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2011 तिरुकोविलूर पुलिस अत्याचार मामले की जांच के लिए आयोग बने: आदिवासी कार्यकर्ता

तमिल नाडु राज्य मानवाधिकार आयोग ने हाल ही में 2011 में तिरुकोविलूर में पुलिस अत्याचार की शिकार इरुुला आदिवासी पीड़ितों को मुआवजा देने की सिफारिश राज्य सरकार से की थी. अब इसके मद्देनजर आदिवासी कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री से तत्कालीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है. इन पुलिसवालों पर आदिवासी औरतों का बलात्कार और टॉर्चर का आरोप है.

आदिवासी कार्यकर्ता पीवी रमेश ने एक बयान में कहा, “सरकार को नौ आदिवासी पुरुषों के खिलाफ लगाए गए झूठे आरोपों को रद्द करना चाहिए. यह उस समय के झूठे मामले हैं जब आदिवासियों पर बलात्कार समेत दूसरे अत्याचार किए जा रहे थे.”

आदिवासियों की मांग हैं इस मुद्दे को जांच के लिए हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया जाए और उसके बाद आयोग द्वारा दी गई सिफारिश को लागू किया जाए, ताकि कुरवर और इरुला जैसी कमजोर जनजातियों के सम्मान के मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सके.

इसके अलावा मांग है कि एससी / एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत विल्लुपुरम रेंज के तत्कालीन डीआईजी शक्तिवेल, विल्लुपुरम के पुलिस अधीक्षक वी भास्करन, इंस्पेक्टर रेवती, मल्लिका और वसंता के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.

इन पुलिसकर्मियों पर 2011 की घटना के समय महिलाओं को हिरासत में लेने और धमकाने का आरोप है.

इसके अलावा तिरुकोविलूर के तत्कालीन पुलिस निरीक्षक तमिलमारन पर भी कार्रवाई की मांग है, जिन्होंने कथित तौर पर नौ इरुला आदिवासियों को छह दिनों के लिए कैद किया, उन्हें प्रताड़ित किया और उन पर चोरी के पांच झूठे मामले दर्ज किया.

एक्टिविस्ट कल्याणी ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “असली अपराधियों को खोजे बिना आदिवासियों को चोरी के आरोप में प्रताड़ित करने का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है. इसके अलावा, 1993 से हम जिन 50 से अधिक लोगों को जानते हैं, उनके खिलाफ कोई भी झूठा चोरी का मामला साबित नहीं हुआ है. फिर भी इस तरह के मामले दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.”

मामला क्या है

नवंबर 2011 में, तिरुकोविलूर पुलिस स्टेशन के चार पुलिस अधिकारियों ने चार इरुला आदिवासी महिलाओं का कथित रूप से बलात्कार किया था. घटना के एक दशक बाद भी यह आदिवासी विल्लुपुरम (एससी / एसटी पीओए) विशेष अदालत में सुनवाई शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं.

उनके परिवारों के 11 सदस्यों के साथ, उन्हें कथित तौर पर पुलिस हिरासत में बेरहमी से प्रताड़ित भी किया गया था.

मंगलवार को एसएचआरसी ने राज्य सरकार को पुलिस की बर्बरता के शिकार 15 पीड़ितों को 75 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था. हालांकि आदेश ने पीड़ितों को उम्मीद दी है, फिर भी वे मुकदमे की शुरुआत में हो रही देरी से पीड़ित हैं.

(तस्वीर प्रतीकात्मक है)

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