Mainbhibharat

बिहार: थारू आदिवासी खुद ही करते हैं अपनी जनगणना

बिहार के पश्चिम चंपारण के थरुहट क्षेत्र में रहने वाले थारू आदिवासी हर पांच साल में खुद अपनी जनगणना करते हैं. जनगणना के दौरान क्षेत्र के 264 गाँवों को शामिल किया जाता है. इन सभी गाँवों को सामाजिक वयवस्था के अनुसार 6 भागों में बाटा जाता है. प्रत्येक भाग को तपा का नाम दिया गया है.

इस पूरी जनगणना को तीन स्तरों में बाटा गया है. सबसे पहले हर गाँव में छह लोगों की टीम बनाई जाती है. इनमें दो बुजुर्ग, दो महिलाएं, एक युवा और एक गुमास्ता (गाँव का मुखिया) शामिल होते हैं.

जिसके बाद यह सभी मिलकर गाँव के हर घर में जाकर आंकड़ों को इकट्ठा करते हैं. इसके बाद यह रिपोर्ट तपा को सौंपी जाती है. जो 6 भागो में बांटे सभी गाँवों के आंकड़े जोड़ता है और अंत में यह रिपोर्ट महासंघ में केंद्रीय कमेटी के बीच रखी जाती है.

जिसके बाद अंतिम गणना रिपोर्ट जारी होती है. इस पूरी प्रकिया में एक साल का समय लग जाता है.

अखिल भारतीय थारू कल्याण महासंघ के अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद ने बताया की पहले इस जनगणना के ज़रिए जनसंख्या का मूल्यांकन किया जाता था. लेकिन अब इसमें नौकरी, शिक्षा, आर्थिक-सामाजिक की स्थिति का मूल्यांकन भी किया जाता है.

हैरान कर देने वाली बात ये है की इन आदिवासियों के द्वारा जनगणना का मूल्यांकन और सरकार द्वारा ली गई जनगणना में काफी सामन्यताएं है.
2011 की जनगणना के अनुसार यहां पर आदिवासियों की जनसंख्या 1 लाख 92 हजार है. वहीं आदिवासियों की जनगणना के अंतर्गत चार तपाओं की जनसंख्या 1 लाख 30 हजार है. इसके अलावा दो तपाओं में करीब 60 गांव हैं. जिनकी जनगणना होना अभी बाकी है.

थारू आदिवासी कौन है ?
थारू आदिवासी मुख्य रूप से नेपाल और भारत के बिहार के चंपारण ज़िले, उत्तराखंड के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर में रहते हैं. इसके अलावा थारू शब्द की उत्पत्ति स्थवीर शब्द से हुई है. जिसका अर्थ है थेरवाद बौद्ध धर्म को मानने वाला शख्स.

वहीं ऐसा भी माना जाता है की इनकी उत्पत्ति नेपाल से हुई है. भारत में इन्हें अनुसूचित जनजाति में रखा गया है.

Exit mobile version