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आदिवासी महिलाएं ‘डोली’ में सवार हो कर बच्चे को जन्म देने जाती हैं

तेलंगाना के बाढ़ प्रभावित भद्राद्री कोठागुडेम ज़िले की आदिवासी बस्ती में एक गर्भवती महिला को ‘डोली’ (अस्थायी स्ट्रेचर) के जरिए अस्पताल ले जाया गया. इस गांव में सड़क की सुविधा नहीं है और कच्चे मार्ग के खराब होने कारण इस पर किसी भी वाहन का चलना मुश्किल हो गया है.

ज़िले के कराकागुडेम मंडल के अश्वपुरमपाडु गांव की गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हो रही थी और उसे अस्पताल ले जाने की जरूरत थी. लेकिन कारण कच्चे मार्ग की स्थिति ठीक नहीं होने के चलते एम्बुलेंस का गांव तक पहुंचना भी असंभव था. वहीं आदिवासी बस्ती के पास बारिश के चलते लबालब पानी भरा हुआ है और ग्रामीणों के लिए इसे पार करना मुश्किल हो गया था.

ऐसे में आदिवासी परिवार ने गर्भवती महिला पोडियाम देवी को प्लास्टिक की कुर्सी पर बिठाकर कुर्सी को लकड़ी के लट्ठे से बांध दिया. इसके बाद उनके पति नंदय्या और उनके परिवार ने लट्ठे के दोनों सिरों को पकड़कर कुर्सी को संतुलित किया जो कि एक स्ट्रेचर के रूप में काम कर रहा था.

आदिवासी परिवार जैसे-तैसे पानी और बाद में कीचड़ भरे रास्ते को पार कर एम्बुलेंस तक पहुंचा जो कुछ किलोमीटर की दूरी पर इंतजार कर रही थी. इसके बाद महिला को काराकागुडेम के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया. हालांकि प्रारंभिक जांच के बाद उसे एंबुलेंस से कोठागुडेम के एक सरकारी अस्पताल ले जाया गया.

एक अन्य घटना में तेलंगाना के आदिलाबाद ज़िले में ममीदिगुड़ा नाले के पास एक गर्भवती महिला ने बच्चे को जन्म दिया. दरअसल इंद्रवेली मंडल के ममीदिगुडा आदिवासी बस्ती की महिला को अस्पताल ले जाने के लिए एक बैलगाड़ी पर बिठाया गया क्योंकि परिवहन का कोई अन्य साधन नहीं था.

महिला ने अपने गांव को जैसे-तैसे पार कर लिया लेकिन जब वो पास के नाले पर पहुंची जो कि ओवरफ्लो हो रहा था, उसे पार करना मुश्किल हो गया. ऐसे में वहां झाड़ियों में जगह बनाकर स्वास्थ्य कर्मियों ने महिला को उसके प्रसव में मदद की.

आदिवासी बस्तियों में इस तरह की घटनाएं अक्सर देखने को मिलती है जब गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को सड़क की सुविधा न होने के चलते डोली यानि अस्थायी स्ट्रेचर से अस्पताल पहुंचाया जाता है.

हाल ही में छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में भी इस तरह की घटना देखने को मिली.. मामला कोरबा जिले के वनांचल क्षेत्र पसान से लगे कर्री तुलबुल गांव का है. इसी गांव की एक आदिवासी महिला को प्रसव पीड़ा शुरु हुई तो परिजनों ने डायल 112 को फोन किया.

इनकी टीम गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर पहले पहुंची जहां बम्हनी नदी उफान पर थी. वाहन को नदी किनारे छोड़कर स्टाफ पैदल चलकर गांव तक पहुंचा. गांव से महिला को डायल 112 और परिजन एक खाट में लेकर नदी के करीब पहुंचे. तब तक नदी का जलस्तर बढ़ चुका था.

खाट को फिर पालकी की तरह बनाया गया जिसके बाद पांच लोगों ने पालकी को पकड़कर नदी को पार कराया गया. नदी पार कराते समय काफी सावधानी बरती गई. नदी पार करने के बाद एम्बुलेंस तक पहुंचाया गया. फिर एम्बुलेंस पांच किलोमीटर दूर महिला को पसान अस्पताल लेकर पहुंची.

इससे पहले मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िले के ददोलपुर गांव में भी एक आदिवासी गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होने पर कुर्सी पर बैठाकर एक किलोमीटर का दलदल पार कराया गया. यहां सड़क और पुल नहीं होने से बारिश में गांव के कच्चे मार्ग पर पानी भर जाता है, जिससे आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों और नेताओं से गांव में सड़क और नाले पर पुल का निर्माण कराने की बात कही लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया.

(Image Credit: The Times Of India)

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