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आंध्र प्रदेश में आदिवासियों की जबरन परिवार नियोजन सर्जरी पर बवाल

पिछले हफ्ते आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामाराजू (एएसआर) जिले के मुंचिंगपुट और पेडाबयालु के विभिन्न गांवों से लगभग 500 आदिवासी लोगों को बसों में भरकर विशाखापत्तनम के एक निजी अस्पताल ले जाया गया. इन सभी आदिवासियों, विवाहित पुरुष और महिलाएं, की उम्र 30 से थोड़ी ज़्यादा है. इन्हें परिवार नियोजन सर्जरी के लिए शहर ले जाया गया था.

इस सर्जरी के पीछे के इरादे के बारे में संदेह तब पैदा हुआ, जब इन आदिवसियों को सर्जरी के सफल समापन पर ₹ 5,000 का वादा किया गया, और कहा गया कि उन्हें 15 दिनों तक अस्पताल में निगरानी में रहने की ज़रूरत है.

दरअसल, आज के दौर में परिवार नियोजन प्रक्रिया सबसे सरल सर्जरी में से एक है. आजकल यह सर्जरी एक घंटे में हो जाती है, और इसके एक दिन बाद व्यक्ति को छुट्टी दे दी जाती है. लेकिन इस मामले में आदिवासी लोगों से कहा गया कि उन्हें 15 दिनों तक निगरानी में रहने की जरूरत है. आंध्र प्रदेश आदिवासी संयुक्त कार्रवाई समिति के जिला संयोजक राम राव डोरा ने कहा कि यह बहुत ही संदिग्ध है.

“आदिवासी लोगों को 15 दिनों तक निगरानी में रखने की क्या ज़रूरत है. इसके अलावा, उन्हें विशाखापत्तनम शहर क्यों ले जाएं, जब एजेंसी क्षेत्र में ही परिवार नियोजन प्रक्रिया के लिए कई सुविधाएं हैं,” उन्होंने द हिंदू से बात करते हुए पूछा.

डोरा ने कहा कि पडेरू में जिला अस्पताल, अरकू और चिंतापल्ली में क्षेत्रीय अस्पताल और मुंचिंगपुट में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) है. “इन सभी जगहों पर परिवार नियोजन प्रक्रिया की सुविधा है. इन सबी केंद्रों पर इस तरह की सर्जरी बिना किसी रोक-टोक के की जा रही है. इसके अलावा, हर मंडल में कम से कम दो से तीन पीएचसी हैं जहां इस तरह की सर्जरी की जा सकती है.

निजी अस्पताल ले जाए गए कुछ आदिवासी लोगों के अनुसार, अस्पताल के अधिकारियों ने उन्हें बताया कि यह प्रक्रिया विशाखापत्तनम के किंग जॉर्ज अस्पताल (केजीएच) में की जाएगी, जो पूरे उत्तरी आंध्र क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी रेफरल अस्पताल है. लेकिन, उन्हें सीधे एक दूसरे निजी अस्पताल ले जाया गया.

मुंचिंगपुट और पेडाबयालु के कुछ आदिवासी लोगों के अनुसार, निजी अस्पताल एजेंसी क्षेत्रों में मुफ्त चिकित्सा शिविर आयोजित कर रहा था और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद से अस्पताल के अधिकारियों ने परिवार नियोजन प्रक्रिया की बात आदिवासियों के सामने रखी. गड़बड़ी की आशंका के चलते, आईटीडीए परियोजना अधिकारी के सामने मामला उठाया गया है.

पडेरू आईटीडीए के परियोजना अधिकारी रोनांकी गोपालकृष्ण ने अखबार को बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में लाया गया है. उन्होंने माना की मुद्दा गंभीर है, इसलिए उन्होंने डीएम एंड एचओ और एडीएम एंड एचओ को इस पर गौर करने और दो दिनों के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है.

राम राव डोरा का कहना है कि इस समय एजेंसी क्षेत्रों में किसी भी परिवार नियोजन प्रक्रिया की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि राज्य के विभाजन (तेलंगाना के अलग होने के बाद) के बाद आदिवासी लोगों का जनसंख्या घनत्व 300 प्रति वर्ग किमी से घटकर लगभग 40 प्रति वर्ग किमी रह गया है.

(तस्वीर प्रतीकात्मक है)

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