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तमिलनाडु: कई चुनाव बीत गए लेकिन इस गांव के आदिवासियों को नहीं मिली पक्की सड़क

तमिनलाडु (Tribes of Tamil Nadu) के मुथुवाकुडी बस्ती (Muthuvakudi Hamlet) में रहने वाले आदिवासी सदियों से पक्की सड़क से वंचित है.

इन आदिवासियों को अपनी ज़रूरत के सामान के लिए प्राइवेट गाड़ी के सहारे कुरंगानी (Kurangani) जाना पड़ता है. गाड़ी के इस सफर में भी 1500 रूपये का खर्चा आ जाता है.

मुथुवाकुडी बस्ती तेनी ज़िले के बोडिनायक्कनूर तालुक (Bodinayakanur Taluk) में स्थित है. इस बस्ती में मुथुवा जनजाति के 45 परिवार रहते हैं.

2018 में कुरंगानी जंगलों में भीषण आग लगी थी. इस आग में लगभग 13 लोग घायल हुए थे. इस हादसे के बाद वन अधिकारियों ने कुरंगानी के चैक पोस्ट में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है. जिसके बाद से इस चैक पोस्ट पर कोई भी गाड़ी प्रवेश नहीं कर सकती.

इस पाबंदी को हाटने के लिए 2019 में आदिवासियों ने लोकसभा चुनाव को बहिष्कार करने की धमकी दी और विरोध प्रदर्शन सफल रहा.

इस अंदोलन के बाद गाड़ियों पर लगने वाली पाबंदी हटा दी गई. लेकिन इससे बस्ती की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आया.

बस्ती में रहने वाले मणिकंदन बताते है कि हमें अपने गांव से एक गर्भवती महिला को बोडिनायक्कनूर के अस्पताल ले जाने से पहले डोली पर कुरंगानी लाना पड़ा. इसमें इतना समय लगा कि इलाज़ से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई.

मणिकंदन ने कहा कि अस्पताल के डॉक्टर हमारे इलाज़ में देरी करते है. वहीं उन्हें जरूरी सामान के लिए 6 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है.

इस बस्ती में अब तक पांच बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. हर चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार आदिवासियों को बेहतर सुविधा देने का वादा करते है.

लेकिन चुनाव जीतने के बाद उसी वादे को भूल जाते हैं. फिर भी यहां के आदिवासी सरकार और नेताओं से उम्मीद लगाए बैठे हैं.

यह आदिवासी रोज़गार के लिए इलायची और कॉफी के बागानों में मजदूरी करते हैं. महिलाओं को मजदूरी के लिए 350 रूपये और पुरूषों को 500 रूपये दिन का वेतन मिल जाता है. लेकिन यह काम भी कुछ महीनों के लिए ही होता है.

मुथुवा जनजाति ने खुद से ही मिट्टी और पत्थरों के सहारे मकान बनाया है. हालांकि 2021 में सरकार ने 30 आदिवासी परिवार को सौर पैनल वाले घर बनाकर दिए थे.

सरकार की तरफ से इन्हें मुफ्त एलपीजी गैस भी दिए जाते है. लेकिन उसे लेने के लिए इन्हें बोडिनायक्कनूर जाना पड़ता है.

बस्ती में रहने वाली सीताअम्मल अफसोस जाताते हुए कहती हैं कि लेकिन इससे लेने के लिए गाड़ी से जाना पड़ता है. जिसमें 1500 रूपये का खर्च आता है और लगभग 45 मिनट का समय लगता है.

उन्होंने आगे कहा कि पहले राशन लेने के लिए भी कुरंगानी तक जाना पड़ता था. लोग घोड़े पर लादकर राशन लाते थे. गनीमत है कि अब राशन दुकान के कर्मचारी महीने में एक बार राशन बस्ती तक पहुंचा देते हैं.

वहीं बस्ती में रहने वाले नगाराज़ ने शिक्षा के आभाव के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि हमारे गांव में एक प्राथमिक स्कूल मौजूद है लेकिन यहां शिक्षक सिर्फ महीने में दो बार ही आती हैं. क्योंकि गांव तक आने के लिए सड़क नहीं है. फिलहाल गाँव में एक 12वीं पास आदिवासी शख्स गांव के बच्चों को पढ़ाता है.

उन्होंने आगे कहा कि आगे की पढ़ाई और गर्भवती महिला अस्थायी रूप से दूसरे जगहों पर जाकर बस जाते हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के मतदान में सिर्फ चार दिन रहे गए हैं. पहल चरण में लोकसभा की 102 सीटों पर वोटिंग होगी.

इन 102 सीटों में से तमिलनाडु की सबसे ज्यादा सीटें शामिल हैं. इसलिए सभी पार्टियों की नज़रे फिलहाल दक्षिण राज्यों में से सबसे ज्यादा तमिलनाडु पर है.

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