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तमिलनाडु में आदिवासी किसान हाथियों से अपने खेतों को बचाने की कर रहे मांग

तमिलनाडु (Tribes of Tamil Nadu) के एरिमलाई के आदिवासी कई समय से अपने खेतों के लिए फेंसिंग की मांग कर रहे हैं. क्योंकि की यह बस्ती घने जंगलों के बीच स्थित है और यहां जंगली जानवरों (Wild Animal Attack) की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

इस बस्ती में कुल 75 आदिवासी परिवार रहते हैं. यह सभी अपने जीवनयापन के लिए पूरी तरह से जंगलों पर ही निर्भर हैं. इन लोगों के पास खेती-किसानी और वन उपज के अलावा आय का कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं है.

एरिमलाई के आदिवासियों का आरोप है की जंगल के अन्य खेतों में वन विभाग द्वारा फेंसिंग लगाए जा रहे हैं. लेकिन जब आदिवासियों ने अपने खेतों के लिए एलिफेंट प्रूफ ट्रेंच (EPT) की मांग की तो उन्हें इनकार कर दिया गया.

तकरीबन 10 दिन पहले जब वन विभाग के लोग ईपीटी के लिए खुदाई कर रहे थे तो आदिवासियों के मन में भी खुशी की लहर दौड़ पड़ी. लेकिन जब आदिवासियों ने अपने खेतों में भी ईपीटी लगवाने की इच्छा जाताई तो उन्हें मना कर दिया गया.

गाँव के एक निवासी, ए मिरअप्पन ने कहा, “ हमारा गाँव घने जंगलों में स्थित है और अक्सर हमारे खेतों को जंगली जानवर जैसे हाथी से ख़तरा रहता है. हमारे पास बस रोज़गार का एक ही साधन है.”

उन्होंने आगे कहा, “जब वन विभाग के सदस्य जंगल में फेंसिंग के लिए खुदाई कर रहे थे तो हमने भी ईपीटी लगवाने की इच्छा जाताई लेकिन उन्होंने साफ माना कर दिया.”

गाँव के एक और निवासी, आर मुनिराज ने आरोप लगाया की वन विभाग द्वारा आदिवासियों के खेतों को नज़रअंदाज किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “हमे और हमारे खेतों को असहाय छोड़ दिया गया है. अगर एक भी जंगली हाथी इधर आता है तो पूरे गाँव की खेती खराब हो जाएगी.”

वहीं वन विभाग ने कहा की हमने जंगलों पर जंगली जानवरों से बचाव के लिए फेंसिंग स्थापित कर दिए है. गाँव के आदिवासी हमें राजस्व गाँव में अवरोधक लगाने के लिए अनुरोध कर रहे है. जिसकी इजाज़त हमें नहीं है.”

उन्होंने आगे बताया की उनके पास आदिवासियों की शिकायत आई है और वे इस मामले पर जल्द जांच शुरू करेंगे.

उनका ये आरोप है की इनमें से कई आदिवासियों के पास अपनी ज़मीन का भूमि पट्टा मौजूद नहीं है. इसके अलावा उन्होंने पहले इलाके को परिभाषित करने के लिए बॉर्डर की मांग की है.

वन विभाग द्वारा बॉर्डर की मांग और भूमि पट्टे का विवाद बस एक बहाना सा लगता है. जब तक वन विभाग की जांच होगी, तब तक आदिवासियों के खेतों को जंगली जानवर बर्बाद कर देंगे और जांच का कोई मतलब नहीं रहेगा.

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