Mainbhibharat

छत्तीसगढ़: आदिवासी बहुल बस्तर में टीचर कम हैं, सुरक्षाकर्मी ज़्यादा

दक्षिण छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर में बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. पहली उनके स्कूलों में टीचरों की भारी कमी, और दूसरा माओवादियों का ख़तरा.

हालात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इलाक़े में टीचरों की तुलना में कहीं ज़्यादा सुरक्षा कर्मी (6,000 से ज़्यादा) तैनात हैं.

छत्तीसगढ़ सरकार ने क़रीब डेढ़ साल के लॉकडाउन के बाद सोमवार को 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी है. लेकिन, बस्तर ज़िले के आदिवासी बहुल पिछड़े इलाक़े के स्कूल एजुकेशन सिस्टम और उससे जुड़ी मुश्किलों का सामना करे रहे हैं.

ख़ासकर, इलाक़े के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया कुछ ज़्यादा ही बिखरी हुई दिखाई देती है. वजह है इन स्कूलों में टीचरों की भारी कमी.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ राज्य का शिक्षा विभाग इस कमी को पूरा करने के लिए ‘शिक्षादूत, अतिथि शिक्षक, शिक्षक सारथी, और शिक्षक सेवकों’ के सहयोग से किसी तरह काम चला रहा है.

बस्तर इलाक़ें में स्कूलों में शिक्षा बुरी तरह प्रभावित है क्योंकि 1588 सरकारी स्कूलों में स्थिति इतनी ख़राब है कि इनमें एक-एक टीचर ही है. आधिकारिक रिकॉर्ड तो यह भी बताते हैं कि 227 स्कूल ऐसे भी हैं, जहां एक भी टीचर नहीं है.

अधिकरियों ने अखबार का बताया कि नियुक्त होने वाले टीचर ज़्यादा लंबे समय तक इलाक़े में रहना पसंद नहीं करते. इनमें से ज़्यादातर तीन साल की अनिवार्य सर्विस पूरी करने के बाद स्कूलों से ट्रांस्फ़र करवा लेते हैं, और वेकेंसीस छोड़ जाते हैं.

जिन स्कूलों में भारी कमी है वहां प्रशासन ने शिक्षादूत, अतिथि शिक्षक, शिक्षक सारथी, शिक्षक सेवक तैनात किए गए हैं. इनको पैसे उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर, जिला खनिज फाउंडेशन (फ़ंड) से दिया जाता है.

छत्तीसगढ़ के सात माओवादी प्रभावित ज़िलों – कांकेर, जगदलपुर, कोंडागांव, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और बस्तर के सुकमा में 16,500 से ज़्यादा स्कूल हैं.

राज्य के प्रमुख सचिव (स्कूल शिक्षा) आलोक शुक्ला ने बताया कि स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. राज्य सरकार ने पिछले हफ़्ते ही स्कूलों में 14,588 नए टीचरों की नियुक्ति का आदेश दिया है.

दूरदराज और माओवादी प्रभावित इलाक़ों के लिए टीचरों की नियुक्ति के लिए विभाग को अक्सर काफ़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है. प्राइमरी स्कूलों के लिए अब स्थानीय टीचरों की नियुक्ति का प्लान है. लेकिन जब तक यह नहीं हो जाता, तब तक बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा.

Exit mobile version