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त्रिपुरा: बीजेपी से झटका खाने के बाद बिलबिलाए आदिवासी नेता, एकता की अपील

त्रिपुरा में आदिवासी आबादी की वोट पाने की प्रतिस्पर्धा एक नए दौर में प्रवेश कर गई है. बीजेपी ने टिपरा मोथा (TIPRA MOTHA) को बड़ा झटका दिया है. इसके बाद टिपरा मोथा (Tripura Indigenous Peoples Regional Alliance ) के नेता प्रद्योत किशोर देबबर्मन (Pradyot Kishore Debbarman) ने बीजेपी की सहयोगी IPFT से अपील की है कि वो टिपरा मोथा के साथ आ जाए.

IPFT राज्य में एक और बड़ा आदिवासी संगठन हैं जो फ़िलहाल बीजेपी के साथ सत्ता में हिस्सेदार है. पिछले दिनों में इस पार्टी के नेताओं यहाँ तक कि सरकार में मंत्रियों ने ऐसे बयान दिए हैं जिससे लगता है कि बीजेपी और इस पार्टी के बीच कुछ तनाव चल रहा है. 

अभी तक टिपरा मोथा और आईपीएफटी के दबाव में बीजेपी ने बड़ा पलटवार किया है. पिछले सोमवार को इन दोनों ही पार्टियों के एक हज़ार से ज़्यादा सदस्य बीजेपी में शामिल हो गए. इस घटना के बाद टिपरा मोथा ने IPFT पर दबाव बनाया है कि वो सरकार से बाहर आ जाए. 

टिपरा मोथा ने त्रिपुरा की राजनीति में ज़बरदस्त एंट्री की थी. इस पार्टी ने राज्य की त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज़ ऑटोनॉमस डेवलपमेंट काउंसिल में बीजेपी को हरा कर प्रभावशाली जीत हासिल की थी. इसके बाद राज्य की राजनीति में इस पार्टी की भूमिका को महत्व मिल रहा था.

लेकिन अभी तक दबाव में नज़र आ रही बीजेपी ने खेल को पलटने का प्रयास किया है.

TIPRA नेता प्रद्योत किशोर देबबर्मन

टिपरा मोथा (TIPRA MOTHA) का क्या कहना है

टिपरा मोथा के अध्यक्ष ने सोमवार को दो आदिवासी पार्टियों को छोड़कर जाने वाले लोगों से कहा है कि यह समय साथ आने का है. प्रद्योत किशोर देबबर्मन ने IPFT से भी अपील की है कि वो टिपरा मोथा के साथ आ जाए. उन्होंने कहा कि जब दोनों संगठनों की माँग एक ही है तो फिर मंच अलग अलग क्यों है.

उन्होंने कहा कि अगर सभी आदिवासी नेता और संगठन एक मंच पर आ जाएँगे तो सबको कुछ ना कुछ हासिल हो सकता है. उन्होंने एक वीडियो संदेश के ज़रिए यह बात कही है. प्रद्योत देबबर्मन ने बीजेपी और सीपीएम के आदिवासी सदस्यों और नेताओं से भी अपील की है कि वो भी आदिवासियों की पार्टी में शामिल हों.

टिपरा मोथा की माँग क्या है

टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत देबबर्मन राज्य में कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस छोड़ने के बाद एक अलग दल बना कर त्रिपुरा के लिए अलग राज्य बनाने की माँग को पुनर्जीवित किया है. TTAADC (Tripura Tribal Areas Autonomous Council) में जीत के साथ उन्होंने त्रिपुरा की राजनीति में नए समिकरण पैदा कर दिए.

राज्य में आदिवासियों की सबसे बड़ी पार्टी IPFT पर भी दबाव बना और उसने अलग राज्य की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया. उसके सभी बड़े नेता इस सिलसिले में सार्वजनिक बयान दे रहे थे. इन नेताओं ने बीजेपी पर आरोप भी लगाने शुरू कर दिये.

सरकार में शामिल नेताओं ने भी बीजेपी पर IPFT को धोखा देने का आरोप लगा दिया था. दरअसल आदिवासी नौजवानों में टिपरा मोथा का समर्थन बढ़ रहा था जो IPFT को परेशान कर रहा था. 

बीजेपी का क्या कहना है

त्रिपुरा में सरकार में क़ायम बीजेपी का कहना है कि उसने अलग राज्य की माँग का कभी भी समर्थन नहीं किया है. सोमवार को IPFT और टिपरा मोथा के लोगों को पार्टी की सदस्यता देते वक़्त बीजेपी नेताओं ने टिपरा मोथा की आलोचना की थी. 

बीजेपी सरकार में शामिल प्रतिमा भौमिक ने आरोप लगाया कि ‘टिपरालैंड’ का नारा देकर प्रद्योत किशोर देबबर्मन लोगों को गुमराह कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि दरअसल टिपरामोथा इस माँग के सहारे बीजेपी को बदनाम करके सीपीएम को फ़ायदा पहुँचाने की राजनीति कर रहे हैं.

इस आरोप के जवाब में प्रद्योत किशोर ने बीजेपी नेताओं के इस मुद्दे पर किसी भी मंच पर या लाइव टीवी पर बहस की चुनौती दी है.

त्रिपुरा में सत्ता में पहुँचने के लिए किसी भी दल के लिए आदिवासियों का समर्थन बेहद ज़रूरी है. इसलिए सभी पार्टियों के लिए आदिवासी संगठन काफ़ी महत्व रखते हैं. लेकिन इस राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में यह ध्यान रखना होगा कि त्रिपुरा में आदिवासी और बंगाली समुदायों के बीच संसाधनों का बँटवारा और दबदबा बड़ा मुद्दा रहा है.

राज्य ने इस सिलसिले में जातीय हिंसा का दौर भी देखा है. इसलिए चुनाव जीतने के लिए किस हद तक जाया जा सकता है, एक सीमारेखा सभी दलों को तय करनी होगी.

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