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‘डायनों’ के शिकार को रोकने के लिए केंद्रीय कानून ज़रूरी

झारखंड में आदिवासी कल्याण कार्यकर्ताओं ने राज्य में witch-hunting (डायन-शिकार) की प्रथा को रोकने के लिए ‘ओझा’ और आदिवासी मुखियाओं को जवाबदेही तय करने के लिए एक केंद्रीय कानून लागू करने की मांग की है.

गैर-सरकारी संगठन फ्री लीगल एड कमेटी (एफएलएसी) के अध्यक्ष प्रेमजी का कहना है कि झारखंड में हर साल लगभग 40-50 लोगों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, को डायन होने के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है और मार दिया जाता है. 

2019 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, ऐसे मामलों में झारखंड देश में तीसरे स्थान पर है, और उस वर्ष 15 लोग इस तरह से मारे गए थे.

सबसे ताजा मामला इस साल सितंबर में गुमला जिले के लोटो गांव में दर्ज किया गया, जब काला जादू करने के आरोप में एक ही परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.

“इस प्रथा को रोकने के लिए एक केंद्रीय कानून लागू किया जाना चाहिए. हालांकि प्रशासन को जमीनी स्तर पर भी जागरूकता पैदा करने की जरूरत है. इस मुद्दे को स्कूलों के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए, इसके खिलाफ टीवी पर प्रचार की भी जरूरत है, और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए ट्रेनिंग दी जानी चाहिए,” प्रेमजी ने कहा.

प्रेमजी का कहना है कि चुड़ैलों के शिकार के मामले बहुत कम रिपोर्ट किए जाते हैं.

उनका दावा है कि यह मुद्दा 17 से ज्यादा राज्यों को प्रभावित करता है, इसलिए देशीय स्तर पर इस समस्या का समाधान ढूंढने की जरूरत है.

“चुड़ैल” की पहचान करने में अहम भूमिका निभाने वाले ओझाओं के खिलाफ की सख्त कार्रवाई की जरूरत है क्योंकि आदिवासी उन पर विश्वास करते हैं. इसके लिया पहले ओझाओं के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसर तैयार करने को जरूरत है. 

पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगल अभियान (एएसए) के अध्यक्ष सलखान मुर्मू ने कहा कि डायन-शिकार के मामलों पर तभी अंकुश लगाया जा सकता है जब ‘माझी-परगना’ (आदिवासी मुखिया) और ‘ओझा’ को ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए.

उन्होंने कहा, “हम केंद्रीय कानून लागू करके इस समस्या को कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन इस तरह की कुप्रथाओं को खत्म करने की जिम्मेदारी पूरी आदिवासियों की है.”

एक तरफ जहां पीड़ितों के साथ व्यक्तिगत दुश्मनी एक वजह है उन्हें चुड़ैल करार दिए जाने के, तो दूसरी तरफ उनकी जमीन हड़पने का इरादा भी इस ब्रांडिंग में भूमिका निभाता है.

मुर्मू ने सुझाव दिया कि गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाया जाए और जहां ऐसी घटनाएं होती हैं, वहां सरकारी कल्याणकारी योजनाओं पर अंकुश लगाया जाए और सरदारों का चयन वंशवाद की बजाय लोकतांत्रिक तरीके से हो.

उन्होंने कहा, “अधिकांश आदिवासी सरदार निरक्षर हैं और उन्हें संविधान के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है.”

पूर्वी सिंहभूम जिले के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) नाथू सिंह मीणा ने कहा कि हफ्ते में दो तीन दिन अलग अलग थाना क्षेत्रों में अंधविश्वास विरोधी अभियान चलाया जाता है.

मीणा ने कहा, “हालांकि कुल मिलाकर जादू टोना से संबंधित घटनाओं में कमी आई है, लेकिन इस प्रथा के संबंध में महिलाओं पर अत्याचार की खबरें कभी-कभी सामने आती हैं.”

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