केरल के वायनाड जिले के एक सत्तर वर्षीय आदिवासी किसान चेरुवयाल के. रमन को वनस्पति विज्ञान या कृषि विज्ञान जैसे पारंपरिक विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं है फिर भी उन्हें जिले के कम्मना में अपने छोटे से खेत में चावल की 55 से अधिक किस्मों के संरक्षण का श्रेय दिया जाता है.
के. रमन को स्थानीय रूप से ‘विथाचन’ (बीजों के पिता) के रूप में जाना जाता है. उन्होंने पांच साल पहले प्लांट वैराइटीज एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित नेशनल प्लांट जीनोम सेवियर अवार्ड जीता था. और अब बुधवार को उन्हें पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया है.
रमन पिछले कई वर्षों से अपने 3 एकड़ जमीन पर जिले की 55 चावल की किस्मों, पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों, जड़ी-बूटियों और मसालों का संरक्षण कर रहे हैं. उन्होंने द हिन्दू को बताया, “मैंने 2021 तक 60 किस्मों का संरक्षण किया था लेकिन मेरी उम्र और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों ने मुझे बीजों की विविधता को कम करने के लिए मजबूर किया.”
कुरिच्या जनजाति का सदस्य होने के नाते खेती-किसानी उनके जीवन का हिस्सा है. हालांकि, कई कुरिच्या संयुक्त परिवार विभिन्न कारणों से पारंपरिक चावल की किस्मों की खेती को छोड़ रहे हैं. के. रमन और उनका परिवार बीजों को अगली पीढ़ी के लिए खजाने के रूप में संरक्षित कर रहा है.
उन्होंने एक अनौपचारिक बीज वितरण तंत्र के माध्यम से किसानों का एक नेटवर्क स्थापित किया है जिसके द्वारा किसान किसी को भी इस शर्त पर बीज देता है कि उतनी ही मात्रा अगले वर्ष वापस कर दी जाए. रमन का कहना है कि बीजों को बेचा नहीं जा सकता क्योंकि यह एक वस्तु के बजाय प्यार और देखभाल की चीज है.
रमन की खासियत है कि वह चावलों को देखकर, सूंघकर और हाथों से छूकर ही बता सकते हैं कि चावल किस प्रजाति का है. रमन ने अपना पूरा जीवन इन चावल की प्रजातियों को संजोने में लगा दिया है. धान कटने के बाद वह उन्हें अपने घर में रखते हैं. उनका घर भी लगभग 150 साल पुराना है. वह आज भी वैसा ही मिट्टी और पूस का बना है. घर में आज भी कोई सीमेंट, ईंट या अन्य आधुनिक ढांचे का प्रयोग नहीं किया गया है.
के. रमन चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी इन चावलों की प्रजातियों को न भूलें. वो स्थानीय युवाओं को प्रेरित करते हैं, जो उनसे इन चावलों की उगाने की मदद मांगने आता है. साथ ही वो उन्हें सिखाते हैं कि कैसे बिना किसी कीटनाशक, केमिकल या आधुनिक तरीका अपनाए वे चावल उगा सकते हैं. वे युवा किसानों को ट्रेनिंग के साथ ही अपने चावल के किस्म का बीज भी देते हैं.
रमन ने जो चावल की प्रजातियां संरक्षित की हैं उनकी लिस्ट और चावल का विवरण उनके पास है. इस लिस्ट में एक चावल की किस्म ऐसी है, जो 500 साल से ज्यादा पुरानी है. उनके पास चेन्नेलु, थोंडी, वेलियान, कल्लादियारन, मन्नू वेलियन, चेम्बकम, चन्नलथोंडी, चेट्टुवेलियन, पलवेलियन और कनाली वायनाड के सबसे प्रमुख स्वदेशी बीज हैं.
वो कहते हैं कि उनके अनुभव ने उन्हें सिखाया है कि संकर बीजों की तुलना में स्वदेशी बीज रोगों और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हैं. बिना बुवाई के कई वर्षों तक रखे जाने पर भी वे खराब नहीं होते हैं. उनकी खेती के लिए कम से कम मेहनत की जरूरत होती है.
रमन कहते हैं कि मैं भविष्य की पीढ़ियों के उपयोग के लिए जीन बैंक को संरक्षित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप और सहायता चाहता हूं. कृषि विश्वविद्यालयों और चावल अनुसंधान केंद्रों को मुझे सेमिनारों और खाद्य सुरक्षा सम्मेलनों में आमंत्रित करने के बजाय बीजों को रखने और उन्हें बढ़ावा देने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
(Photo Credit: Kottayam Media)