Mainbhibharat

जैसे जंगल में फलों का पेड़ होता है, वैसे ही स्कूल में किताबों का पेड़

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के एक सुदूर आदिवासी गाँव में, जिला परिषद स्कूल के परिसर में एक अनोखा पेड़ लगा है, जिसका फल बच्चों के भविष्य को बेहतर कर सकता है. 

नक्सल प्रभावित भामरागढ़ तालुका में स्थित कोयंगुडा जिला परिषद प्राइमरी स्कूल में, कहानियों की किताबें पेड़ से फलों की तरह लटकी हुई हैं, और बच्चे इन ‘फलों’ को ‘तोड़ने’ के लिए काफी उत्सुक हैं.

किताबों के इस पेड़ की योजना बनाने और उसे लागू करने वाले टीचर विनीत पद्मावर ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, “हम इसे पुष्कांचा झाड (किताबों का पेड़) कहते हैं. इसका इकलौता मकसद छात्रों की पढ़ने में रुचि बढ़ाना है. इसके लिए हम उन्हे वही देते हैं, जो वो चाहते हैं. इसलिए, उम्रके हिसाब से कहानियों की किताबों का इस्तेमाल किया गया है.”

लेकिन, यह काम आसान नहीं है. पद्मावर का कहना है कि चूंकि स्कूल में प्राइमरी के छात्र हैं, तो इन बच्चों का ध्यान जल्दी बंट जाता है, इसलिए उन्हें हर दूसरे दिन कोई नया तरीका अपनाना पड़ता है.

एक किताबी पेड़ की यह योजना असल में इन आदिवासी बच्चों के जीवन का प्रतिबिंब है. जिस तरह से इलाके के आदिवासी जंगल में पेड़ों से फल तोड़ते हैं, उसी तरह वो स्कूल में लगे इस पेड़ से किताबें तोड़ अपने सपनों को पंख दे रहे हैं.

फल तोड़ने की खुशी, और फिर यह देखना कि उसका स्वाद कैसा होगा, ये सब उस फल को तोड़ने की प्रक्रिया का हिस्सा है. इसी तरह से जब कोई छात्र किताब तोड़ता है तो वह नहीं जानता कि उसके अंदर उसे क्या मिलेगा.

बच्चे पहली नजर में सिर्फ किताब को उसके कवर से ही आंकते हैं. जब वो उसे पढ़ते हैं, तो हर किताब उनके लिए एक नया एहसास है.

टीचर पद्मावर ने देखा है कि एक बार किताब लेने के बाद बच्चे उसे पूरा पढ़ते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कोई फल तोड़ने के बाद उसे पूरा खाया जाता है, भले ही वो मीठा न हो.

हालांकि शिक्षक चाहते हैं कि छात्र इस पेड़ से रोज किताबें तोड़ सकें, लेकिन किताबों को बाहर छोड़ना मुश्किल है. इसलिए हफ्ते में एक या दो दिन ही पेड़ पर किताबें लगाई जाती हैं, और बच्चों को पढ़ने का अलग से समय दिया जाता है.

पेड़ की मौजूदा फसल 3-डी कहानी की किताबें हैं जो बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. इसकी वजह सिर्फ यह किताबें नहीं, उन्हें पढ़ने के लिए जरूरी खास चश्मे भी है, जो बच्चों को बहुत पसंद हैं.

पीपीपी के माध्यम से, जिसमें यूनिसेफ महाराष्ट्र भी शामिल है, कई जिला परिषद स्कूलों में अब एक पुस्तकालय बन चुका है. और बच्चों की पढ़ाई में रुचि बढ़ाने में इसका प्रभाव कोयंगुडा गाँव में देखा जा सकता है.

Exit mobile version