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‘आदिवासियों की कानून की समझ बढ़ेगी, तो अपराध होगा कम’

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम की ग्रामीण पुलिस ने जिले के अलग अलग हिस्सों में आदिवासियों के बीच कानून के बारे में जागरुकता बढ़ाने का फैसला किया है.

इस विशेष अभियान की अहमियत हाल में सामने आए बच्चों की आत्महत्या और यौन शोषण के कई मामलों के मद्देनजर है. यह मामले पेरिंगमाला सहित कई ग्रामीण आदिवासी बस्तियों से सामने आए हैं.

सितंबर से पालोड और विदुरा में पांच आदिवासी लड़कियों की संदिग्ध आत्महत्या ने अधिकारियों को कार्रवाई करने पर मजबूर किया. हाल ही में आदिवासी बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं भी बढ़ी हैं.

कुछ दिन पहले ही विदुरा पुलिस ने दो बहनों से यौन शोषण के आरोप में दो युवकों को गिरफ्तार किया था.

जिला पुलिस प्रमुख (तिरुवनंतपुरम ग्रामीण) दिव्या वी. गोपीनाथ को भरोसा है कि कानूनी साक्षरता बढ़ाकर युवाओं को सशक्त बनाने से हाशिए के समुदायों में अत्याचारों में कमी आएगी.

“आम जनता पहले बाल शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने में आगे नहीं आ रही थी. हालाँकि, बढ़ती जागरूकता ने बच्चों के खिलाफ अत्याचार से निपटने वाले POCSO अधिनियम से जुड़े मामलों में तेजी आई है. यही रणनीति आदिवासी समुदायों के युवाओं को भी फायदा देने में काम आयेगी,” डॉ गोपीनाथ ने कहा.

हाल का दो बहनों के यौन शोषण का मामला तब सामने आया था जब दोनों में से बड़ी बहन को उसके रिश्तेदार ने अगवा कर लिया था. बड़ी बहन के बयान ने जहां महीनों से चल रहे शोषण से पर्दा हटाया था, जांच दल ने छोटी बहन को डिप्रेशन में पाकर उसकी दुर्दशा का खुलासा किया.

छोटी बहन को अपने दर्दनाक अनुभव के बारे में बात करने में मदद करने के लिए उसकी काउंसलिंग की गई.

डॉ. गोपीनाथ ने इस तरह की समस्याओं का अपने माता-पिता और शिक्षकों को बताने के लिए प्रोत्साहित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

पुलिस ने अलग अलग इलाकों में बच्चों और युवाओं के लिए ओरिएंटेशन प्रोग्राम शुरू कर दिया है. कुछ वार्डों में स्थानीय पुलिस इकाइयों के निरीक्षकों द्वारा क्लास ली जा रही है.

आदिवासी बस्तियों में इस तरह की गतिविधियों की संभावना को नाकाम करने के लिए आबकारी अधिकारियों सहित कानून लागू करने वाले अधिकारी सतर्कता बरत रहे हैं.

निगरानी बढ़ाने के हिस्से के रूप में, पालोड काअनुसूचित जनजाति विकास विभाग आदिवासी कॉलोनियों तक जाने वाली सड़कों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने पर विचार कर रहा है.

यह इसलिए किया जा रहा है क्योंकि आदिवासी समुदायों के मुखियाओं ने अपने इलाकों में बाहरी लोगों के आने पर चिंता जताई थी.

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