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लॉक डाउन में आदिवासियों के लिए अतिरिक्त तो छोड़िए, तय पैसा भी नहीं किया गया ख़र्च

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने दावा किया है कि कोविड महामारी और लॉकडाउन के असर से आदिवासी आबादी को बचाने के लिए कई उपाय किए गए थे. लेकिन उसके अपने ही आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं.

संसद में दिए जवाब में सरकार की तरफ़ से दिए जवाब में यह तथ्य सामने आया है कि जनजातीय मंत्रालय ने लघु वनोत्पाद (MFP) की ख़रीद, और एमएसपी (MSP) के लिए बजट के प्रावधान का एक चौथाई भी राज्यों को नहीं दिया गया.

मंत्रालय के अनुसार लॉक डाउन के दौरान 48 लघु वनोत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया था.

केन्द्र सरकार ने कहा है कि इस सिलसिले में राज्य सरकारों के साथ विचार विमर्श करने के बाद यह फैसला लिया गया था.

जिन राज्यों से इस मसले पर चर्चा की गई थी उसमें झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिल नाडु, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर सहित कई और राज्य शामिल थे.

लेकिन केन्द्र ने राज्य सरकारों को बढ़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदारी करने के लिए कितना फंड दिया इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं दी गई है.

इस सवाल के जवाब में केन्द्र सरकार का कहना है कि यह डिमांड के आधार पर तय होता है. इसके लिए राज्य सरकारें प्रस्ताव देती हैं. प्रस्तावों की जांच के बाद पैसा दिया जाता है.

सरकार ने संसद में जो जानकारी दी है उसके अनुसार 2019-20 के बजट में इस मकसद के लिए कुल 20 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था.

लेकिन केन्द्र ने राज्य सरकारों को मात्र 4 करोड़ रुपये ही दिए थे.

राज्य सभा में आंध्र प्रदेश के सांसद श्री सुभाषचंद्र बोस पिल्ली ने सरकार से पूछा था कि क्या सरकार ने लघु वनोत्पाद की सूचि में कुछ और वन उत्पाद जोड़े हैं.

इसके अलावा उन्होंने यह भी पूछा था कि पिछले एक साल में माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस के लिए सरकार ने बजट के प्रावधानों में से कितना पैसा ख़र्च किया.

सरकार ने संसद में जो जानकारी दी है उसके हिसाब से सरकार ने बजट प्रावधान का एक चौथाई हिस्सा भी ख़र्च नहीं किया है.

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