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तेलंगाना में 2.20 लाख एकड़ ज़मीन पर आदिवासियों के दावे खारिज किए गए

तेलंगाना में आदिवासी किसानों और वन विभाग के बीच काफी समय से खींचतान चल रही है. क्योंकि हजारों आदिवासी किसान ‘पोडु’ खेती (जूम खेती) के लिए वन भूमि के मालिकाना हक की मांग कर रहे हैं.

यह मुद्दा 15 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित है. लेकिन तेलंगाना सरकार द्वारा ‘हरिता हरम’ कार्यक्रम शुरू करने के बाद ये मामला फिर से उभर आया है.  तेलंगाना में आदिवासी वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत दावा कर रहे हैं.

दरअसल आदिवासी किसानों में एक डर पैदा हो गया है. उनको लग रहा है कि हरित हरम योजना की वजह से उनकी खेती की ज़मीन पर सरकार पेड़ लगाने की योजना बना रही है.  आदिवासियों को कहना है कि उन्हें नई सरकार उनके लंबित दावों पर फिर से विचार करने की उम्मीद थी. 

आदिवासी संघ टुडुम देबा के एक नेता ने मीडिया से कहा, “संयुक्त आंध्र प्रदेश सरकार ने 2006 में एक कानून पेश किया था जो ग्राम सभाओं को जमीन की सीमा का पता लगाने और उन्हें मालिकाना हक देने का अधिकार देता है.”

ग्राम सभाओं की सिफारिशों के आधार पर वन एवं राजस्व विभाग तथा एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी द्वारा संयुक्त सर्वेक्षण किया गया. प्रस्ताव जिला प्रशासन को भेजा गया है.

कुल 3.20 लाख एकड़ के लिए आवेदन जमा किए गए थे लेकिन इसमें से सिर्फ एक तिहाई का ही निपटारा किया गया था. जबकि शेष 2.20 लाख एकड़ से संबंधित दावों को खारिज कर दिया गया था.

तेलंगाना जन समिति के अध्यक्ष एम कोडंदरम, जिन्होंने तेलंगाना आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उन्होंने कहा, “अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि अधिकारियों को यह बताना चाहिए कि एक दावा क्यों खारिज कर दिया गया था. एक्ट को सख्ती से लागू करने से समस्या का समाधान हो जाता. यह अभी भी कर सकते हैं. समस्या को समाप्त करने का यही एकमात्र समाधान है.”

2014 में तेलंगाना के गठन के बाद यह मुद्दा और उलझ गया. टीआरएस सरकार जिसने हरित हरम की शुरुआत की ने पोडू भूमि में जंगल उगाने का फैसला किया था. जिस पर आदिवासी किसानों ने दावा किया था. 

एक अन्य आदिवासी नेता ने कहा, “पिछली सरकार ने बिना किसी कारण का पता लगाए हमारे दावों को खारिज कर दिया था. टीआरएस सरकार ने जमीनों पर कब्जा करने का फैसला किया है.”

आदिवासी किसानों को कांग्रेस और वाम दलों, किसान संघों और गैर-सरकारी संगठनों जैसे दलों का समर्थन मिला है.

आदिवासी किसानों के समर्थन में विपक्षी दलों के एकजुट होने के बीच मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव हरकत में आ गए हैं और अधिकारियों से इस मुद्दे को हमेशा के लिए निपटाने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने को कहा है.

के चंद्रशेखर राव ने कहा कि यह दर्शाता है कि जंगलों में अतिक्रमण करने वाले बाहरी लोगों को बेदखल कर दिया जाएगा. उन्होंने हाल ही में एक समीक्षा बैठक में कहा, “एक बार जब पोडु भूमि का मुद्दा तार्किक रूप से समाप्त हो जाता है तो अधिकारियों को वन भूमि की सुरक्षा के लिए सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए. सिर्फ आदिवासियों को वहां रहने की अनुमति दी जाएगी.”

सरकार की योजना वन भूमि का व्यापक सर्वेक्षण करने और सर्वेक्षण की गई भूमि को निर्देशांक सौंपने की भी है. 

आदिवासी किसान यह भी मांग कर रहे हैं कि सरकार उनके अधिकारों की रक्षा के लिए मैदानी इलाकों से लोगों का पलायन रोके. 

अरुण कुमार ने कहा, “हम 2006 के वन अधिकार अधिनियम को सख्ती से लागू करने की मांग करते हैं. यह अधिकारों का पता लगाने के लिए कट-ऑफ होना चाहिए. हम उन जमीनों को शामिल नहीं करना चाहते हैं जिन्हें 2006 के बाद मंजूरी दी गई है.”

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