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झारखंड में आदिवासियों ने ‘सरना’ कोड की मांग को लेकर की महारैली, लोकसभा चुनाव के बहिष्कार की दी चेतावनी

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झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के हजारों आदिवासी पुरुष, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों ने रविवार को रांची के मोरहाबादी मैदान (Morhabadi Ground) पहुंच कर ‘अलग सरना कोड’ (Sarna Code) के लिए हुंकार भरी और लोकसभा चुनाव से पहले जनगणना के फार्म में प्रकृति पूजा से जुड़े सरना धर्म (Sarna Dharma) को अलग स्थान नहीं दिए जाने पर आदिवासी समाज द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने की चेतावनी दी.

राष्ट्रीय आदिवासी समाज धर्म रक्षा अभियान (RASDRA) के बैनर तले बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मोरहाबादी मैदान में  इकट्ठे हुए. आरएएसडीआरए के बैनर तले झारखंड के 17 जिलों के अनेक आदिवासी निकायों के सदस्यों के साथ ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और असम के भी अनेक आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने ‘रैली’ में भाग लिया.

रैली में देशभर से आए आदिवासी समुदाय के पुरुषों और महिलाओं ने पारंपरिक परिधानों में रैली में हिस्सा लिया. ‘सरना’ धर्म के नेता बंधन तिग्गा ने चेतावनी दी कि अगर आम चुनाव से पहले उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो 2024 के लोकसभा चुनावों का आदिवासी समुदाय बहिष्कार करेगा.

झारखंड के आदिवासी नेता बंधन तिग्गा ने कहा, “आदिवासी समुदाय कई वर्षों से सरना धर्म के अनुयायियों के लिए एक अलग धार्मिक संहिता की मांग कर रहे हैं. देश भर में करीब सात करोड़ मूल निवासी सरना मत के अनुयायी हैं. अगर सरकार सरना को अलग धर्म घोषित नहीं करती है तो हम अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे.”

तिग्गा ने दावा किया कि जनगणना में एक अलग ‘सरना’ कोड आदिवासियों के लिए अलग पहचान की कुंजी है क्योंकि इसके बिना उन्हें हिंदू या मुस्लिम या ईसाई के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. उन्होंन कहा कि ‘सरना’ के अनुयायी प्रकृति पूजक हैं और दशकों से अलग धार्मिक पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

रैली का नेतृत्व करने वाले तिग्गा ने कहा कि आदिवासी संगठनों ने कार्यक्रम के लिए झारखंड को चुना क्योंकि यह राज्य देश में ‘आदिवासी आंदोलन का केंद्र’ है. उन्होंने दावा किया कि इससे पहले हमने दिल्ली में रैली की थी लेकिन केंद्र ने हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया.

बंधन तिग्गा ने रैली को संबोधित करते हुए कहा आदिवासियों का अपना धर्म है. जिसकी अपनी संस्कृति, अपना संस्कार, अपना पूजा स्थल और अलग रीति-रिवाज है. यह संस्कृति-परंपरा हिन्दू लॉ से जुड़ी नहीं है इसलिए आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड को लागू किया जाना चाहिए.

वहीं एक अन्य आदिवासी कार्यकर्ता कर्मा उरांव ने कहा कि इस साल के अंत में नई दिल्ली में एक बड़ी रैली आयोजित की जाएगी ताकि उनकी मांगों को लेकर आवाज बुलंद की जा सके. उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्यों के जनजातीय लोगों के अलावा नेपाल और भूटान के अलग-अलग जनजातीय प्रतिनिधिमंडल भी रांची पहुंचे और रैली में भाग लिया.

राज्य के एक और आदिवासी कार्यकर्ता बाल्कू उरांव ने कहा कि केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार खुद को आदिवासियों के अधिकारों के हितैशी के रूप में दिखाती रही है लेकिन यह समुदाय की सबसे लंबे समय से चली आ रही मांगों में से एक को पूरा करने के लिए बहुत कुछ नहीं कर रही है.

देशभर से पहुंचे आदिवासियों ने बताया कि झारखंड और पश्चिम बंगाल की विधानसभा से सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा गया है. दरअसल, झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर, 2020 को आदिवासियों के लिए एक अलग ‘सरना’ कोड के प्रावधान के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था. वहीं 17 फरवरी, 2023 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में इसी तरह का एक प्रस्ताव पारित किया गया था और केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा गया था.

महारैली में आठ सूत्री प्रस्ताव भी पारित किए गए. जिसमें किसी आदिवासी महिला के गैर आदिवासी पुरुष से विवाह करने पर उस महिला को आदिवासी स्टेटस अधिकार से पूरी तरह से वंचित करने की मांग की गए. साथ ही पिछली सरकार में लैंड बैंक बनाने के कानून को वापस लेने की मांग की गई.

(Photo Credit: PTI)

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