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जनजातीय हॉस्टल के आदिवासी छात्र ने JEE Mains की परीक्षा में झंडे गाड़े

खतरावथ विनोद ने 96.16 प्रतिशत अंक प्राप्त कर JEE Mains की परीक्षा उत्तीर्ण की है और अब वह अपने लक्ष्य को भेदने के लिए पूरी एकाग्रता के साथ जुट गए हैं. राजेंद्रनगर में तेलंगाना जनजातीय कल्याण आईआईटी अध्ययन केंद्र के छात्र विनोद विकाराबाद के संगयापल्ली थांडा के रहने वाले हैं.

विनोद ने बताया कि वह कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग या इलेक्ट्रॉनिक्स या संचार इंजीनियरिंग में से किसी एक का अध्ययन करना चाहता है.

विनोद का कहना है कि अगर वह आईआईटी में सीट सुरक्षित कर लेता है, तो वह अपने थांडा से ऐसा करने वाला पहला व्यक्ति बन जाएगा.

विनोद ने बताया कि वह जेईई एडवांस (JEE advance) की तैयारी के लिए दिन के 14-16 घंटे देते हैं और ध्यान केंद्रित कर पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही अधिक से अधिक प्रश्नपत्र हल करने का प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने अपनी सफलता के पीछे की वजह बताते हुए कहा यह सब मुफ्त जेईई कोचिंग के कारण संभव हो पाया है वरना मैं एक परीक्षा का खर्च उठाने में भी सक्षम नहीं था.

विनोद के अलावा भी ऐसे कई छात्र हैं जो आर्थिक पक्ष से कमज़ोर होने के कारण इस परीक्षा की कोचिंग का खर्चा नहीं उठा सकते थे और जनजातीय कल्याण संस्थानों के कारण यह परीक्षा पास कर पाए हैं.

ऐसे ही एक छात्र सतीश भी हैं जो मेहबूबाबाद के मारीपेड़ा थांडा में रहते हैं. सतीश ने 94.52 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं और एसटी श्रेणी में 758 रैंक प्राप्त की.

उन्होंने बताया कि वह एक एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनना चाहते हैं.

क्या जनजातीय कल्याण संस्थानों में दाखिला पाना इतना आसान है ?

हालाकि इन संस्थानों में 65 प्रतिशत सीटों पर केवल अनुसूचित जनजाति के छात्रों को ही प्रवेश मिलता है लेकिन उसके लिए उन्हें निम्नलिखित मानदंड़ो का पालन करना पड़ता है-

न्यूनतम 40% उत्तीर्ण अंकों के साथ किसी भी स्ट्रीम में बारहवीं या वोकेशनल कोर्स पूरा होना चाहिए.

यहां दाखिला लेने के लिए छात्र को TGUGCET नामक एक परीक्षा में पास होना ज़रूरी होता है.

छात्र के माता-पिता की वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्र में 1.5 लाख से कम होनी चाहिए वहीं शहरी इलाकों में यह दर 2 लाख है.

यहां का पूरा पाठ्यक्रम केवल अंग्रेज़ी में उपलब्ध है. जो क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए एक बड़ा नुकसान है.

इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि गुरुकुलम एक अच्छी पहल है. इस पहल के तहत आदिवासी छात्रों को हॉस्टल में रह कर पढ़ने लिखने का अवसर मिलता है.

इसके अलावा भी यहां पर छात्रों को अध्ययन और रहने के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाती हैं.

देश के दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले ज़्यादातर आदिवासी परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे ही जीते हैं. इन परिवारों के लिए यह पहल बहुत मददगार है.

आदिवासी समुदायों का भरोसा जीतने और उन्हें भी विकास में भागीदार बनाने की यह कोशिश अच्छी है.

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