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RSS से जुड़े संगठन ने धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षित एसटी श्रेणियों से हटाने के लिए विधेयक की मांग की

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा समर्थित एक संगठन – गुजरात जनजाति सुरक्षा मंच (Gujarat Janjati Suraksha Manch) ने शनिवार को अहमदाबाद में एक रैली आयोजित की गई. रैली में आरक्षित अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) श्रेणी से उन आदिवासियों को हटाने की मांग की गई जो दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गए हैं या मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं.

इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने मांग की कि संसद उनके डीलिस्टिंग के लिए एक विधेयक पारित करे और चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो वे अपना विरोध नई दिल्ली तक ले जाएंगे.

वक्ताओं में मध्य प्रदेश के वर्तमान न्यायिक अधिकारी प्रकाश कुमार उइके थे. इस आयोजन के लिए गुजरात के विभिन्न हिस्सों से लाए गए सैकड़ों आदिवासियों की सभा को संबोधित करते हुए उइके ने कहा कि जो आदिवासी ईसाई या इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं वे अन्य आदिवासियों के बच्चों को आरक्षण के लाभ से वंचित कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “या तो आप ईसाई या मुस्लिम हो सकते हैं या आप एक अनुसूचित जनजाति हो सकते हैं … हमारे बच्चे आईएएस या आईपीएस अधिकारी नहीं बनते हैं लेकिन एक धर्म परिवर्तित व्यक्ति बन जाता है. वे हमारे अधिकारों को छीन रहे हैं. हम (आदिवासी) 12 करोड़ होने जा रहे हैं और हमें 7.5 फीसदी आरक्षण मिलता है.”

1965 की लोकुर समिति की रिपोर्ट, जिसमें मानदंड परिभाषित किया गया है कि आदिवासी कौन हैं? इसका उल्लेख करते हुए प्रकाश उइके ने कहा, “लोकुर समिति ने कहा कि आदिवासियों के रूप में माने जाने के लिए उन्हें पाँच मानदंडों में अर्हता प्राप्त करने की आवश्यकता है. एक यह था कि उन्हें पारंपरिक रूप से आदिवासी रीति-रिवाजों और चरित्र का पालन करना चाहिए. लेकिन एक परिवर्तित व्यक्ति ऐसा नहीं करता है. दूसरा वे (आदिवासी) दूर-दराज के इलाकों में रहते हैं. समाज से जल्दी घुल-मिल नहीं पाते. तीसरा हमारी अपनी संस्कृति है, जो हमारा अस्तित्व और गौरव है. धर्मांतरितों ने अपनी संस्कृति को समाप्त कर दिया है और हमारी संस्कृति को समाप्त करना चाहते हैं.”

हांलाकि इसी भाषण में ही वे आदिवासियों के हिन्दू धर्म को अपना लेने को जस्टिफाई करते हुए नज़र आए. उन्होंने यह दावा किया कि सभी आदिवासी जन्म से हिंदू हैं.

उइके ने आगे कहा, “अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो यह रैली अहमदाबाद से दिल्ली जाएगी. कुछ कहते हैं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं और उन्हें एक अलग धर्म कोड के तहत रखने के लिए कहते हैं. ये हमारे समाज को गुमराह कर रहे हैं. 70 साल से ये हमें गुमराह कर रहे हैं. मैं आपको बताता हूं कि आदिवासी कैसे हिंदू होते हैं. हम सनातन संस्कृति के लोग हैं. हम ही हैं जिन्होंने राम को भगवान राम बनाया और विभाजनकारी ताकतें हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से अलग कर हमारे अस्तित्व को खत्म करना चाहती हैं.”

निष्ठा स्वामीनारायण गुरुकुल से जुड़े हलोल के संत प्रसाद स्वामी ने अपने संबोधन में धर्म परिवर्तन को कैंसर जैसी बीमारी के बराबर बताया.

संत प्रसाद का दावा है कि गुजरात में तापी जिले की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी धर्मांतरित ईसाइयों से बनी है. उन्होंने कहा, “आज तापी जिले में सरकारी रिकॉर्ड में ईसाई आबादी 1 से 2 प्रतिशत के रूप में दिखाई जाती है लेकिन वास्तव में 50 प्रतिशत से अधिक लोग वहां चोरी-छिपे और षड़यंत्र से ईसाई बन गए हैं…”

उन्होंने आगे कहा, “धर्म परिवर्तन कैंसर जैसी एक छिपी हुई बीमारी है और जब इसके बारे में आपको पता चलता है तब यह चौथी अवस्था में होता है और रोगी को बचाया नहीं जा सकता. धर्म परिवर्तन आदिवासियों के लिए न केवल एक समस्या है बल्कि यह समाज को, समाज की आस्था को, समाज के आदर्शों और संस्कृतियों को बदलता है.”

RSS से जुड़े संगठन लंबे समय से आदिवासी इलाकों मे हिंदुत्व का प्रचार करने के लिए काम कर रहे हैं. इस क्रम में ये संगठन ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले संगठनों को अपना शत्रु मानते हैं.

हाल ही में यह देखा जा रहा है कि RSS के संगठन आदिवासी इलाक़ों में डिलिस्टिंग के बहाने धर्म परिवर्तन को सेंटर स्टेज पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.

गुजरात चुनाव से पहले भी तापी और डांग ज़िले में ऐसे आयोजन बड़ी संख्या मे किये गए थे. इसके अलाव छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड में लगातार ये मुद्दे उछाले जा रहे हैं.

पिछले महीने ही ओडिशा और असम में भी इस तरह के कार्यक्रम देखे गए थे. ऐसा लगता है कि केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद RSS के संगठन आदिवासी इलाकों में धर्मातंरण के मुद्दे पर ज़्यादा आक्रमक हुए हैं.

आदिवासी इलाक़ों में जल, जंगल, ज़मीन और संवैधानिक और क़ानून हक़ों के लिए लड़ने की बजाए डिलिस्टिंग जैसे मुद्दों पर आदिवासियों को गोलबंद करने की कोशिश की जा रही है.

इस तरह के मुद्दे हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाक़े में हिंसा का कारण बन चुके हैं.

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