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हॉस्टल की कमी से जूझ रहीं आदिवासी छात्राएं

महाराष्ट्र की कई आदिवासी छात्राएं आज भी हॉस्टल सुविधा से वंचित हैं. इस कारण उनकी पढ़ाई पर असर पड़ रहा है.

इस मुद्दे पर छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) लगातार आवाज़ उठा रहा है.

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) ने इस समस्या को लेकर कई बार आदिवासी विकास विभाग (TDD) से बात की, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला. अब SFI ने आंदोलन का रास्ता चुना है.

शिवनेरी से मुंबई तक मार्च

SFI ने घोषणा की है कि वह 1 मई 2025 को एक लंबी रैली निकालेगा. यह मार्च शिवनेरी किले से शुरू होकर मुख्यमंत्री आवास, मुंबई तक जाएगा.

यह रैली पहले 28 अप्रैल को शुरू होनी थी. लेकिन आदिवासी विकास विभाग (TDD) की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते हुए इसे टाल दिया गया.

दूरी और घरेलू जिम्मेदारियों का दबाव

यह प्रदर्शन छात्राओं के हक के लिए है. राज्य के कई ज़िलों में हॉस्टल पहले से ही क्षमता से ज़्यादा भरे हुए हैं.

उदाहरण के लिए जुन्नर तालुका के एक ट्राइबल गर्ल्स हॉस्टल में केवल 80 लड़कियों के रहने की क्षमता है. वहां पहले से 200 छात्राएं रह रही हैं.

इससे जो नई छात्राएं कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं उन्हें ठहरने की सुविधा नहीं मिल पा रही है.  इससे या तो उनका दाखिला रुक जाता है या उन्हें रोज लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.

प्रतीक्षा कवटे नाम की 17 वर्षीय छात्रा इस समस्या से जूझ रही है. वह पुणे के जुन्नर तालुका की रहने वाली है. उसका कॉलेज घर से एक घंटे की दूरी पर है.

उसकी क्लास सुबह 7 बजे शुरू होती है. इसलिए वह रोज़ सुबह 5 बजे उठकर घर के काम करने के बाद 6 बजे बस पकड़कर कॉलेज जाती है.

वह कहती हैं कि अगर हॉस्टल नहीं मिला, तो दो घंटे यात्रा करनी पड़ेगी. इसके अलावा घर का काम भी होता है, जिसके कारण पढ़ाई के लिए समय ही नहीं बचता.

ऐसी ही स्थिति कई जिलों में है. छात्राओं को हॉस्टल नहीं मिल पा रहा. इससे उन्हें उच्च शिक्षा से वंचित होना पड़ता है.

SFI की मांग

SFI ने इसे लेकर एक पत्र भी आदिवासी विकास विभाग को भेजा है. इस पत्र में कई मांगे रखी गईं हैं. जैसे – हॉस्टलों में सीटें बढ़ाई जाएं, खाने की गुणवत्ता सुधारी जाए. इसके अलावा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) बंद करने और मेस सिस्टम वापस लाने की मांग भी स्टूडेंट फेडरेशन ने की है.

एक और अहम मांग भी छात्र संगठन ने उठाई है. किराये की जगहों के बजाय सरकारी इमारतों में हॉस्टल बनें.

SFI के कार्यकारी सदस्य रामदास प्रिनी सिवानंदन ने कहा, “हम लगातार फॉलोअप कर रहे हैं. लेकिन TDD कोई ठोस जवाब नहीं दे रहा. हॉस्टल न मिलने से छात्राएं दाखिला नहीं ले पाएंगी. या फ़िर रोज़ लंबी यात्रा करनी पड़ेगी. इससे पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा. इसी वजह से आदिवासी बच्चे पीछे रह जाते हैं.”

सरकार का पक्ष

इस मामले में आदिवासी विकास विभाग की आयुक्त लीना बंसोड़ ने कहा कि सरकार प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा, “हम जुन्नर ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के हर प्रभावित जिले में समाधान ढूंढ रहे हैं. हमने स्वयं योजना के तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के लिए सरकार को प्रस्ताव भी भेजा है. सरकार से सकारात्मक परिणाम की प्रतीक्षा है. साथ ही किराये की इमारत लेकर व्यवस्था करने का काम अंतिम चरण में है.”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य है कि 2030 तक सभी छात्र उच्च शिक्षा तक पहुंच सकें लेकिन महाराष्ट्र में हॉस्टल की कमी के चलते आदिवासी छात्राएं अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.

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