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तेलंगाना: आदिवासी कल्याण योजनाओं के लागू होने में देरी पर सरकार को कोर्ट का नोटिस

आदिवासी कल्याण से जुड़ी योजनाओं के लागू न होने पर तेलंगाना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. इन योजनाओं में से कुछ के प्रस्ताव 2013 में पारित किए गए थे.

तेलंगाना हाई कोर्ट की एक बेंच, जिसमें चीफ़ जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बी विजयसेन रेड्डी शामिल हैं, ने आदिवासी संक्षेमा परिषद द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) में राज्य और केंद्र सरकारों को नोटिस जारी किया है.

इस जनहित याचिका में तेलंगाना के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के लिए बिजली, एम्बुलेंस और दूसरी चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग की गई है. पीआईएल में आरोप है कि वन विभाग के अधिकारी और पुलिस कर्मी इन सुविधाओं को सुनिश्चित करने के बजाय आदिवासियों को उनकी जमीन से जबरन बेदखल कर रहे हैं.

याचिकाकर्ता के वकील पीवी रमणा ने बेंच को सूचित किया कि आदिवासी सलाहकार परिषद ने 2013 से जंगल में रहने वाली आदिवासी आबादी के लिए बिजली और एम्बुलेंस सेवाओं की मांग करते हुए कई प्रस्ताव पारित किए हैं, लेकिन इनमें से कोई भी सिफारिश तेलंगाना सरकार द्वारा लागू नहीं की गई है.

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि फॉरेस्ट राइट्स एक्ट के तहत ज़मीन के पट्टों की मांग करते हुए आदिवासियों के कम से कम 19,000 आवेदन रेवेन्यू अधिकारियों के पास लंबित हैं, जिनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

याचिकाकर्ता की बात सुनने के बाद चीफ़ जस्टिस हिमा कोहली ने विशेष सरकारी वकील हरेंद्र प्रसाद से जानना चाहा कि सरकार आदिवासी इलाकों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए फंड क्यों नहीं जारी कर रही है. वकील ने कहा कि उन्हें निर्देश दिए जाएंगे.

चीफ़ जस्टिस कोहली ने आदिवासी कल्याण मामलों के मंत्रालय के सचिव को एक हलफ़नामा (Affidavit) दायर करने का भी निर्देश दिया है. इस हलफ़नामे में आदिवासी सलाहकार परिषद के अध्यक्ष और आदिवासी कल्याण मंत्री, हैदराबाद द्वारा 2013 से अब तक प्राप्त प्रस्तावों को लागू करने के लिए उठाए गए क़दमों की जानकारी देने के लिए कहा गया है.

इसके अलावा अगर कोई क़दम नहीं उठाए गए हैं, तो उसके पीछे की वजहें बताने को कहा गया है. यह एफ़िडेविट दायर करने के लिए सरकार के पास चार हफ़्तों का समय है.

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