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राष्ट्रपति भवन में आदिवासियों की दावत में गोपनीय क्या है?

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति (PVTG) के लोगों को मिलने के लिए बुलाया है. आज यानि सोमवार 12 जून को 1456 आदिवासी सुबह राष्ट्रपति भवन पहुंचे. भारत में आदिवासी समुदायों में से 75 समूहों को विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति के तौर पर पहचाने गए हैं. 

राष्ट्रपति भवन में आयोजित इस कार्यक्रम के बारे में आदिवासी मामलों के मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि इन आदिवासियों को राष्ट्रपति के साथ एक विशेष चर्चा के लिए बुलाया गया है. इस मुलाकात में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों के लिए सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी भी देंगी. 

आदिवासी मंत्रालय ने कहा है कि इस मौके पर राष्ट्रति भवन में कई आदिवासी समुदायों के कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे. मंत्रालय ने बताया है कि माल पहाड़िया, सिद्दी, इरुला, सहरिया, बैगा आदि समुदायों के कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं. 

भारत सरकार ने साल 2023-24 के बजट में यह घोषणा की है कि पीवीटीजी यानि विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति के विकास के लिए 15000 करोड़ रूपये ख़र्च किये जाएंगे. इस पैसे से इन समुदायों के लोगों के लिए सुरक्षित घर, साफ़ पीने का पानी, स्वच्छता, शिक्षा और पोषण का इंतज़ाम किया जाएगा.

कार्यक्रम के बारे में ग़ैर ज़रूरी गोपनीयता

इस कार्यक्रम के बारे में एक बेहद दिलचस्प बात ये है कि जिन आदिवासियों को इस कार्यक्रम में बुलाया गया है उन्हें राष्ट्रपति भवन पहुंचने तक भी इस कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में बताया नहीं गया था.

इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मध्य प्रदेश से आए एक डेलिगेट ने 11 जून की शाम को MBB से बातचीत में कहा, “ हमें रेलवे स्टेशन से ला कर होटल में रख दिया गया है. सुबह सात बजे हमें राष्ट्रपति भवन ले जाएंगे. वहां क्या कार्यक्रम है इस बारे में हमें अभी कुछ भी नहीं बताया गया है.”

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि विशेष रूप से पछड़ी जनजातियों के प्रतिनीधियों को अगर राष्ट्रपति भवन बुलाया जात है तो यह एक बेहतरीन कदम है. लेकिन यह बात समझ से परे है कि जिन आदिवासियों को राष्ट्रपति भवन में बुलाया गया है, उन्हें ही इस कार्यक्रम का एजेंडा आखरी क्षण तक कुछ नहीं बताया गया.

राष्ट्रपति भवन के अधिकारी भी इस आयोजन के बारे में सवाल को टाल गए. आमतौर पर इस तरह के कार्यक्रम के बारे में सरकार मीडिया के माध्यम से लोगों को सूचित करती है, लेकिन इस कार्यक्रम के बारे में सरकार मानो गोपनीयता बरत रही है. 

सरकार ने पीवीटीजी के विकास के लिए 15000 कोरड़ का बजट बेशक तय किया है. लेकिन सरकार के दावों पर सवाल भी किये गए हैं. मसलन संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के पास पीवीटीजी समुदायों की जनसंख्या के आंकडे तक मौजूद नहीं है.

इस स्थिति में पैसे का आवंटन कैसे किया जाएगा. इस सवाल के साथ संसदीय कमेटी ने सुझाव भी दिया है कि सरकार विशेष रूप से कमज़ोर जनजातियों की जनसंख्या के आंकड़े हासिल करे. 2014 में प्रोफेसर खाखा कमेटी की रिपोर्ट में भी यह सुझाव दिया गया था.

लेकिन संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में दिये सुझाव या फिर खाखा कमेटी की रिपोर्ट, दोनों को ही अभी तक तो सरकार ने नज़रअंदाज़ किया है. 

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