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आदिवासी युवक की हिरासत में मौत के मामले में फंसा प्रशासन, पुलिस थ्योरी पर कई सवाल

मध्य प्रदेश के खरगोन में लूट के मामले में गिरफ्तार आदिवासी युवक की मौत के मामले में सरकार पर दबाव बढ़ रहा है. परिजनों का आरोप है मौत पुलिस प्रताड़ना से हुई. सिविल सर्जन डॉ दिव्येश वर्मा ने बुधवार को कहा कि गिरफ्तार बिशन भील की मौत सेप्टीसीमिया के चलते हुई है, और उसके शरीर पर “कम से कम सात दिन पुराने घाव” हैं जिसके कारण कई अंग फेल हुए हैं. 

35 वर्षीय आदिवासी बिशन भील को जेल में ले जाने के लिए एक सरकारी डॉक्टर जेपी बडेरिया द्वारा चिकित्सकीय रूप से मंजूरी देने के मुश्किल से पांच घंटे बाद 6 सितंबर की आधी रात को जेल से जिला अस्पताल ले जाया गया था. 

डॉ बडेरिया से पूछा गया कि जेल से पहले उनकी मेडिकल जांच के दौरान ‘सेप्टिसीमिया’ के लक्षण क्यों नहीं पाए गए. लेकिन बडेरिया ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, “मैंने अपनी जांच रिपोर्ट सिविल सर्जन को सौंप दी है, बस इतना ही कहना है.”

बिशन के परिवार और समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि उनकी मौत इसलिए हुई क्योंकि उन्हें पुलिस हिरासत में पीटा गया था. 

जेल अधीक्षक जी एल ओसारी को मंगलवार देर रात निलंबित कर दिया गया. वहीं हिरासत में मौत के आरोप के बाद एक अधिकारी सहित चार पुलिसकर्मियों को पहले ही निलंबित कर दिया गया था. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी अभिषेक कुमार त्रिपाठी मामले की जांच कर रहे हैं.

दरअसल चित्तौड़गढ़-भुसावल राजमार्ग पर लूट करने के आरोप में बिशन समेत खैरकुंडी गांव के 12 लोगों को पुलिस ने पकड़ा था. 8 आरोपी जेल गये, 4 पुलिस रिमांड में थे, रिमांड के बाद सोमवार को बिशन को भी जेल भेजा गया जहां रात में उसकी तबीयत बिगड़ी. जेल से रात दो बजे उसे जिला अस्पताल लाया गया. यहां इलाज के दौरान सुबह उसकी मौत हो गई.

परिवार वालों का कहना है न तो बिशन लूट का आरोपी था न ही बीमार, और पुलिस की पिटाई से उसकी मौत हुई.

डॉ वर्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 3-4 दिन पहले पुलिस ने मृतक को हिरासत में लिया था. लेकिन उसकी जाँघों और नितंबों (Thighs and buttocks) पर घाव कम से कम सात दिन पुराने थे. इन घावों ने गहरी मांसपेशियों में सेल्युलाइटिस और सेप्सिस विकसित किया. जब पोस्टमार्टम के दौरान गहरा चीरा लगाया गया तो उसकी मांसपेशियों में पस पाया गया.

उन्होंने कहा कि शव परीक्षण के दौरान शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं देखे गए जो डॉक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया था. सिविल सर्जन ने कहा, “बैक्टीरियल इंफेक्शन उसके महत्वपूर्ण अंगों में फैल गया था. इसमें उनका लीवर शामिल था, उनका बायां वेंट्रिकल बड़ा हो गया था और उनके फेफड़ों में एम्बोलाय पाया गया था.”

डॉ वर्मा ने कहा, “बिस्टान पुलिस बिशन को 5 सितंबर को अदालत में पेश करने से पहले भगवानपुरा के एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में ले गई थी. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन्हें कोई चोट लगी है या उन्हें पीटा गया है.”

सिविल सर्जन ने कहा, “डॉ बडेरिया ने 6 सितंबर को शाम 7.05 बजे उनकी जांच की. बिशन ठीक से चल रहे थे और उनके महत्वपूर्ण पैरामीटर सामान्य थे. इसलिए उन्हें अगले दिन मेडिकल जांच के लिए लौटने के लिए कहा गया.” उसी रात करीब 12.30 बजे उन्हें मृत लाया गया था.

मौत की सूचना मिलते ही परिजन आक्रोशित हो गए. हंगामा इतना बढ़ा कि 100-150 की भीड़ ने थाने पर हमला कर दिया. भीड़ ने हमले को इतना हिंसक बना दिया था कि पुलिस को हवा में गोलियां चलानी पड़ीं. हमलावरों ने कथित तौर पर बिस्टान पुलिस थाने में आग लगाने की कोशिश की जिसमें एक दर्जन पुलिस वाले थे लेकिन समय से पहले ही सुरक्षाबल पहुंच गए.

अतिरिक्त एसपी नीरज चौरसिया ने कहा कि पुलिस हमलावरों की पहचान के लिए हिंसा के वीडियो खंगाल रही है. आईजी हरिनारायणचारी मिश्रा समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने खरगोन का दौरा कर जांच में तेजी लाने के निर्देश जारी किए हैं.

वहीं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने बुधवार को भोपाल में डीजीपी विवेक जौहरी से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा. जिसमें कथित पिटाई के लिए पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है.

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