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जंगल के रास्ते पैदल चल कर बनीं कंप्यूटर एप्लीकेशन ग्रेज्युएट, अगली पीढ़ी की कर रही हैं मदद

संध्या संमुघम अपने गाँव की पहली और एकमात्र ग्रेजुएट आदिवासी लड़की है. अपनी इस उपलब्धि को संथिया अपने गांव के बच्चों को पढ़ा कर आगे बढ़ा रही हैं. कोरोना महामारी की वजह से गाँव में स्कूल बंद हैं. संमुघम का गाँव केरल-तमिलनाडु सीमा पर स्थित है. कोयंबटूर से इस गांव में पहुंचने में दो घंटे लग जाते है. 

उन्होने कंप्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक की डिग्री हासिल की है. संध्या की इस उपलब्धि के बाद गाँव के लोग खुशी से झूम उठे. दरअसल आदिवासी समुदाय में अभी भी शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती है. यहां ज्यादातर पुरुष और महिलाएं छोटा मोटा काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं. 

संमुघम ने कहा, “मेरे गाँव के लोग अपने बच्चों को पाँचवीं कक्षा से आगे स्कूल भेजने से हिचकिचाते हैं. लेकिन मैंने वास्तव में इस पैटर्न को तोड़ने और यह साबित करने के लिए संघर्ष किया कि सिर्फ शिक्षा ही हमें और अधिक ऊंचाइयों तक ले जा सकती है. मेरी माँ मेरे फैसले पर कायम रहीं और हमें हमारे माहौल से बाहर निकालना चाहती थीं.” 

संमुघम ने कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिग्री हासिल करने के साथ जीएसटी और टैली का भी कोर्स पूरा किया.

संमुघम ने बताया कि पढ़ाई करने और डिग्री हासिल करने का सफर आसान नहीं था. क्योंकि स्कूल और कॉलेज जाने लिए सरकारी बस पर निर्भर रहना था. दूसरा उपाय जंगल से कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना था. जंगल से जाने पर हर कदम पर जंगली जानवरों का ख़तरा मंडराता रहता था. 

संमुघम ने कहा, “कभी-कभी बरसात के मौसम में बसें समय पर नहीं आती थीं और मैं जंगल से करीब सात किलोमीटर पैदल चलकर जाया करती थी. लेकिन इस सबके बावजूद मैं अपनी पढ़ाई कभी नहीं छोड़ने वाली थी.”

संमुघम का सपना सिविल सेवा के लिए कोशिश करते रहना है. वो आईएएस अधिकारी बनने के अपने सपने को लेकर जुनूनी है. मौजूदा समय में संमुघम यह सुनिश्चित कर रही है कि उसके गाँव के बच्चे, महामारी के कारण शिक्षा से वंचित न रहें. स्कूल बंद हैं और गाँव में मोबाइल नेटवर्क इतना कमजोर है कि बच्चे ऑनलाइन कोचिंग के माध्यम से सीख नहीं सकते है. 

संमुघम ने कहा, “मैं अपने स्कूल के दिनों में भी बच्चों को ट्यूशन देती रहा हूँ. महामारी और लॉकडाउन के चलते वो पढ़ाई करने में असमर्थ हैं और वो अपना समय जंगल में खेलकर बर्बाद कर रहे हैं जो वास्तव में सुरक्षित नहीं है.” 

संमुघम मुफ्त शिक्षा देने के अलावा बच्चों को लोक नृत्य और संगीत भी सिखाती हैं. फिलहाल करीब 30 बच्चे उनके साथ पढ़ते हैं और उन्हें उम्मीद है कि ये संख्या बढ़ेगी. वो कहती हैं शिक्षा समाज के उत्थान में सहायक हो सकती है. मैं वास्तव में चाहती हूँ कि मेरे लोग शिक्षा को अधिक गंभीरता से लें और मैं अपने गाँव से कई और स्नातक देखना चाहती हूँ. 

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