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आदिवासी संगठन ने किया अमित शाह से चकमा पर दमन की जांच करने का आग्रह

शुक्रवार को दिल्ली स्थित चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (CDFI) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से चार पूर्वोत्तर राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा और मिजोरम में चकमा आदिवासियों पर कथित दमन को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की.

सीडीएफआई ने शुक्रवार को अमित शाह को सौंपे गए एक ज्ञापन में “अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा और मिजोरम में दमन के परिणामस्वरूप भारतीय जनता पार्टी से चकमाओं के बढ़ते अलगाव” के खिलाफ आगाह किया.

सीडीएफआई के संस्थापक सुहास चकमा ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में चकमा और हाजोंग को उनके स्थायी निपटान के 60 साल बाद स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा था.

उन्होंने कहा कि असम के होजई जिले में लुमडिंग सर्कल के तहत थेडोंगनाला में 110 से अधिक चकमा आदिवासी परिवारों को 40 से अधिक वर्षों से रहने के बावजूद 8 नवंबर से बेदखली अभियान के दौरान “अवैध रूप से बेदखल” किया गया था.

त्रिपुरा सरकार ने 2 अगस्त को अधिकारियों को अन्य समुदायों से अधिक आने के बावजूद कथित विदेशियों के रूप में सिर्फ चकमा की कथित आमद की जांच करने का निर्देश दिया है.

सीडीएफआई ने कहा कि मिजोरम (उच्च तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए उम्मीदवारों का चयन) नियम, 2021 के तहत चकमा से अनुसूचित जनजाति की स्थिति को गैर-मिजो लोगों के रूप में छीन लिया गया था, उच्च तकनीकी शिक्षा में चकमा के लिए सिर्फ एक फीसदी सीटें आवंटित करके.  

सुहास चकमा ने कहा, “2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 2,25,000 चकमाओं पर राष्ट्रव्यापी दमन के कुछ उदाहरण हैं. अगर चकमाओं पर दमन बेरोकटोक जारी रहा और सुधारात्मक उपचारात्मक उपाय नहीं किए गए तो चकमाओं के बढ़ते अलगाव से बीजेपी के खिलाफ आगामी त्रिपुरा विधानसभा चुनाव (2023) में चुनावी परिणामों पर असर पड़ सकता है.”

त्रिपुरा में अनुसूचित जनजातियों के लिए 20 आरक्षित विधानसभा सीटों में से सात विधानसभा क्षेत्रों में चकमा प्रमुख और निर्णायक कारक हैं.

सुधारात्मक उपायों के रूप में सीडीएफआई ने गृह मंत्री से अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से चकमा और हाजोंग के प्रस्तावित अवैध और असंवैधानिक पुनर्वास को खारिज करते हुए एक आधिकारिक बयान जारी करने के लिए कहने का आग्रह किया.

संगठन ने अमित शाह से यह भी अनुरोध किया कि वह असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के मुताबिक सभी चकमा परिवारों को तुरंत पुनर्वास प्रदान करने के लिए कहें.

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब या तो सिर्फ कथित विदेशियों के रूप में चकमाओं की जांच बंद कर दें या जाति, जातीय मूल या धर्म के सभी विदेशियों से पूछताछ करें.

सीडीएफआई ज्ञापन में कहा गया है, “गृह मंत्री मिजोरम के राज्यपाल से मिजोरम (उच्च तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए उम्मीदवारों का चयन) नियम, 2021 की संवैधानिकता की जांच करने के लिए कह सकते हैं. विशेष रूप से 2016 में एक जनहित याचिका में अदालत के फैसले के आलोक में और राज्य सरकार को गैर-संवैधानिक नियमों को वापस लेने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करते हैं.”

(Image Credit: PTI)

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