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कन्नड़ फिल्म निर्देशक रूद्र शिव ने आदिवासी बैंड के गीत से प्रभावित होकर सक्रिप्ट में किया बदलाव

आइए जानते हैं कि कैसे नागरहोल के जंगलों की जेनु कुरुबा जनजाति द्वारा बनाया गया कट्टुनायककर बैंड अब कन्नड़ फिल्मों तक पहुंचा गया है?

कौन हैं जेनु कुरुबा?

जेनु कुरुबा समुदाय, एक पारंपरिक शहद इकट्ठा करने वाली जनजाति है जो पश्चिमी घाट के जंगलों के मूल निवासियों में से एक है. ज़्यादातर जेनु कुरुबा कर्नाटक से है. 1970 के दशक के बाद बाघ संरक्षण परियोजना के कारण इन्हें स्थानांतरित कर नागरहोल और बांदीपुर के जंगलों में भेज दिया गया था.

अभी क्या हैं इस क्षेत्र के हालात ?

रमेश का परिवार उन 74 परिवारों में से एक है जिन्हें कुर्ग जिले के नागरहोल के जंगलों के किनारे नानाचे गड्डे हादी बस्ति में विस्थापित किया गया था.

रमेश ने बताया कि नानाचे गड्डे हादी बस्ति में उन्हें न तो खेती करने की अनुमति थी, न ही पक्के मकान बनाने की. अभी भी इस इलाके में कोई विकास नहीं हुआ है.

बैंड में इस इलाके के 15 लोग हैं जिनमें चार  महिला गायक भी शामिल हैं. वे सभी कहते हैं कि सरकार जिस उत्साह से किसी भी परियोजना का शिलान्यास करती है, उस तेज़ी से कभी काम नहीं करती.

पिछले 20 वर्षों में रमेश के लिए वास्तव में कुछ भी नहीं बदला – बिल्कुल उनकी तरह, उनके बच्चे भी अब पेट्रोमैक्स लैंप की टिमटिमाती रोशनी के नीचे किताबें रटने की कोशिश कर रहे हैं. रमेश की तरह वे भी व्यवहारिक तरीके से सीखने के आदी हैं और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के चलते संघर्ष कर रहे हैं.

शुरुआत से अबतक का सफर

जेनु कुरुबा के रमेश ने 26 वर्ष की आयु में अपने समुदाय के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए संगीत की ओर रुख किया. उस समय उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे. उन्होंने और उनके दोस्तों ने फेंके गए प्लास्टिक ड्रम और सैटेलाइट डिस्क, साथ ही उनके पूर्वजों से प्राप्त बांस और सूखे लौकी से बने संगीत वाद्ययंत्रों की एक श्रृंखला से एक “बैंड” बनाया.

रमेश ने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की और उनके सबसे बड़े बेटे  22 वर्षीय उदय ने भी दसवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया अब बैंड के लिए ‘बिद्रु कोट्टा’ बजाता है.

कुछ साल पहले नए फोकस के साथ, टीम ने बैंड के साथ और अधिक पेशेवर होकर कोम करना शुरू कर दिया. जेनु कुरुबास के लोकप्रिय संदर्भ की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने खुद को कट्टुनायककर कहने का फैसला किया.

हाल ही में, उन्होंने बेंगलुरु में महिंद्रा पर्कशन फेस्टिवल के दूसरे संस्करण के लिए चेन्नई स्थित तालवादक चारू हरिहरन के साथ काम किया.

हरिहरन ने कहा कि वह इस बात से प्रभावित हैं कि संगीतकार सीखने के लिए कितने इच्छुक हैं. हरिहरन ने कहा, “वे संगीत में प्रशिक्षित नहीं हैं, लेकिन जब हमने उन्हें रिकॉर्ड किया, तो उन्हें पिच सुधार की आवश्यकता नहीं थी और हमने इसे ज्यादातर पहले टेक में ही रिकॉर्ड किया.”

स्वदेशी संगीत की बढ़ती स्वीकार्यता ने द कट्टुनायकर्स को फिल्मों से जोड़ा. रमेश ने कहा कि उन्होंने अभी तक रिलीज होने वाली चार कन्नड़ फिल्मों में गाना गाया है.

कन्नड़ फिल्म निर्देशक रुद्र शिव ने कहा कि उनके निर्माता, पवींद्र मुथप्पा ने उन्हें कट्टुनायककर बैंड से परिचित कराया था और जब उन्होंने इसे सुना, तो उनके गीतों की प्रभावशाली लय से इतना प्रभावित हुए कि उनकी उपस्थिति को उचित ठहराते हुए, फिल्म की स्क्रिप्ट में थोड़ा बदलाव किया. निर्देशक ने कहा कि आदिवासियों और बैंड ने हमारे लिए गायन और नृत्य किया है. इस बैंड के साथ पहली फिल्म ‘शाबाश’ अगस्त में रिलीज होने वाली है.

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