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ओडिशा में ST समुदाय गैर आदिवासियों को बेच सकेंगे जमीन, सरकार ने दी मंजूरी

ओडिशा मंत्रिमंडल ने मंगलवार को एक कानून में संशोधन करने का फैसला किया है. इस संशोधन के बाद अनुसूचित क्षेत्रों में रह रहे अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लोग राज्य सरकार की अनुमति से गैर-आदिवासियों को अपनी जमीन बेच सकेंगे.

लेकिन ज़मीन बेचने के लिए उन्हें डिप्टी कलेक्टर(Deputy Collector) की लिखित परमिशन लेनी होगी.

सरकार का कहना है कि भूमि कानून में इस बड़े संशोधन से अब आदिवासी समुदाय के लोग स्व रोजगार, घर बनाने या बच्चों की शिक्षा के लिए अपनी जमीन को गिरवी भी रख सकते हैं.

मुख्य सचिव प्रदीप कुमार जेना ने कहा कि हालांकि नए प्रावधान के तहत एसटी समुदाय का कोई व्यक्ति अपनी पूरी जमीन नहीं बेच सकता क्योंकि उस स्थिति में व्यक्ति भूमिहीन या बेघर हो सकता है.

उन्होंने कहा कि डीएम या डिप्टी कलेक्टर इसका फैसला देंगे. अगर डिप्टी कलेक्टर जमीन बेचने या लोन के लिए गिरवी रखने की परमिशन नहीं देता है तो वह छह महीने के भीतर संबंधित जिला अधिकारी के पास अपील कर सकता है उसका निर्णय ही अंतिम माना जाएगा.

इस अधिकारी ने कहा कि इस कदम से राज्य में उद्योगों को बढ़ावा मिलने की संभावना है. उन्होंने कहा, “अब एक एसटी व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी जमीन बेच सकता है. इसके कृषि, आवासीय घर के निर्माण, बच्चों की शिक्षा, स्व रोज़गार, व्यवसाय या कुछ और जरूरतें हो सकती है. इसके अलावा इन जरूरतों के लिए जमीन को गिरवी भी रख सकता है.”

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक के बाद जेना ने बताया कि अनुसूचित जनजाति सलाहकार परिषद की सिफारिशों के बाद एसटी समुदाय के लोगों के व्यापक हित को देखते हुए ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण विनियमन, 1956 में संशोधन करने का फैसला लिया गया है.

उन्होंने कहा कि 2002 में इस कानून में कुछ संशोधन किए जाने के बाद, एसटी-श्रेणी के नागरिकों को अचल संपत्ति केवल आदिवासियों को हस्तांतरित करने की अनुमति दी गई थी.

इस प्रावधान के कारण समुदाय के कई लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. 2002 से पहले एसटी समुदाय के किसी भी सदस्य की कोई भी ज़मीन नहीं बेची जा सकती थी.

यह बात सही है कि अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी परिवारों के अपनी ज़रूरत के लिए लोन मिलना मुश्किल होता है. क्योंकि उनके पास जो ज़मीन है उसे कोई ग़ैर आदिवासी ना तो ख़रीद सकता है और ना ही गिरवी रख सकता है.

लेकिन इस समस्या का समाधान सरकार को सस्ती दरों पर आदिवासियों के लिए लोन की व्यवस्था होनी चाहिए. यह देखा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी आदिवासियों को लोन देने में कतराते हैं. क्योंकि आदिवासी के पास लोन वापसी की गारंटी के लिए कुछ नहीं होता है.

बेशक सरकार यह कह रही है कि आदिवासी परिवार अपनी पूरी ज़मीन को बेच नहीं सकता है लेकिन इस कानून में संशोधन से ग़ैर आदिवासियों के लिए आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने का रास्ता खुल सकता है.

ओडिशा वह राज्य है जहां कम से कम 62 आदिवासी समुदाय रहते हैं. इनमें से कई ऐसे आदिवासी समुदाय हैं जिन्हें विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों में शुमार किया जाता है.

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