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तमिल नाडु: आदिवासियों के लिए आवंटित राशि ख़र्च क्यों नहीं हुई, लौटानी क्यों पड़ी?

तमिल नाडु के जनजातीय कल्याण निदेशालय ने राज्य में आदिवासी समुदायों के कल्याण पर ख़र्च के लिए आवंटित कुल 1,310 करोड़ रुपये में से 265 करोड़ रुपये पिछले तीन वित्तीय वर्षों में राज्य और केंद्र सरकारों को वापस कर दिए थे. निदेशालय का यह खुलासा एक आरटीआई के जवाब में आया है.

मदुरै के आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता एस कार्तिक द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में, आदिम जाति कल्याण निदेशालय ने कहा कि लौटाई गई राशि का 77.7 करोड़ रुपये वन विभाग को दिया गया था, जबकि 58.17 करोड़ रुपये ग्रामीण विकास विभाग को, और 4.05 करोड़ रुपये नगर पंचायत प्रशासन को दिए गए थे.

निदेशालय के जन सूचना अधिकारी-सह-संयुक्त निदेशक द्वारा भेजी गई जानकारी से पता चला है कि निदेशालय ने सिर्फ़ 1,045 करोड़ रुपये का इस्तेमाल आदिवासी कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया, और वाकि राशि वापस कर दी गई.

कार्तिक ने अब राज्य और केंद्र सरकारों से अनुरोध किया है कि 265 करोड़ की राशि निदेशालय को वापस सौंप दी जाए.

“धन की वापसी बहुत ही निंदनीय है. वह भी ऐसी स्थिति में जब आदिवासी समुदायों को भूमि, घरों, स्कूलों, अस्पतालों, पेयजल, बिजली, सड़क और बस सेवाओं की तत्काल ज़रूरत है. विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं, जो आदिवासी समुदायों के कल्याण की दिशा में काम कर रहे हैं, की एक विशेष टीम का गठन किया जाना चाहिए. इसके अलावा ऐसे वरिष्ठ अधिकारी जो आदिवासी समुदायों के लिए नई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं, उन्हें भी टीम में सामिल होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परियोजनाएं ठीक से लागू भी हैं, और आवंटित धन का पूरी तरह से इस्तेमाल किया जा सके,” कार्तिक ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा.

आदिवासी विभाग के प्रमुख सचिव के. मणिवासन ने निदेशालय द्वारा धन लौटा दिए जाने के बारे में कहा, “पूरा धन आदिवासी कल्याण परियोजनाओं की कार्यान्वयन एजेंसियों को दिया गया था. हो सकता है कि राशि का एक छोटा हिस्सा विभाग में रिक्त पदों और कोविड-19 के प्रसार की वजह से लौटा दिया गया हो. कभी-कभी, बजटीय अभ्यास के तहत धन को अलग अलग शीर्षों के तहत रखा जाता है.”

मणिवासन का कहना है कि पिछले तीन सालों में आदिवासी कल्याण के लिए कोई भी योजना प्रभावित नहीं हुई थी. लेकिन यह बात भी सच है कि ट्राइबल सब प्लान के तहत सरकारों और विभागों को दी जाने वाली राशि आमतौर पर कम ही पड़ती है. ऐसे में 265 करोड़ रुपए का वापस कर दिया जाना कहीं न कहीं यह आशंका ज़रूर पैदा करता है कि आदिवासी कल्याण में कुछ न कुछ तो पीछे छूटा ही है.

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