Mainbhibharat

तमिलनाडु: आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल की राह बेहद मुश्किल, लेकिन पढ़ने-लिखने की ललक है बरक़रार

स्कूलों में ऑफ़लाइन पढ़ाई बंद हुए एक साल से ज़्यादा हो चुका है. कोविड के चलते ऑनलाइन पढ़ाई को भले ही बेहतर और सुरक्षित माना जाए, लेकिन इसकी वजह से बच्चों का एक बड़ा तबका है जिनकी पढ़ाई बिलकुल ठप पड़ी है.

स्कूल और अपने दोस्तों से दूर देश के कई बच्चे बस अब स्कूल खुलने का इंतज़ार कर रहे हैं. हालांकि, तमिलनाडु के चेंगलपेट ज़िले के पझवेली गांव के आदिवासी बच्चों को एक और घोषणा का बेसब्री से इंतजार है.

वो चाहते हैं कि उनके गांव से एक बस अब गुज़रे, ताकि वो आराम से स्कूल जा सकें. बस्ती से सबसे निकटतम स्कूल सात किलोमीटर दूर है, और सार्वजनिक परिवहन की सुविधा न होने के चलते, बच्चों को रोज़ 14 कि.मी. पैदल चलना पड़ता था.

बच्चों के मां-बाप के लिए और मुसीबत थी, क्योंकि उन्हें यह दूरी दिन में दो बार तय करनी पड़ती थी.

राज्य में शिक्षा का एक डिजिटल और ऑनलाइन मोड विकसित किया गया है. लेकिन, दूसरी आदिवासी बस्तियों की तरह ही पझवेली के निवासियों के पास इंटरनेट और कंप्यूटर की सुविधा नहीं है.

इसके अलावा बिजली की आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है यहां. जब बिजली ही न हो, तो बच्चे इंटरनेट और कंप्यूटर की मांग क्या ही रखेंगे.

लेकिन, इनमें सीखने की ललक ऐसी है कि वो उम्मीद करते हैं कि जल्द बस पकड़कर स्कूल जाएंगे, अपने दोस्तों से मिलेंगे, और पढ़-लिखकर कुछ बन जाएंगे.

सातवीं क्लास में पढ़ने वाली इरुला आदिवासी लड़की कविता ने एक अखबार को बताया कि पैदल चलने के चक्कर में वो रोज़ स्कूल देरी से पहुंचते थे. इसके अलावा रोज़ 14 किमी पैदल चलने के बाद वो काफ़ी थक भी जाते थे.

सातवीं कक्षा में ही पढ़ने वाली एक और लड़की ने बताया कि घर लौटने तक वो काफ़ी थक चुकी होती हैं, और उस समय होमवर्क या दूसरी पढ़ाई करना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मुफ्त परिवहन सेवा इस गांव के लिए बेहद ज़रूरी है.

यह आदिवासी बस्ती घने जंगल के अंदर, एक पहाड़ी के नीचे बसी है, और चेन्नई से लगभग 80 किमी दूर है. बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए पहले पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है, और फिर दूसरी तरफ़ वेन्बक्कम में उतरना पड़ता है.

मांओं के लिए और मुसीबत है क्योंकि घर के काम के साथ-साथ उनके ऊपर बच्चों को स्कूल ले जाने और वहां से लाने की बड़ी ज़िम्मेदारी है. बस्ती के पुरुष सुबह-सुबह दैनिक मज़दूरी के लिए निकल जाते हैं, तो बच्चों की ज़िम्मेदारी औरतों की ही होती है.

बड़े-बड़े पहाड़ और घने जंगल से ज्यादा जोखिम भरा है स्कूल के रास्ते में पड़ने वाली एक व्यस्त बाईपास रोड. उसको पार करना बेहद जोखिम भरा है. इस बाईपास पर वाहनों की गति इतनी तेज़ होती है कि बच्चों को कभी-कभी सड़क पार करने में 40 मिनट लग जाते हैं.

Exit mobile version