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आदिम जनजातियों पर पूछे सवाल पर सरकार ने बढ़ाया सांसद का सामान्य ज्ञान

लोकसभा में सांसद विष्णु दयाल राम ने जनजातीय कार्य मंत्री से एक सवाल पूछा. उन्होंने जानना चाहा कि क्या विशेषतः दुर्बल जनजातीय समूह यानि पीवीटीजी और अन्य सामाजिक समूहों के बीच आर्थिक और सामाजिक विषमताओं का कोई सूचकांक है?

इस सवाल के दूसरे भाग में उन्होंने यह भी पूछा कि अगर ऐसी व्यवस्था नहीं है तो क्यों नहीं है? विष्णु दयाल राम आगे पूछते हैं कि क्या सरकार पीवीटीजी और अन्य सामाजिक समूहों के बीच सामाजिक आर्थिक विषमताओं का आकलन करने के लिए कोई समान तंत्र स्थापित करने का विचार रखती है. 

सांसद विष्णु दयाल राम का यह एक महत्वपूर्ण सवाल है. इस सवाल को पूछने का कारण बताते हुए वो कहते हैं कि अगर ऐसा कोई सूचकांक होगा तो पीवीटीजी के उत्थान के लिए आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप (Policy intervention ) की रूपरेखा तैयार करने में मदद मिल सकती है.

सरकार ने इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब दिया है – जी नहीं. यानि ऐसा कोई सूचकांक नहीं है. अब आप अंदाज़ा लगाएँ की सवाल के दूसरे भाग का उत्तर सरकार ने क्या दिया होगा.

सरकार ने सांसद को बताया की देश में 75 पीवीटीजी हैं

सवाल का दूसरा भाग था कि अगर नहीं है तो क्यों नहीं है. अब आप सुनिए सरकार का जवाब क्या है. केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय में राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरूता की तरफ़ से जवाब दिया जाता है – जी नहीं. 

अब इस ‘जी नहीं’ का मतलब क्या है. सांसद ने तो पूछा है कि अगर पीवीटीजी और अन्य सामाजिक समुदायों या समूहों के बीच सामाजिक और आर्थिक ग़ैर बराबरी का कोई सूचकांक(index) नहीं है तो क्यों नहीं है. अब इस सवाल का जवाब “ जी नहीं” कैसे हो सकता है. 

ऐसा नहीं है कि सरकार ने जवाब सिर्फ़ इतना संक्षिप्त दिया है. सरकार ने आगे जवाब दिया है और कम से कम दो पैराग्राफ़ का जवाब दिया है. अपने उत्तर में सरकार ने सबसे पहले सांसद, संसद और संसद के माध्यम से देश का ज्ञान बढ़ाया है.

जनजातीय मंत्रालय ने सबसे पहले तो अपने उत्तर में यह बताया है कि किसी आदिवासी समुदाय को पीवीटीजी वर्ग में रखने के मापदंड क्या होते हैं. इस जवाब में सरकार ने बताया है कि देश में 75 जनजातियों को पीवीटीजी की श्रेणी में रखा है. 

उसके बाद चार मापदंडों का सूचि भी दी है. इसमें बताया गया है कि जो आदिवासी समूह अभी भी खेती के लिए पुरातन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं या फिर उनकी जनसंख्या में गिरावट है, या फिर साक्षरता दर बेहद कम है, या फिर अर्थव्यवस्था सिर्फ़ जीने तक ही सीमित है, या फिर ये सभी बातें किसी आदिवासी समुदाय में हैं तो उसे पीवीटीजी की श्रेणी में रखा जाता है.

इसके बाद सरकार ने पीवीटीजी के संरक्षण और सह विकास के बारे में सांसद, संसद और देश को जानकारी देते हुए कहा है कि उसका उद्देश्य पीवीटीजी श्रेणी की संस्कृति और विरासत को बनाए रखते हुए उनका आर्थिक विकास करना है.

मतलब कुल मिला कर यह निकला कि सांसद ने जो पूछा सरकार ने उस सवाल के जवाब के अलावा कई जानकारी दीं जो शायद सांसद महोदय और आम लोगों का सामान्य ज्ञान बढ़ाने में मदद करेगा.

लेकिन सरकार कम से कम इतना लिहाज़ तो कह ही सकती थी कि अगर जवाब नहीं देना है तो ना दे, कम से कम सांसद पर इतना भरोसा तो रखे कि अगर वो पीवीटीजी पर सवाल पूछ रहे हैं तो उन्हें इतना तो पता ही होगा कि किसी आदिवासी समूह को पीवीटीजी श्रेणी में रखने के मापदंड क्या हैं. 

आदिवासी मसलों से जुड़े सांसदों के सीधे सवालों के सरकार ने जो जवाब संसद में दिए हैं या देती रही है, उन्हें आप पढ़ें, सुनें या देखें तो आपको समझ नहीं आएगा कि सूरतेहाल पर रोएं या हंस दें. 

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