Mainbhibharat

सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारेगा

छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. राज्य में मुख्य चुनावी मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. इसी बीच सर्व आदिवासी समाज ने भी चुनाव मैदान में उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है.

जिसके बाद से बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है क्योंकि दोनों ही पार्टी आदिवासी वोटर्स पर फोकस कर रही हैं.

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अरविंद नेताम ने कहा है कि इस साल के अंत तक होने के वाले विधानसभा चुनाव में उनके समुदाय से उम्मीदवार खड़ा किया जाएगा.

रायपुर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए नेताम ने कहा कि सर्व आदिवासी समाज सभी आरक्षित विधानसभा सीटों और उन सामान्य सीटों पर उम्मीदवार उतारेगा जहां 30 से 40 प्रतिशत आदिवासी मतदाता रहते हैं.

उन्होंने कहा, “सर्व आदिवासी समाज पिछले 15 वर्षों से आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहा है. लेकिन हमारी बुनियादी समस्याओं को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया. हम इतने लंबे समय से अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.”

नेताम ने कहा, “आम सहमति बनी है कि आदिवासी समाज के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा जाए. सर्व आदिवासी समाज इसके लिए बहुत गंभीरता से काम कर रहा है.”

वहीं अन्य दलों के साथ राजनीतिक गठबंधन के बारे में पूछे जाने पर नेताम ने कहा कि वे राष्ट्रीय दलों से संपर्क नहीं करेंगे लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ काम करने के लिए तैयार हैं.

सर्व आदिवासी समाज के राज्य सचिव विनोद नागवंशी ने कहा कि समाज छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से लगभग 50 सीटों पर चुनाव लड़ेगा.

अरविंद नेताम का राजनीतिक सफर

अरविंद नेताम को कांग्रेस पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेताओं में से एक के रूप में जाना जाता है. हालांकि, उन्हें कुछ वर्षों से सत्तारूढ़ कांग्रेस से अलग कर दिया गया है. इस साल फरवरी में कांग्रेस ने कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. 80 वर्षीय नेताम का कहना है कि उन्होंने अपना जवाब पार्टी को भेज दिया है और उसके जवाब का इंतजार कर रहे हैं.

1971 से 1996 तक पांच बार उत्तर बस्तर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताम 1970 के दशक में इंदिरा गांधी और 1990 के दशक में पीवी नरसिम्हा राव की सरकारों में राज्य मंत्री (MoS) रहे थे.

नई आदिवासी पार्टी का प्रस्ताव रखने के बाद नेताम ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हम छत्तीसगढ़ में एक जागृति लाना चाहते हैं. चाहे हम जीतें या हारें, हम कांग्रेस और भाजपा को संदेश देना चाहते हैं कि वे अब आदिवासी समुदाय को हल्के में नहीं ले सकते. हम जीतें या न जीतें लेकिन उनमें से एक हमारी वजह से हारेगा. आदिवासियों के सबसे बड़े मुद्दों में से एक जल, जंगल और ज़मीन है.”

उन्होंने यह भी कहा, “पेसा एक्ट को सही अर्थों में लागू नहीं किया जा रहा है. कानून के नियम कहते हैं कि हम ग्राम सभा से तभी सलाह लेंगे जब उसकी सहमति की जरूरत होगी.  आदिवासियों को अपनी भूमि की रक्षा करने के लिए और सशक्त बनाने के लिए कानून बनाया गया था लेकिन इसे बेकार कर दिया गया है. हम इस कानून को और मजबूत करेंगे और इसे सही मायने में लागू करेंगे. दूसरा बड़ा मुद्दा आरक्षण का है. हमें संविधान के माध्यम से आरक्षण की गारंटी दी गई है लेकिन एक दशक से अधिक समय तक भाजपा और कांग्रेस ने हमारे लिए एक अलग कानून नहीं बनाया.”

नेताम ने कहा कि छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पहले से ही सीपीआई (एम) और सीपीआई जैसी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन के लिए बातचीत कर रहा है. क्योंकि वे तीसरे मोर्चे का निर्माण करना चाहते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने अपनी पार्टी बनाने में देरी नहीं कर दी? इस पर नेताम ने कहा, ‘यह सच नहीं है. हमने 2013 के चुनावों के साथ-साथ 2018 के चुनावों के लिए भी एक पार्टी बनाने की कोशिश की थी. लेकिन हम इस बार जमीन पर एक मजबूत समर्थन प्राप्त करना चाहते हैं.”

उन्होंने कहा कि उन्होंने पिछले साल दिसंबर में कांकेर जिले में भानुरतापुर विधानसभा सीट के उपचुनाव के बाद “आत्मविश्वास हासिल किया” है. जिसमें छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने जगदलपुर से सेवानिवृत्त डीआईजी, एक निर्दलीय उम्मीदवार अकबर राम कोर्रम का समर्थन किया था.

कोर्रम ने वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल किया था. हालांकि यह सीट कांग्रेस उम्मीदवार सावित्री मंडावी ने आसानी से जीत ली थी. कांग्रेस विधायक और सावित्री के पति, मनोज मंडावी, जो विधानसभा में डिप्टी स्पीकर थे, के निधन के कारण उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी थी.

सर्व आदिवासी समाज के राज्य सचिव विनोद नागवंशी ने कहा, “चुनाव से लगभग 10 दिन पहले अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने के बावजूद कोर्रम को 16 प्रतिशत वोट मिले थे. उन्हें समाज का समर्थन प्राप्त था. इसलिए हमारे पास आदिवासी जनता के बीच एक मजबूत समर्थन है. हमने यह चुनाव केवल इसलिए लड़ा क्योंकि भाजपा और कांग्रेस हमारी मांगों की अनदेखी कर रहे थे और यही कारण है कि हम पहली बार अपने सामाजिक आंदोलन को राजनीतिक आंदोलन में बदल रहे हैं.”

वहीं नेताम ने कहा कि उपचुनाव के दौरान सर्व आदिवासी समाज जीत हासिल करने के बारे में नहीं सोच रहा था बल्कि “दोनों राष्ट्रीय दलों को एक मजबूत संदेश दे रहा था कि आदिवासियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.”

उन्होंने कहा कि उन्हें (सावित्री) 60 प्रतिशत प्रतिशत वोट मिले. मुझे 16 प्रतिशत वोट मिले और बीजेपी उम्मीदवार को 27 से 28 प्रतिशत वोट मिले.

नेताम का पिछले कई दशकों में कांग्रेस के साथ जुड़ाव और विभाजन का एक लंबा इतिहास रहा है. इस अवधि के दौरान अपनी पुरानी पार्टी में वापस लौटने से पहले बसपा, भाजपा और राकांपा सहित अन्य पार्टियों में भी शामिल हुए थे.

नेताम ने कहा कि 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले वह कांग्रेस में लौट आए क्योंकि “राहुल गांधी ने मुझसे संपर्क किया” था. लेकिन 2020 में माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा क्षेत्र में रुकी हुई बोधघाट जलविद्युत परियोजना को फिर से शुरू करने के प्रस्ताव को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ उनकी अनबन हो गई थी.

Exit mobile version