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फोकस में आदिवासी कहानीकार

केरल के आठ जनजातीय समूहों के कहानिकारों द्वारा बताई गई कहानियों पर आधारित बच्चों की किताबें लाने के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) ने एक पहल की है. उम्मीद है कि इससे मुख्यधारा की साहित्यिक दुनिया को आदिवासियों की कहानियां बुनने की कला को समझने में मदद मिलेगी.

कोच्चि में एनबीटी द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में कुरुम्बा, कुरिच्या, ओरली, वेट्टाकुरुमा, काट्टुनायकन, पनिया, तचनद मूप्पन और पदिनायका समुदायों के कहानीकारों ने आदिवासी कवि धन्या वेंगचेरी और कनकश्री पुरस्कार विजेता कवि डी. अनिल कुमार से अपने अनुभव साझा किए.

बातचीत के दौरान, आदिवासी कहानीकारों, जो न तो पढ़ सकते हैं और न लिख सकते हैं, ने अपनी कहानियों को अपने ही समुदाय के लोगों को सुनाया, जिन्होंने मलयालम लिपि में इन कहानियों को पन्नों पर उतारा.

धन्या वेंगचरी, जिनके पास मलयालम में स्नातकोत्तर की डिग्री है, कासरगोड में माविलन आदिवासी समुदाय से हैं और तुलु में कविता लिखती हैं. धन्या ने बताया कि आदिवासी भाषाओं की अपनी लिपि नहीं होती और कहानियों को मलयालम लिपि का उपयोग करके प्रकाशित किया जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि जो कहानियाँ उन्होंने सुनीं वो काफी दिलचस्प थीं, और उम्मीद है पाठकों को पसंद आएंगी.

कहानियों को संकुचित मलयालम अनुवाद के साथ एनबीटी द्वारा आठ पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.

एनबीटी को यह पहल नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिस्से के रूप में द्विभाषी किताबें लाने के प्रयासों का हिस्सा है.

इन किताबों में कहानियों को जताने वाले चित्र भी होंगे.

आदिवासी कल्याण विभाग के अनुसार केरल में 37 आदिवासी समूह हैं. इनमें से आठ की कहानियों को लोगों के सामने लाने की यह पहल काबिले तारीफ है. इसे उम्मीद बंधती है कि बाकी समुदायों की परंपराओं को भी बढ़ावा दिया जा सकेगा.

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