एक रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के कई आदिवासी समुदायों में आज भी बाल विवाह होता है. सीआईआरयू (Child Right and You) की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र (Maharashtra) में साल 2020 से 2022 तक सबसे ज्यादा पारधी (Pradhi), भील (Bhil) और थाकर (Thakar) समुदाय में लड़कियों की कम उम्र में ही विवाह (Child marriage) करवा दिया गया
दरअसल, इन समुदायों में लड़कियों की शादी वित्तीय कारणों यानि कर्ज चुकाने या गिरफ्तारी की स्थिति में परिवार के पुरुष सदस्यों को जमानत पर बाहर लाने के लिए पैसे की व्यवस्था करने के लिए की जाती है. पैसे का लेनदेन दूल्हे के परिवार की वित्तीय स्थिति और लड़कियों की शक्ल-सूरत और शारीरिक विशेषताओं पर निर्भर करता है.
यह राशि 25,000 रुपये से 50,000 रुपये तक और कभी-कभी एक लाख से भी अधिक हो सकती है. कई मामलों में परिवार का कर्ज़ चुकाने के लिए लड़कियों की शादी कर दी जाती है. जब कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं तो ‘समझौते’ के तौर पर लड़की की सहमति के बिना उसकी शादी कर्जदाता के घर में कर दी जाती है.
सीआईआरयू की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 से 2022 तक पारधी, भील और थाकर समुदाय में 396 लड़कियों का बाल विवाह करवाया गया था. इनमें अधिकतर लड़कियों की उम्र 10 से 15 वर्ष होती है. शादी के एक या दो साल बाद लड़कियों को छोड़ दिए जाने की घटना आम है. ये लड़कियाँ अक्सर तब और अधिक शोषण का शिकार हो जाती हैं जब उनके माता-पिता उनकी दोबारा शादी कर देते हैं.
यह आदिवासी समुदाय पूरे राज्य का सिर्फ एक प्रतिशत ही आबादी को दर्शाता है. जिससे ये भी पता चलता है की इन समुदाय का अस्तित्व भी अभी खतरे में है. मतलब इस आदिवासी समुदाय की बेहद कम आबादी ही बची हुई है.
सीआईआरयू के महाप्रबंधक और विकास सहायता (General Manager, Development Support), कुमार नीलेन्दु (Kumar Nilendu) ने बताया की पारधी, भील और थाकर समुदाय में बच्चें काफी दिक्कतों का सामना करते आ रहे हैं.
इसके अलवा आबादी कम होने के कारण ये महाराष्ट्र के एक प्रतिशत जनसंख्या को ही दर्शाते हैं. जिसके कारण इन पर कोई भी राजनीतिक दल इतना ध्यान नहीं देता.
आज के युग में हम तकनीकी तौर पर आगे बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन बाल विवाह जैसी प्रथा आज भी हमारे देश में मौजूद है. जिसे अगर सहीं समय पर खत्म नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह एक बड़ी दिक्कत बन सकता है