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दिव्यांग झोंगो पाहन का सिल्वर मेडलिस्ट बनने का सफर

झारखंड का खूंटी जिला न केवल आदिवासी महानायक और हॉकी चैंपियन जयपाल सिंह मुंडा की धरती है बल्कि अब यह एक और खेल प्रतिभा के लिए पहचाना जा रहा है.

खूंटी के घने जंगलों के बीच बसे सिल्दा गांव के 17 वर्षीय झोंगो पाहन (Jhongo Pahan) ने अपनी शारीरिक कमी को मात देते हुए देश का नाम रोशन किया है.

इस युवक ने इस महीने की शुरुआत में दुबई में हुए एशियन यूथ पैरा गेम्स 2025 में 50-मीटर तीरंदाजी में सिल्वर मेडल जीता है.

झोंगो के माता-पिता के मुताबित, वह जन्म से ही ‘पैरापेरेसिस’ (Paraparesis) से पीड़ित थे, जिस कारण वे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते थे. बचपन में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए उन्हें घिसटकर चलना पड़ता था.

परिवार वाले बताते हैं कि अपनी इस शारीरिक स्थिति और समाज में मिलने वाले भेदभाव के कारण झोंगो काफी अकेले हो गए थे और लोगों से घुलने-मिलने से कतराते थे.

कोच ने बदली तकदीर

एक एथलीट के तौर पर झोंगो का सफर काफी देर से शुरू हुआ. असल में सिर्फ दो साल पहले.

उनके कोच, मोहम्मद दानिश अंसारी और आशीष कुमार ने हाशिए पर पड़े समुदायों से एथलीटों को ढूंढने और उन्हें तीरंदाजी में ट्रेनिंग देने की अपनी वॉलंटरी पहल के दौरान झोंगो की क्षमता को पहचाना.

कोच आशीष कुमार बताते हैं, “हमारा लक्ष्य उन बच्चों को ढूंढना था जो वंचितों में भी सबसे ज्यादा वंचित हैं. हॉकी आदिवासियों के बीच लोकप्रिय है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तीरंदाजी उनके खून में है.”

कुमार और उनके सीनियर कोच, दानिश अंसारी ने बच्चों, खासकर आदिवासियों की तलाश शुरू की, जिन्हें अपनी स्किल्स दिखाने के मौके कम ही मिलते हैं. इस खोज के दौरान, वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस रेजिडेंशियल स्कूल पहुंचे, जहाँ वे झोंगो और कई दूसरे बच्चों से मिले.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय, जो 2022 में अनाथ, मानव तस्करी के शिकार और नक्सल प्रभावित या दिव्यांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए खोला गया था.

कुमार ने एक भावुक किस्सा साझा करते हुए कहा, “हमने एक ऐसा लड़का देखा जिसने अपने पैरों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. हॉस्टल में जब एक भारी बेंच को हटाने की बात आई, तो सक्षम बच्चे भी हिचकिचा रहे थे लेकिन झोंगो ने किसी के कहने से पहले ही वह काम कर दिखाया. हमें तभी समझ आ गया था कि इस लड़के में एक चैंपियन का जज्बा है.”

वहीं झोंगो ने बताया कि 2023 से पहले उन्होंने कभी ट्रेन का सफर नहीं किया था और न ही रांची देखा था. पहली बार वह ‘नेशनल पैरा-तीरंदाजी चैंपियनशिप’ के लिए पटियाला गए.

भले ही वहां उन्हें मेडल नहीं मिला लेकिन वहीं से उनके एथलीट बनने की असली शुरुआत हुई.

अपनी उपलब्धियों का जिक्र करते हुए झोंगो ने कहा, “इस साल जनवरी में मैंने जयपुर में हुई छठी नेशनल पैरा-तीरंदाजी चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता. इसके बाद अक्टूबर में सोनीपत में हुए ट्रायल में मेरा चयन भारतीय तीरंदाजी संघ द्वारा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए किया गया.”

शुरुआत में झोंगो 7 से 8 हज़ार रुपये की कीमत वाले बांस या लकड़ी के पारंपरिक धनुष से प्रैक्टिस करते थे.

दुबई जाने से पहले कोच दानिश अंसारी ने उन्हें अपना रिकर्व धनुष (Recurve bow) दिया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर का था.

दुबई में मिली सफलता के बाद जिला प्रशासन ने उन्हें 3 से 3.5 लाख रुपये की कीमत वाला नया रिकर्व धनुष उपलब्ध कराया है, जिससे वे खुश हैं और अब आगामी मुकाबलों में इसका उपयोग करेंगे.

दुबई में दिखाया दम

दुबई में झोंगो ने एशिया के बेहतरीन खिलाड़ियों को चुनौती दी. मिक्स्ड टीम रिकर्व इवेंट में उन्होंने अपनी जोड़ीदार भावना के साथ मिलकर गोल्ड मेडल जीता.

वहीं व्यक्तिगत श्रेणी में उन्होंने कजाकिस्तान और थाईलैंड के तीरंदाजों को हराया, लेकिन फाइनल में चीन के शीर्ष वरीयता प्राप्त तीरंदाज से कड़े मुकाबले के बाद उन्हें सिल्वर से संतोष करना पड़ा.

पोडियम पर खड़े होकर भी झोंगो अपनी जड़ों को नहीं भूले. उन्होंने एक चीनी एथलीट के साथ बैज बदला और वादा किया कि अगली बार मिलने पर वे झारखंड से उनके लिए तोहफा लाएंगे.

झोंगो के घर की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है. पूरा गांव भले ही उनकी वापसी पर जश्न मना रहा है लेकिन उनके घर की छत आज भी बारिश में टपकती है. पिता गुसू एक चरवाहा हैं और भाई बाजी पढ़ाई छोड़ मजदूरी करते हैं, जिससे बमुश्किल घर चलता है.

झोंगो चार भाइयों में से एक है और उसकी एक शादीशुदा बहन है. बाजी ने झोंगो को शर्मीला और अंतर्मुखी बताया, लेकिन कहा कि खेल ने उसे ज़िंदगी में एक नई दिशा दी है

दुबई के एक कैफे में झोंगो का गिटार बजाते हुए और लोकप्रिय नागपुरी गीत गाते हुए वीडियो काफी वायरल हुआ था.

उनके भाई बाजी (20) कहते हैं, “वह वीडियो में सचमुच खुश दिख रहा था, जैसे उसने अब जीना शुरू किया हो. यह सच है कि दिव्यांग होने के कारण उसे भेदभाव झेलना पड़ा. लेकिन आज वही दिव्यांगता उसकी पहचान बन गई है.”

17 साल का झोंगो खूंटी के एक मॉडल स्कूल में 11वीं क्लास का आर्ट्स का स्टूडेंट है.

वह 2026 में जापान में होने वाले सीनियर एशियन पैरा गेम्स और अगले महीने पटियाला में होने वाली नेशनल पैरा-आर्चरी चैंपियनशिप के लिए ट्रेनिंग ले रहा है.

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