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ईसाई के साथ फ़ोटो खिंचवाना पड़ा महँगा, बीजेपी आदिवासी विधायक ट्रस्ट से बाहर हुए

दक्षिण गुजरात के आदिवासी बहुल डांग ज़िले के एक मंदिर ट्रस्ट से एक आदिवासी विधायक को हटा दिया गया है. डांग के सबरी धाम मंदिर ट्रस्ट ने जिस विधायक को हटाया है वह बीजेपी के ही विधायक हैं.

ट्रस्ट के इस कदम से यह अहसास होता है कि आदिवासियों के गढ़ डांग में बीजेपी और आरएसएस के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दरअसल सबरी धाम मंदिर के संस्थापक और कर्ता धर्ता स्वामी असीमानंद हैं.

असीमानंद मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर दरगाह बम धमाकों में अभियुक्त थे. हालाँकि वो अदालत से सभी मामलों में बरी हो चुके हैं. असीमानंद आरएसएस के आदिवासी संगठन वनवासी कल्याण परिषद चलाते हैं और सबरी धाम मंदिर के पास ही रहते हैं. 

बीजेपी के आदिवासी विधायक को ट्रस्ट से हटाने की वजह एक फ़ोटो है. दरअसल डांग के बीजेपी विधायक विजय पटेल एक फ़ोटो में सबरी धाम की मूर्तियों के पास कुछ ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों के साथ नज़र आ रहे हैं.

बाएँ से दूसरे हैं बीजेपी के विधायक

जानकारी के अनुसार इस फ़ोटो में एक आदिवासी नेता जगदीश गावित हैं और दूसरे बीजेपी के महासचिव राजेश गामित हैं. यह तस्वीर 6 जून की बताई जा रही है और 8 जून को बीजेपी के विधायक को ट्रस्ट से हटा दिया गया है. 

मंदिर ट्रस्ट के सदस्य किशोर गावित ने इस बारे में कहा है कि जगदीश गावित आदिवासी समुदाय से ही हैं और वो ज़िला पंचायत उपाध्यक्ष निर्मला गावित के पति हैं. राजेश गामित भी आदिवासी समुदाय के ही हैं.

अब गुजरात के विधान सभा चुनाव में कुछ ही महीने का समय बचा है. बीजेपी ने राज्य के आदिवासी इलाक़ों में पूरा ज़ोर लगा रखा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ख़ुद कई रैलियों को संबोधित कर चुके हैं.

लेकिन मंदिर ट्रस्ट के सदस्य किशोर गावित कहते हैं कि इस ट्रस्ट का उद्देश्य आदिवासियों में धर्मांतरण को रोकना है. समिति हिंदू आदिवासियों को ईसाई बनने से रोकना चाहती है और जो ईसाई बन चुके हैं उनकी हिंदू धर्म में वापसी कराना चाहती है. 

उन्होंने बताया कि स्वामी असीमानंद की अध्यक्षता में हुई बैठक में समिति ने बीजेपी विधायक को समिति से हटाने का फ़ैसला किया था. उनका कहना था कि क्योंकि विधायक समिति के सिद्धांतों के प्रतिकूल आचरण कर रहे थे.

बीजेपी विधायक का कहना है कि उन्हें समिति से निकाले जाने के फ़ैसले को वो स्वीकार करते हैं. लेकिन बेहतर होता कि उन्हें सफ़ाई का मौक़ा दिया जाता. 

बीजेपी चुनाव को ध्यान में रख कर आदिवासी इलाक़ों में खूब ज़ोर लगा रही है.

लेकिन उसके लिए काम इतना आसान नहीं है. हाल ही में आदिवासी संगठनों ने गुजरता सरकार को पार-तापी नर्मदा नदी जोड़ परियोजना को रद्द करने पर मजबूर कर दिया था. इसके अलावा बीजेपी का समर्थन करने वाले कई संगठन ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके आदिवासियों को जनजाति की सूचि से बाहर करने की माँग कर रहे हैं.

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