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सुप्रीम कोर्ट: मणिपुर में राहत शिविरों की निगरानी करने वाली टीमों में आदिवासी भी शामिल करो

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से कहा है कि राज्य में रिलीफ़ कैंप की देख-रेख के लिए विधायकों और मंत्रियों की जो टीम बनाई गई है उसमें कुकी आदिवासियों को भी शामिल करने पर विचार किया जाए. मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ के सामने यह मामला ज़ोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन (Zomi Students Federation) के वकील ने मंगलवार को उठाया था.

5 जुलाई के एक आदेश के अनुसार राज्य सरकार ने ऐसी सात टीमें बनाई हैं जो अलग अलग ज़िलों में रिलीफ़ कैंप के प्रबंधन और व्यवस्था की देख रेख करेंगी. राज्य में विधान सभा में कुल 60 विधायक हैं. इन 60 विधायकों में से 35 को इन टीमों में रखा गया है.

लेकिन इन टीमों में एक भी कुकी आदिवासी विधायक को नहीं रखा गया है. ये सात टीमें बिष्णुपुर, चुड़ाचंद्रपुर, इंफ़ाल, इंफाल वेस्ट, कांगपोकपी और काकचिंग और अन्य प्रभावित ज़िलों में रिलीफ़ कैंपों की देख-रेख करेंगे. 

इस मामले में टिप्पणी करते हुए मुख्य न्यायधीश ने कहा कि इस कमेटी का गठन सामाजिक प्रतिनिधित्व के मामले में जितना व्यापक होगा उतना ही लोगों का भरोसा बढ़ेगा. मुख्य न्यायधीश की बेंच ने सरकार से कहा है कि जो मुद्दे अदालत में उठाए गए हैं उनका समाधान निकाला जाना चाहिए. 

मसलन मुर्दाघरों में रखे शवों को परिवार जनों को देखने की अनुमति दी जाए. इसके अलावा मृतकों की पहचान होनी चाहिए. यह भी मांग की गई थी कि जिन मृतकों का शव अभी तक मुर्दाघरों में रखे हैं उन्हें परिवारों को सौंप दिया जाए. जिससे कि उनका अंतिम संस्कार हो सके. 

मुख्य न्यायधीश के सामने रिलीफ़ कैंप में बिस्तर और सफ़ाई की कमी की बात रखी गई. 

यह एक गंभीर मामला है

मुख्य न्यायधीश की बेंच ने मौखिक तौर पर ही सरकार को यह कहा है कि मणिपुर के राहत शिविर की देख-रेख और प्रबंधन के लिए बनाई गई कमेटी में आदिवासियों को भी शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन इस पर कोई औपचारिक आदेश सरकार को नहीं दिया गया है.

मणिपुर के ताज़ा हालात में यह एक बेहद गंभीर मामला बनता है. क्योंकि पिछले दो महीने से चल रही हिंसा के लिए कुकी आदिवासी और मैती समुदाय के बीच भरोसा पूरी तरह से टूट चुका है. उससे भी ख़राब बात ये है कि कुकी समुदाय सरकार पर भरोसा नहीं कर रहा है.

उसका आरोप है कि मैती समुदाय का सरकार में वर्चस्व है और पूरी सरकारी व्यवस्था फिलहाल मैती समुदाय के पक्ष में ही काम कर रही है. ऐसे हालात में अगर राहत शिविरों के देख-रेख के लिए बनाई गई कमेटी में आदिवासी समुदायों के एक भी विधायक को कमेटी में नहीं रखा गया है तो यह अच्छा संदेश है.

मणिपुर में शांति कायम करने की सबसे पहली शर्त यही है कि दोनों ही समुदायों को सरकार पर भरोसा होना चाहिए.

मणिपुर की हिंसा में 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है. इसके अलावा करीब 40000 हज़ार लोगों को अपना घर छोड़ कर राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी. अब धीरे धीरे लोग अपने घरों या रिश्तदारों के पास जा रहे हैं. 

लेकिन अभी भी काफी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनके घर जला दिये गए हैं और वे राहत शिविर में रहने के लिए मजबूर हैं.  

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