा 3), अखिल कृष्णन (कक्षा 2) और अस्वती (किंडरगार्टन) को पता ही नहीं है कि स्कूल छुट्टी के बाद फिर से शुरु हो गया है. उनके पास ऑनलाइन पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं है.

ऑफ़लाइन पढ़ाई के लिए स्कूल खुलने के बाद भी इन बच्चों का ट्राइबल लोअर प्राइमरी स्कूल तक पहुंचना नामुमकिन ही है, क्योंकि उन्हें उसके लिए दो नदियां पार करनी होंगी.

इलाक़े की वॉर्ड मेंबर ग्रीष्मा प्रवीण का कहना है कि गांव में बिजली पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. बच्चों की पढ़ाई के बारे में वो कहती हैं कि आईटीडीपी ने इन आदिवासी परिवारों के लिए एक स्टडी सेंटर स्थापित करने के लिए फ़ंड की पेशकश की थी, लेकिन आदिवासियों ने इस मदद से इंकार कर दिया.

यह परिवार इस ज़मीन और इस बस्ती को छोड़कर कहीं और बसना भी नहीं चाहते.

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