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झारखंड: आदिवासी छात्र की मदद की अपील, फीस भरने के बावजूद नहीं मिला है एडमिट कार्ड

झारखंड में एक छात्र की वीडियो अपील सीधे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंची है. सोरेन का ध्यान खींचने वाले इस वीडियो में बरहेट के एक आदिवासी छात्र ने कहा कि वह स्कूल परीक्षा के लिए नहीं बैठ सकता, क्योंकि उसे समय पर अपना एडमिट कार्ड नहीं मिला.

इस वीडियो अपील के ट्विटर पर उनके हैंडल के साथ अपलोड किए जाने के बाद, मुख्यमंत्री सोरेन ने इसका संज्ञान लेते हुए संबंधित अधिकारियों से इस पर कार्रवाई करने को कहा है.

वीडियो में “न्याय” की मांग करते हुए छात्र को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उसने बड़ी मुश्किल से फीस के लिए पैसे जमा किए थे, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ.

इस क्लिप को झारखंड मुक्ति मोर्चा की महिला विंग ने ट्विटर पर शेयर किया है. लड़का एसएसडी हाई स्कूल का छात्र है, और वीडियो में उसकी बात सुनकर ऐसा लगता है कि वह इस साल 12वीं कक्षा की परीक्षा देने वाला था.

“जब एडमिट कार्ड बांटे गए थे, मेरा कार्ड नहीं आया और मेरा नाम सूची में भी नहीं था. मैंने अपने स्कूल के प्रिंसिपल से शिकायत की, तब उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे परीक्षा से पहले मेरा एडमिट कार्ड मिल जाएगा. मैंने हर दिन स्कूल जाके पूछा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाद में जब कोई और रास्ता नहीं दिखा, तब मैंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाया है,” लड़का क्लिप में कहता है.

वो आगे यह भी कहता है, “अब तक कुछ भी नहीं हुआ है. मेरे प्रिंसिपल कोई जवाब नहीं दे रहे हैं. मैंने बड़ी मुश्किल से 770 रुपए की फीस दी थी. यह पैसे जोड़ने के लिए मैंने बहुत मेहनत की थी, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. मेरा एक साल बर्बाद हो गया. मैं एक गरीब परिवार से हूं. मुझे नहीं पता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है लेकिन मुझे मदद चाहिए. मुझे न्याय चाहिए.”

जवाब में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साहिबगंज जिला प्रशासन से घटना की जांच करने को कहा है. उन्होंने झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो को भी घटना का संज्ञान लेने को कहा है.

आदिवासी छात्रों को वैसे तो स्कूल लाने के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन इस तरह की लापरवाही न सिर्फ उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि उनकी शिक्षा से जुड़ी सभी कोशिशों को नाकाम भी कर देती है.

पिछले दो सालों में कोविड महामारी के चलते कई आदिवासी छात्रों ने स्कूल छोड़ा है. इनमें ज्यादातर ऐसे हैं जिनके लिए अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए काम पर जाना जरूरी था. ऐसे दूसरे कई छात्र हैं जो इंटरनेट और स्मार्टफोन की गैरमौजूदगी में ऑनलाइन शिक्षा से नहीं जुड़ पाए.

ऐसे में एक आदिवासी छात्र के साथ ऐसी लापरवाही निंदनीय है.

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