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आदिवासियों से जुड़े 7 ओडिशा उत्पादों को मिला GI टैग

4 जनवरी, गुरूवार ओडिशा के लिए गौरव का दिन है. इसी दिन राज्य के सात उत्पादों को जीआई (Geographical Indication) टैग मिला है. इन सात उत्पादों को मिलाकर अब ओडिशा के पास ऐसी 25 उत्पाद हैं, जिन्हें टैग मिला है.

एसटी और एससी विकास विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “रायगड़ा जिले के डोंगरिया कोंध कढ़ाई वाले शॉल कपडागंडा को आधिकारिक तौर पर जीआई टैग के साथ मान्यता दी गई है.

इसे नियामगिरि डोंगोरिया कांधो बुनकर एसोसिएशन और एससीएसटीआरटीआइ निदेशालय के सलाहकार-सह-निदेशक और सरकार के विशेष सचिव द्वारा पंजीकृत किया गया था.”

सबसे पहले बात करते हैं, रायगड़ा जिले के डोंगरिया कोंध की कढ़ाई वाले कपडागंडा शॉल की, यह शॉल उन सात उत्पादों में से एक है, जिसे जीआई टैग मिला है.

यह शॉल नियमगिरि डोंगरिया कोंध समुदाय की खास पहचान है. इस शॉल पर की जाने वाली खास कढ़ाई ही इसे अन्य शॉलों से अलग बनाती है. जिसकी वज़ह से इसे जीआई टैग मिला है.

कपड़ागंड़ा शॉल बनाने के लिए डोंगरिया समुदाय डोम समुदाय से सफेद मोटा कपड़ा खरीदता है. अक्सर यह कपड़ा आदिवासी अपनी फसल यानि धान या रागी जैसी वस्तुओं के बदले में खरीदते हैं. इस कपड़े में फिर सभी महिलाएं घर के बाहर बैठ कर कढ़ाई का काम करती हैं.

यह कढ़ाई तीन अलग-अलग रंगों से की जाती है, जिसमें लाल, हरा और पीले रंग के धागों का इस्तेमाल होता है.
पहले ये महिलाएं फूल और पत्ते से रंग निकालकर उसमें धागे डूबाती थीं. लेकिन अब ये फूल पत्ते मिलना मुश्किल है इसलिए अब इन धागों को बाज़ार से खरीदा जाता है.

इस शॉल में हाथ से बने हुए विभिन्न प्रकार की रेखाएं और अकार बनाए जाते हैं. जो समुदाय के पहाड़ों और गांव के मंदिर को दर्शाते हैं.

कपड़ागंड़ा शॉल डोंगरिया समाज की पहचान है. इसपर होने वाली अद्भूत कढ़ाई सफ़ेद कपड़े पर डोगांरिया समाज की अविवाहित महिलाओं द्वारा की जाती है.

कपड़ागंड़ा शॉल के अलावा ओडिशा के 6 और उत्पाद हैं, जिन्हें जीआई टैग मिला है.

जिसमें लांजिया सौरा पेंटिंग, खजुड़ी गुड़ा (गुड़), ढेंकनाल मगजी (खाद्य), सिमिलिपाल काई चटनी, नयागढ़ कांतिमुंडी बैंगन और कोरापुट कालाजीरा चावल हैं.

ओडिशा की लांजिया सौरा पेंटिंग को जीआई टैग मिला है. यह पेंटिंग लांजिया सौरा या लांजिया सवारा/सबारा जनजाति से संबंधित है, जो ओडिशा के रायगड़ा जिले के पीवीटीजी (विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति) में से एक है. यह पेंटिंग लाल मैरून पृष्ठभूमि पर सफेद रंग से की जाती है.

इसके अलावा कालाजीरा चावल कोरापुट ज़िले में आदिवासी किसानों द्वारा उगाया जाता है. मुख्यधारा समाज में इसकी काफी मांग है, क्योंकि लोगों का मानना है कि इसे खाने से शरीर को काफी फायदा होता है, जैसे हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाना.

सिमिलिपाल काई चटनी मयूरभंज ज़िले के आदिवासियों द्वारा खाई जाती है. ऐसा कहा जाता है कि चटनी में पोषक तत्व होते है. जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन बी12 इत्यादि पोषक तत्व मौजूद है.

वहीं गजपति ज़िले में उत्पन्न होने वाले ‘खजुरी गुड़ा’ या गुड़ खजूर से बनाई जाती है. यह एक तरह का प्राकृतिक स्वीटनर है, जबकि ढेंकनाल जिले की एक मीठी वस्तु मगजी, भैंस के दूध के पनीर से बनाई जाती है.

इसके अलावा कांटेईमुंडी बैंगन, जिसमें बीज और कांटेदार कांटे होते हैं, उसकी उत्पत्ति नयागढ़ जिले के बदाबनापुर और रत्नापुर इलाकों में हुई है और इसका स्वाद बेहद अनोखा होता है.

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