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कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों पर ख़तरा ज़्यादा, आदिवासी इलाक़ों में क्या होगा?

भारत में अभी कोरोना की दूसरी लहर  से मचे हाहाकार के बीच विशेषज्ञों ने इस वायरस संक्रमण की तीसरी लहर की चेतावनी दे दी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने   ज़िला अधिकारियों की बैठक में इस मसले पर भी चर्चा की.

प्रधानमंत्री ने ज़िला अधिकारियों को कहा है कि बच्चों के लिए ख़ास तरह के मास्क तैयार करने मात्र से बात नहीं बनेगी. बल्कि बच्चों के इलाज़ के लिए इंतज़ाम करने होंगे. जहां बच्चों के लिए अस्पताल मौजूद हैं उन्हें अपग्रेड करना होगा.

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर बच्चों को निशाना बना सकती है. क्योंकि यह वायरस हर बार किसी नए शिकार की तलाश में निकलता है.

अभी तक बच्चों के लिए दुनिया भर में किसी वैक्सीन को अनुमति भी नहीं मिली है. भारत में बच्चों के मामले में सबसे बड़ी चुनौती है भारत में बच्चों का कुपोषित होना. 

आदिवासी भारत में यह चुनौती और भी बड़ी होगी. क्योंकि बच्चों में कुपोषण और मृत्यु दर दोनों ही अन्य समुदायों की तुलना में बहुत अधिक है. 8 दिसंबर 2014 को संसद में सरकार इस बारे में जो जानकारी दी थी वो काफ़ी चिंता पैदा करने वाली मानी जा सकती है.

आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने संसद को जानकारी दी थी कि आदिवासियों में शिशु मृत्यु दर अन्य समुदायों की तुलना में दो गुना से भी ज़्यादा है. इसके अलावा कुपोषण के मामले में भी आदिवासी समुदायों की हालत बेहद ख़राब है.

ख़ासतौर से पीवीटीजी कहे जाने वाले समूहों में कई समुदाय ऐसे हैं जिनमें कुपोषण से बच्चों की मौत एक बड़ा मुद्दा है. मसलन सहरिया, लोधा, हिल खड़िया, मांकड़िया या बिरहोर समुदायों में कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत की दर काफ़ी ज़्यादा है.

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए बच्चों के लिए ख़ास आईसीयू बनाने की ज़रूरत है. क्योंकि बहुत छोटे बच्चों को अकेले आईसीयू में रखना मुश्किल काम हो सकता है.

आदिवासी इलाक़ों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल पहले से ही ख़राब है. अगर कोरोना महामारी बच्चों तक पहुँच जाती है तो हालात बेहद गंभीर बन सकते हैं.

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