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केरल: आदिवासी कला शैली ‘मंगलमकली’ स्कूलों के प्रतिस्पर्धा में होगा शामिल

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समय के साथ कुछ आदिवासी कला लुप्त होने की कगार पर है इसलिए कई आदिवासी कलाकार उन्हें संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसी क्रम में अब ये प्रयास स्कूलों में भी दिखने लगा है.

दरअसल, केरल के कोल्लम शहर के एक विद्यालय में कार्यक्रम की शुरुआत आदिवासी नृत्य कला से की गई है.

कोल्लम शहर के 62वें केरल स्कूल कलोलसावम (62nd Kerala School Kalolsavam) के उद्घाटन समारोह में दर्शकों को ‘मंगलमकली’ (Mangalamkali) नाम के एक नृत्य अनुष्ठान को देखकर एक अद्भुत अनुभव हुआ.

मंगलमकली नृत्य अनुष्ठान का प्रदर्शन कासरगोड (Kasaragod) के मंचन मॉडल आवासीय विद्यालय (Model Residential School) के छात्रों के साथ ही अनुसूचित जनजाति विभाग की एक छात्रा की विद्यार्थी ने भी किया.

मंगलमकली, उत्तरी केरल की माविलन जनजाति (Mavilan tribe) द्वारा किया जाने वाला एक नृत्य अनुष्ठान है.

मंचन मॉडल आवासीय विद्यालय के 62वें केरल स्कूल कलोलसावम के संस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत नर्तकों, गायकों और थुडी जैसे संगीत वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन करने वालों के साथ 15 सदस्यीय दल ने इस कला की प्रस्तुती की.

कार्यक्रम में इस नृत्य का प्रदर्शन करने के लिए लड़कियों को स्कूल के गैर-शिक्षण स्टाफ सदस्य राजीवी और स्कूल छात्रावास में रसोइया राजू ईके द्वारा प्रशिक्षण दिया गया.

लड़कियों को कला का प्रशिक्षण देने वाले राजू ने बताया कि मंगलमकली आमतौर पर माविलन जनजाति के विवाह समारोहों के दौरान किया जाता है. इस कार्यक्रम के लिए छात्राओं ने बहुत जल्दी इस नृत्य को सीख लिया था.

विद्यालय में पढ़ने वाले 12वी कक्षा के छात्र मंजा मोहन ने कहा कि उसने पहले भी इस कला को देखा था लेकिन उसने यह नृत्य स्कूल में ही सीखा है.

मोहन ने बताया कि उसे लगता है कि आजकल ज्यादातर लोग आदिवासी समुदायों के कला रूपों को देखना और उसका आनंद लेते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं.

मोहन ने यह भी कहा कि हालांकि मंगलमकली को कला उत्सव के उद्घाटन समारोह के हिस्से के रूप में किया गया है. लेकिन इस जनजातीय कला रूप को अगले साल एक प्रतियोगिता आइटम बनाया जाएगा.

मोहन ने कहा कि अगले साल से आदिवासी कला रूपों को प्रतिस्पर्धी श्रेणी में पेश करने के सरकार के फैसले से खुश है. लेकिन उसने इस फैसले पर निराशा भी व्यक्त की क्योंकि यह निर्णय बहुत देरी से लिया गया है. क्योंकि अब वह 12वी कक्षा में है और वो अगले साल युवा महोत्सव में प्रतिस्पर्धा में हिस्सा नहीं ले सकता है.

उसने कहा कि यह अच्छा होता अगर कला को कुछ साल पहले प्रतिस्पर्धी श्रेणी में शामिल किया जाता.

इसके अलावा इस विद्यालय के प्रिंसिपल अरुण कुमार ने कहा कि प्रदर्शन के बाद लोगों से मिली प्रतिक्रिया से वह बहुत खुश हैं.

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति विभाग के अधिकारियों ने इस कला को देखा था और इसे कला महोत्सव में शामिल करने के लिए सरकार के सामने प्रस्ताव रखा था.

मंगलमकली कला

मंगलमकली उत्तरी केरल की माविलन जनजातियों (Mavilan tribes of North Kerala) द्वारा किए जाने वाला एक नृत्य अनुष्ठान है.

यह कला उस आदिवासी समुदाय की जीवनशैली से जुड़ा हुआ है जिन्होंने द्रविड़ संस्कृति को अपने जीवन में शामिल किया है. साल 1970 के दशक तक मंगलमकली का प्रदर्शन किया जाता था.

शादी जैसे कुछ शुभ अवसरों पर किए जाने वाले इस नृत्य अनुष्ठान में पुरुष और महिलाएं दोनों हिस्सा लेते हैं.

कलाकार थुडी (Thudi) नाम की एक पारंपरिक ताल वाद्य के साथ ही लोक गीतों की धुन पर लयबद्ध रूप से नर्तक नृत्य करते हैं.

माविलन जनजाति

माविलन जनजाति दूसरे जनजातियों से अलग है क्योंकि इसकी अपनी भाषा, जीवनशैली, रीति-रिवाज, चिकित्सा और खान-पान है.

माविलन जनजाति केरल के कासरगोड और कन्नूर ज़िलों में निवास करते है. यह अपनी परंपरा के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में इस नृत्य शैली का अभ्यास करती रही है.

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