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पद्मलपुरी काको मंदिर में नई मूर्ति की स्थापना का आदिवासियों ने किया विरोध

तेलंगाना के मंचेरियल ज़िले के दांडेपल्ली ब्लॉक के गुडीरेवु में आदिवासियों के पवित्र पूजा स्थल पद्मलपुरी काको मंदिर में एक नई मूर्ति की स्थापना से इलाक़े के आदिवासी नाराज़ हैं. उनका कहना है कि उनके मंदिर में स्थापित की गई मूर्ति हिंदुओं की देवी तेलंगाना तल्ली से मेल खाती है.

पद्मलपुरी काको मंदिर आदिवासियों के सबसे पवित्र पूजा स्थलों में से एक है, क्योंकि यह उनकी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है. एत्मासुर पेन का यह मंदिर देश में सिर्फ़ दो ऐसे मंदिरों में से एक है.

इस मंदिर में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के आदिवासी श्रद्धालु भी आते हैं. एत्मासुर पेन गुसाड़ियों के देवता हैं, और आदिवासी गुसाड़ियों को पवित्र मानते हैं.

यहां आने वाले ज़्यादातर आदिवासी मोर के पंखों से बनी गुसाड़ी टोपी और अपनी पारंपरिक पोशाकें पहनकर पद्मलपुरी काको मंदिर में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ अपने दिवाली त्योहार का समापन करते हैं. गोंडी भाषा में काको का मतलब दादी होता है.

गुसाड़ी टोपी और पारंपरिक पोशाकें पहने आदिवासी

कई आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि तेलंगाना तल्ली जैसी दिखने वाली मूर्ति को मंदिर समिति ने शनिवार रात कुछ टीआरएस नेताओं के संरक्षण में गुप्त रूप से स्थापित किया था. आदिवासी नेताओं ने कहा कि वे इसका पुरज़ोर विरोध करेंगे क्योंकि यह कदम उनकी संस्कृति पर हमला है.

आदिवासियों का यह भी आरोप है कि कुछ टीआरएस नेताओं के कहने पर मंदिर समिति ने पद्मलपुरी काको की प्राचीन मूर्ति की उपेक्षा कर नई मूर्ति को स्थापित करने के लिए उसे और पीछे शिफ़्ट कर दिया.

आदिवासी कहते हैं कि स्थानीय मंदिर समितियों को आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और पवित्र स्थानों को गैर-आदिवासियों द्वारा अतिक्रमण से बचाने के महत्व को समझना चाहिए. राज्य भर के आदिवासियों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर संदेशों के जरिए अपना गुस्सा जाहिर किया है.

आदिवासियों ने मंदिर समिति के सदस्यों से नई स्थापित मूर्ति को पद्मलपुरी काको की पुरानी मूर्ति से वापस बदलने की अपील की है. उन्होंने चेतावनी भी दी कि आदिवासी एक समुदाय के रूप में दीवाली के बाद आगे की कार्रवाई पर फैसला लेंगे.

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