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रग्बी के मैदान में उम्मीदों की उड़ान भरती आदिवासी लड़कियां

जहाँ चाह है वहाँ राह है यह कहावत पश्चिम बंगाल की जलपाईगुड़ी की इन तीन आदिवासी लड़कियों के लिए सही बैठती है जिन्होंने रग्बी में भारत का प्रतिनिधित्व करने के अपने सपने को पूरा करने के लिए सभी मुश्किलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. जहां जिले के कई युवाओं ने पहले ही यह उपलब्धि हासिल कर ली है वहीं ये लड़कियां अपने सपने को साकार करने की राह पर हैं.

एक आदिवासी परिवार से होने के कारण पैसों की समस्या उनके सामने आने वाली कई बाधाओं में से एक था. उनके माता-पिता एक चाय बागान में काम करते हैं और 200 रुपये प्रति दिन कमाते है, जो सिर्फ परिवार का भरण पोषण करने योग्य है.

तथ्य ये है कि इन आदिवासी लड़कियों के माता-पिता उनके सपने का आर्थिक रूप से समर्थन नहीं कर सके. लेकिन इसके बावजूद इस बाधा ने युवा खिलाड़ियों को नहीं रोका.

इन लड़कियों के दृढ़ संकल्प को जंगल क्रो फाउंडेशन (Jungle Crows Foundation) का समर्थन प्राप्त था. जो एक खेल और सामाजिक विकास संगठन है जो रग्बी में युवाओं का समर्थन करता है और उन्हें प्रशिक्षित करता है.

जंगल क्रो के कोच और प्रोजेक्ट मैनेजर, रोशन खाखा ने ANI को दिए एक इंटरव्यू में खुलासा किया कि संगठन की शुरुआत 2010 में एक पैरिश पुजारी की सहायता से की गई थी. उन्होंने बताया कि अब तक दर्जनों लड़कियों को राष्ट्रीय रग्बी टीम में जगह मिली है.

रोशन ने साझा किया कि कैसे रग्बी ने जलपाईगुड़ी में रहने वाले युवाओं की जीवन शैली को बदल दिया है जो पहले चाय के बागानों में काम करते थे या शादी कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के युवाओं के जुनून और समर्पण को देखकर बहुत अच्छा लगता है.

संगठन ट्यूशन, कक्षाएं और अन्य कार्यशालाएं भी प्रदान करता है ताकि खिलाड़ियों की शिक्षा प्रभावित न हो. जलपाईगुड़ी के छात्रों को पढ़ाना क्यों पसंद करते हैं? इस बारे में बात करते हुए रोशन ने कहा कि इस क्षेत्र की सबसे अच्छी बात यह है कि बच्चे बहुत मेहनती हैं. इसके अलावा कोच ने बताया कि उन्हें खेलो रग्बी परियोजना के तहत केंद्र सरकार से समर्थन मिलता है. राज्य सरकार का समर्थन पहल को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाएगा.

जंगल क्रो फाउंडेशन के कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय रग्बी टूर्नामेंट में राज्य का प्रतिनिधित्व किया है. राष्ट्रीय खिलाड़ियों में से एक रश्मिता ओराव ने बताया कि एक दिन में सिर्फ एक वक्त का भोजन प्राप्त करने के बावजूद खिलाड़ी खेल में बने रहे क्योंकि वो इसके लिए प्रतिबद्ध हैं.

राष्ट्रीय रग्बी खिलाड़ी ने कहा कि गरीबी ने उन्हें खेल खेलने से नहीं रोका. उन्होंने कहा, “अगर हमें सरकार से पर्याप्त सहयोग मिलेगा तो हम खेल के क्षेत्र में अपने देश को गौरवान्वित कर सकते हैं.”

(यह तस्वीर प्रतिकात्मक है)

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